- इस्लामी तारीख: हज़रत उम्मे अय्यूब (र.अ)
- अल्लाह की कुदरत: बच्चों की पैदाइश और उन की मुहब्बत
- एक फर्ज के बारे में: वालिदैन के साथ अच्छा सुलूक करना
- एक सुन्नत के बारे में: सजदे में उंगलियों को रखने का तरीका
- एक अहेम अमल की फजीलत: सब से अफज़ल सदका
- एक गुनाह के बारे में: किसी मुसलमान का हक मारना
- दुनिया के बारे में : दुनिया के लालची अल्लाह की रहमत से दूर
- आख़िरत के बारे में: इन्सानों के आज़ा की गवाही
- कुरआन से इलाज: सूर-ए-फ़ातिहा से इलाज
- कुरआन की नसीहत: बात में इन्साफ़ का खयाल रखा करो
1. इस्लामी तारीख:
हजरत उम्मे अय्यूब (र.अ)
. हजरत उम्मे अय्यूब बिन्ते कैस मशहूर सहाबी हज़रत अबू अय्यूब अन्सारी (र.अ) की बीवी हैं, इस नेक सीरत खातून ने हिजरत से पहले ही इस्लाम कबूल कर लिया था, जब हुजूर (ﷺ) हिजरत फरमा कर मदीना मुनव्वरा तशरीफ़ लाए, तो सात महीने तक उन्हीं के यहां कयाम फ़रमाया और दो जहां के सरदार की मेजबानी का शर्फ हासिल हुआ।
. उम्मे अय्यूब (र.अ) बड़े शौक से आप (ﷺ) की पसंद के मुताबिक तरह तरह के खाने तय्यार करती ; और तमाम घर वाले राहत व आराम पहुंचाने में लगे रहते, हुजूर (ﷺ) घर के निचले हिस्से में तशरीफ़ फर्मा थे, इस लिए अहले खाना बड़ी एहतियात के साथ घर की छत पर रहते और चलने फिरने में आपकी राहत का खास खयाल रखते, एक रोज छत के ऊपर पानी से भरा हुआ घड़ा टूट गया, तो सर्दी के मौसम में लिहाफ़ से पानी को जज्ब किया, ताके पानी आप (ﷺ) के ऊपर न गिरने पाए और खुद बगैर लिहाफ के सर्दी के आलम में पूरी रात गुजारी, सुबह होते ही खिदमते नब्बी में दरख्वासत की के आप (ﷺ) ऊपर की मंजिल पर कयाम फरमाए, तो बड़ा एहसान होगा, इन की इस आजिज़ाना दरख्वासत पर आप (ﷺ) ने मकान के ऊपर कयाम फ़र्माया।
. उम्मे अय्यूब (र.अ) नेक सीरत और इबादत में मसरूफ रहने वाली खातून थीं।
2. अल्लाह की कुदरत
बच्चों की पैदाइश और उन की मुहब्बत
. इन्सान को अल्लाह तआला ने तमाम मखलूकात पर शराफ़त बख्शी, इन्सान अपने दिल में इज्जत का जज्बा रखता है, लेकिन जरा गौर करे के यह इज्जत वाले इन्सान को अल्लाह ने कैसी बेहैसियत चीज़ से पैदा किया,
. अगर वह (sperm) किसी के कपड़े में लग जाए, तो थोड़ी देर भी उस को बर्दाश्त न करे, बल्कि फौरन धो डाले, वही अल्लाह इस गंदे कतरे को अपनी कुदरत से तबदील कर के एक भोला भाला बच्चा बना देता है, जिससे माँ बाप ही नहीं बल्के सभी रिश्तेदार मुहब्बत करते हैं, जिस गंदे कतरे से नफरत थी, उस से बच्चा बनने पर दिलों में मुहब्बत कौन पैदा करता है, यकीनन वह अल्लाह है जो अपनी कुदरत से नफ़रत को मुहब्बत से बदलता है।
3. एक फर्ज के बारे में:
वालिदैन के साथ अच्छा सुलूक करना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“हम ने इन्सानों को अपने वालिदैन के साथ हुस्ने सुलूक करने का हुक्म दिया है।”
[सूर-ए-अहकाफ़ १५]
