2. सफर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

२. सफर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा 
2 Safar | Sirf Paanch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

हज़रत यूसुफ (अ.स)

हजरत यूसुफ (अ.स) बड़े मशहूर और जलीलुल क़द्र पैगम्बर हैं, वह हज़रत याकूब (अ.स) के बेटे हजरत इस्हाक़ (अ.स) के पोते और हज़रत इब्राहीम (अ.स) के परपोते हैं, अल्लाह तआला ने उन की शान में एक मुकम्मल सूरत “सूरह यूसुफ” के नाम से नाज़िल फ़रमाई है, जिस में उन की जिन्दगी के हालात व वाकिआत अजीब अन्दाज़ से बयान फरमाए हैं।

कुरआने करीम में २७ मर्तबा उन का तजकेरा आया है, उन की पैदाइश हज़रत इब्राहीम (अ.स) के तक़रीबन दो सौ पचास साल बाद इराक के शहर “फद्यान इरम” में हुई।

बचपन ही में वह अपने वालिद के साथ फलस्तीन आ गए थे, उन के ग्यारह भाइयों में बिनयामीन के अलावा बाकी सब सौतेले भाई थे। हजरत याकूब (अ.स) उन से बेहद मुहब्बत करते थे, किसी वक़्त भी उन की जुदाई गवारा न थी, क्योंकि शुरू ही से उन की फितरी सलाहियत दूसरे भाइयों के मुकाबले में बिल्कुल मुमताज़ और रोज़े रौशन की तरह जाहिर थीं।

हजरत याकूब (अ.स) होनहार फ़रज़न्द की पेशानी पर चमकता हुआ नूरे नुबुव्वत पहचानते थे और वहिये इलाही के जरिये उस की इत्तेला पा चुके थे, अल्लाह तआला ने उन्हें नुबुव्वत के साथ हुकूमत व सलतनत से भी नवाज़ा था।

तफ्सील में पढ़े: हज़रत युसूफ अलैहि सलाम | क़सस उल अँबियाँ

📕 इस्लामी तारीख


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा

नबी (ﷺ) की पुकार पर पत्थर का हाज़िर होना

एक मर्तबा हज़रत इकरिमा (र.अ) (जो अभी इस्लाम नहीं लाए थे) रसूलुल्लाह (ﷺ) के साथ चश्मे के किनारे पर थे, उन्होंने दूसरे किनारे पर पड़े हुए एक बड़े पत्थर की तरफ इशारा कर के रसूलुल्लाह (ﷺ) से कहा: अगर आप सच्चे हैं, तो इस पत्थर को अपने पास बुला लीजिये के यह पानी में तैरता हुआ आपके पास आ जाए

चुनान्चे रसूलुल्लाह ने उस की तरफ इशारा किया, वह चटान अपनी जगह से उखड़ी और पानी में तैरती हुई रसूलुल्लाह (ﷺ) के सामने आकर रूकी और उस ने आप (ﷺ) की नुबुव्वत की गवाही दी

फिर आप (ﷺ) ने हज़रत इकरिमा से फर्माया : तुम्हारे लिये इतना ही काफी होना चाहिये। 

इकरिमा ने कहा : हाँ! अगर यह पत्थर अपनी जगह वापस भी चला जाए। 

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फिर उसे इशारा किया, तो वह अपनी जगह वापस चला गया, मगर फिर भी इकरिमा उस वक़्त मुसलमान न हुए. अलबत्ता फतहे मक्का के वक़्त मुसलमान हो गए।

📕 सीरते हलबिय्या: १७८/५


3. एक फर्ज के बारे में

मस्जिद में दाखिल होने के लिए पाक होना

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“किसी हाइजा औरत और किसी जनबी : यानी नापाक आदमी के लिए मस्जिद में दाखिल होने की बिल्कुल इजाजत नहीं है।”

📕 अबू दाऊद : २३२, अन आयशा (र.अ)

वजाहत: मस्जिद में दाखिल होने के लिये हैज व निफ़ास और जनाबत से पाक होना जरुरी है।


4. एक सुन्नत के बारे में

बीमार को दुआ देना

रसूलुल्लाह (ﷺ) जब किसी मरीज की इयादत करते तो फ़र्माते:

لاَ بَأْسَ طَهُورٌ، إِنْ شَاءَ اللَّهُ

“La Basa Tahuran In Sha Allah”

तर्जमा: घबराओ नहीं इन्शाअल्लाह अच्छे हो जाओगे।

📕 बुखारी: ५६५६, अन इब्ने अब्बास (र.अ)


5. एक अहेम अमल की फजीलत

गरीबों के काम में मदद करने की फ़ज़ीलत

रसलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“बेवा और मिस्कीन के कामों में जद्दो जहद करने वाला अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले के बराबर है।”

📕 बुखारी : ५३५३ अन अबी हुरैरह (र.अ)


6. एक गुनाह के बारे में

अल्लाह तआला के साथ शिर्क करने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“बिलाशुबा अल्लाह तआला शिर्क को मुआफ नहीं करेगा। शिर्क के अलावा जिस गुनाह को चाहेगा, माफ कर देगा और जिसने अल्लाह तआला के साथ किसी को शरीक किया, तो उसने अल्लाह के खिलाफ बहुत बड़ा झूट बोला।”

📕 सूरह निसा: ४४


7. दुनिया के बारे में

दुनिया की ज़ीनत काफिरों के लिये

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है:

“दुनिया की जिन्दगी तो काफिरों के लिये संवार दी गई है। (न के मुसलमानों के लिये) और (काफिर लोग) मुसलमानों का मजाक उड़ाते हैं, हालांके जो मुसलमान कुफ्र व शिर्क से बचते हैं, वह कयामत के दिन उन काफिरों से दर्जों में बुलन्द होंगे, (आदमी को अपनी दुनिया और मालदारी पर गुरूर न करना चाहिये, क्यों कि ) अल्लाह तआला जिस को चाहता हैं बे हिसाब रोज़ी दे देता हैं।
(इस लिये मालदार होना कोई फख्र की चीज़ नहीं)”

📕 सूरह बकराह : २१२


8. आख़िरत के बारे में

कब्र में ही ठिकाने का फैसला

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया: 

“जब तुम में से कोई वफात पा जाता है, तो उस को सुबह व शाम उस का ठिकाना दिखाया जाता है, अगर जन्नती हो, तो जन्नत वालों का और अगर जहन्नमी है, तो जहन्नम वालों का ठिकाना दिखाया जाता है, फिर कहा जाता है: यह तेरा ठिकाना है यहाँ तक के अल्लाह तआला क़यामत के दिन तुझे दोबारा उठाए।”

📕 बुखारी : १३७९ , अन अब्दुल्लाह बिन उमर (र.अ)


9. तिब्बे नबवी से इलाज

शहद और कुरआन से शिफा

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“तुम अपने लिए शिफा की दो चीजों : यानी शहद और कुरआन को लाजिम पकड़लो।”

📕 इब्ने माजा: ३४५२, अन अब्दुल्लाह बिन मसऊद (र.अ)


10. नबी (ﷺ) की नसीहत

रात के आखरी हिस्से में अल्लाह अपने बन्दे से करीब होता हैं

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“अल्लाह तआला रात के आखरी हिस्से में बन्दे से बहुत जियादा करीब होता हैं, अगर तुमसे हो सके, तो उस वक़्त अल्लाह तआला का जिक्र किया करो।”

📕 तिर्मिजी : ३५७९, अन अम्र बिन अबसा (र.अ)

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