18. रबी उल आखिर | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

18 Rabi-ul-Akhir | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

मेअराज का सफर

हिजरत से एक साल पहले हजूर (ﷺ) को सातों आसमानों की सैर कराई गई, जिस को “मेअराज” कहते हैं। क़ुरआने करीम में भी सराहत के साथ इस का तज़केरा आया है। जब आपकी उम्र मुबारक ५१ साल ९ माह हुई, तो रात के वक़्त आपको मस्जिदे हराम लाया गया और जमजम और मकामे इब्राहिम के दर्मियान से बुराक नामी सवारी पर हजरत जिबईल (अ.स.) के साथ बैतूल मकदीस तशरीफ लाए। यहाँ आपने तमाम अम्बियाए किराम की इमामत फर्माई।

उसके बाद सातों आसमानों पर तशरीफ ले गए। हर आसमान पर अलग अलग नबियों से मुलाकात हुई। सातों आसमान के बाद “सिदरतुल मुन्तहा” तक हज़रत जिब्रईल साथ रहे। उस के बाद आप तने तन्हा आगे बढ़े और उस मकाम तक पहुँचे. जहाँ तक फरिश्ते भी नहीं जा सकते। यहाँ आपको अल्लाह से हम कलामी का शर्फ हासिल हुआ और यहीं पाँच नमाजे तोहफे में दी गई। उसके बाद बैतुलमक्दिस वापस आए और बुराक पर सवार हो कर मक्का मुकर्रमा वापस तशरीफ लाए।

इस अहम सफर में आप ने अल्लाह तआला की बड़ी बड़ी निशानियाँ देखीं। जिन के मुतअल्लिक अल्लाह तआला ने फ़रमाया के “उन की आँख न किसी तरफ माइल हुई और न (हद से) आगे बढ़ी। उन्होंने अपने रब (की कुदरत) के बड़े बड़े अजाएबात देखे।” [सूरह नज्म: १७ ता १४]

📕 इस्लामी तारीख


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

हुजूर (ﷺ) की दुआ की बरकत

एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अली (र.अ) को काज़ी बना कर यमन भेजा, तो हज़रत अली कहने लगे: या रसूलल्लाह! मैं तो एक नौजवान आदमी हूँ मैं उन के दर्मियान फैसला (कैसे) करूँगा? हालाँकि मैं ! तो यह भी नहीं जानता के फैसला क्या चीज है ?

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मेरे सीने पर अपना हाथ मुबारक मारा और फर्माया : ऐ अल्लाह ! इस के दिल को खोल दे और हक बात वाली जबान बना दे, हजरत अली फरमाते हैं के अल्लाह की कसम ! उस के बाद मुझे कभी भी दो आदमियों के दर्मियान फैसला करने में शक और तरहुद नहीं हुआ।

📕 बैहक़ी फी दलाइलिन्नुबुव्वह : २१३४, अन अली (र.अ)


3. एक फर्ज के बारे में

मय्यित का कर्ज अदा करना

हजरत अली (र.अ) फ़र्माते हैं के:

रसुलअल्लाह (ﷺ) ने कर्ज को वसिय्यत से पहले अदा करवाया, हालाँकि तुम लोग (कुरआन पाक में) वसिय्यत का तजकेरा कर्ज से पहले पढ़ते हो।

📕 तिर्मिज़ी : २१२२

फायदा: अगर किसी शख्स ने कर्ज लिया और उसे अदा करने से पहले इन्तेकाल कर गया, तो कफन दफन के बाद माले वरासत में से सबसे पहले कर्ज अदा करना जरूरी है, चाहे सारा माल उस की। अदायगी में खत्म हो जाए।


4. एक सुन्नत के बारे में

क़यामत की रुसवाई से बचने की दुआ

कयामत के दिन जिल्लत व रुसवाई से
नजात पाने के लिये इस दुआ का एहतमाम करे।

तर्जमाः (ऐ मेरे रब!) मुझे कयामत के दिन रुसवा न फ़र्माना।

📕 सूरह शुअरा : ८७


5. एक अहेम अमल की फजीलत

अज़ान देने की फ़ज़ीलत

रसुलल्लाह (ﷺ) ने फर्माया:

“जिस शख्स ने बारा साल तक अजान दी, उस के लिये जन्नत वाजिब हो गई और हर रोज अजान के बदले उसके लिये साठ नेकियाँ लिखी जाएँगी और हर तक्बीर पर तीस नेकियाँ मिलेंगी।” 

📕 इब्ने माजा : ७२८


6. एक गुनाह के बारे में

कुरआन सुनने से रोकने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“यह काफिर लोग (एक दूसरे से) कहते हैं के इस कुरआन को मत सुना करो और उस के दौरान शोर मचाया करो, उम्मीद है के इस तरह तुम ग़ालिब आ जाओगे। उन काफिरों को हम सख्त अज़ाब का मज़ा चखाएँगे और यकीनन हम उनको बुरे आमाल का बदला देंगे, जो वह किया करते थे।”

📕 सूरह हामीम सज्दा : २६ ता २७


7. दुनिया के बारे में

दुनिया के मुकाबले में आखिरत बेहतर है

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“जो लोग परहेजगार हैं, जब उनसे पूछा जाता है के तुम्हारे रब ने क्या चीज़ नाजिल की है?
तो जवाब में कहते हैं : बड़ी खैर व बरकत की चीज नाजिल फ़रमाई है।
जिन लोगों ने नेक आमाल किये, उनके लिये इस दुनिया में भी भलाई है और बिला शुबा आखिरत का घर तो दुनिया के मुकाबले में बहुत ही बेहतर है और वाक़ई वह परहेजगार लोगों का बहुत ही अच्छा घर है।”

📕 सूरह नहल: ३०


8. आख़िरत के बारे में

काफिर की बदहाली

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :

“क़यामत के दिन काफिर अपने पसीने में डूब जाएगा, यहाँ तक के वह पुकार उठेगा: ऐ मेरे परवरदिगार! जहन्नम में डालकर मुझे इस (अजाब) से नजात दे दीजिये।”

📕 कंजुल उम्माल : ३८९२३


9. तिब्बे नबवी से इलाज

बुखार व दीगर बीमारियों से नजात

हज़रत इब्ने अब्बास (र.अ.) फ़रमाते हैं के :

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने सहाबा-ए-किराम को बुखार और दूसरी तमाम बीमारियों से नजात के लिये यह दुआ बताई:

तर्जमा : मैं अल्लाह के नाम से शुरू करता हूँ जो बहुत बड़ा है, मैं बहुत ही ज्यादा अज़मत वाले अल्लाह की पनाह माँगता हूँ, हर जोश मारने वाली रग की बुराई से और आग की गर्मी की बुराई से।

📕 तिर्मिज़ी : २०७५


10. नबी की नसीहत

खाना खिलाया करो और सलाम को आम करो

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“रहमान (अल्लाह) की इबादत करो और खाना खिलाया करो और सलाम को आम करो (चाहे उस से जान पहचान हो या न हो) तुम जन्नत में सलामती के साथ दाखिल हो जाओगे।”

📕 तिर्मिज़ी : १८५५

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