सबक : वजए हमल से लेकर पैदाइश तक कितनी परेशानी उठानी पड़ती है, फिर पैदाइश के बाद पर्वरिश और तालीम व तरबियत की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। इस लिए वालिदैन की फरमाबरदारी करना फर्ज है।
4. एक सुन्नत के बारे में:
सजदे में उंगलियों को रखने का तरीका
“रसूलुल्लाह (ﷺ) जब रुकूअ फ़र्माते तो (हाथों की) उंगलियों को खुली रखते और जब सजदा फरमाते, तो उंगलियां मिला लेते।”
[तबरानी कबीर : १७४९५, अन शाइल बिन हुज्र (र.अ)]
5. एक अहेम अमल की फजीलत:
सब से अफज़ल सदका
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“सब से अफजल सदका यह है, के एक मुसलमान इल्म सीख कर दूसरे मुसलमान भाई को सिखाए।”
[इब्ने माजा: २४३, अन अबी हुररह(र.अ)]
6. एक गुनाह के बारे में:
किसी मुसलमान का हक मारना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया : “(झूटी) कसम के जरिये मुसलमान का हक छीन लेने वाले पर अल्लाह तआला ने दोजख वाजिब कर दी है और जन्नत हराम कर दी है।” एक शख्स ने अर्ज किया : या रसूलल्लाह! अगर मामूली चीज़ हो?
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : अगरचे पीलू की एक लकड़ी ही क्यों न हो। [मुस्लिम:३५३, अम अबी उमामा(र.अ)]
7. दुनिया के बारे में :
दुनिया के लालची अल्लाह की रहमत से दूर
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “कयामत करीब आ चुकी है और लोग दुनिया की हिर्स व लालच और अल्लाह तआला की रहमत से दूरी में बढ़ते ही जा रहें है।” [मुस्तदरक :७९१७, अन इब्ने मसऊद(र.अ)]
खुलासा : क़यामत के करीब आने की वजह से लोगों को नेकी कमाने की ज़ियादा से ज़ियादा फ़िक्र करनी चाहिए; लेकिन ऐसा करने के बजाए वह दुनिया की लालच में पड़ कर अल्लाह की रहमत से दूर होते जा रहें है।
8. आख़िरत के बारे में:
इन्सानों के आज़ा की गवाही
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जिस दिन अल्लाह के दुश्मनों को दोजख पर जमा किया जाएगा, तो उनकी जमातें बना दी जाएंगी, यहाँ तक के जब वह वहाँ पहूँचेगे, तो उन के कान, उन की आँखें और उनकी खाल, उन के खिलाफ़ उन के किये हुए आमाल की गवाही देंगे।”
[सूर-ए-हामीम सजदा : १९ ता २०]
9. कुरआन से इलाज:
सूर-ए-फ़ातिहा से इलाज
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : “सूर-ए-फ़ातिहा हर मर्ज की दवा है।” [सुनने दारमी : ३४३३]
फायदा: अल्लामा इब्ने कय्यिम (र.अ) फर्माते हैं : अगर जिस्म में कहीं दर्द हो, तो दर्द की जगह हाथ रख कर सात मर्तबा सुर-ए-फातिहा पढ़ें, इन्शाअल्लाह आराम मिलेगा।
10. कुरआन की नसीहत:
बात में इन्साफ़ का खयाल रखा करो
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जब तुम बात किया करो, तो इन्साफ़ का खयाल रखा करो, अगरचे वह शख्स तुम्हारा रिश्तेदार ही हो और अल्लाह तआला से जो अहेद करो उस को पूरा किया करो, अल्लाह तआला ने तुम्हे इस का ताकीदी हुक्म दिया है। ताके तुम याद रखो (और अमल करो)।”
[सूर-ए-अन्आम: १५२]