20 अप्रैल 2024

आज का सबक

सिर्फ पांच मिनिट का मदरसा क़ुरआन व सुन्नत की रौशनी में
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1. इस्लामी तारीख

मुहाजिर और अंसार में भाईचारा

मक्का के मुसलमान जब कुफ्फार व मुशरिकीन की तकलीफों से परेशान हो कर सिर्फ अल्लाह, उसके रसूल और दीने इस्लाम की हिफाजत के लिये अपना माल व दौलत, साज व सामान और महबूब वतन को छोड़ कर मदीना मुनव्वरा हिजरत कर गए। उस मौके पर रसूलल्लाह (ﷺ) ने उन मुसलमानों की दिलदारी के लिये आपस में भाई चारा कायम फ़रमाया।

और मुहाजिरीन (यानी वह सहाबा जो मक्का मुकर्रमा से हिजरत कर के मदीना चले गए) उनमें से एक एक को अन्सार (यानी वह सहाबा जिन्होंने मदीना मुनव्वरा में मुहाजिरीन की नुसरत व मदद की) उन का भाई बना दिया। अन्सार ने अपने मुहाजिर भाई के तआवुन और इज्जत व एहतेराम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और उनके साथ हमदर्दी व मुहब्बत, ईसार व कुर्बानी और मेहरबानी व हुस्ने सुलूक की ऐसी बेहतरीन मिसाल पेश की के आज तक पूरी दुनिया मिल कर उस जैसी मिसाल पेश नहीं कर सकी।

माल व दौलत, जमीन व बागात बल्के हर चीज़ में उन को शरीक कर लिया। मगर मुहाजिरीन ने भी अन्सारी भाइयों का हर मामले में साथ दिया और अपनी रोजी का बजाते खुद इंतजाम करने के लिये तिजारत वगैरा का पेशा भी इख्तियार किया।

बहरहाल यह रिश्त-ए-मुवाखात इस्लामी तारीख में इत्तेहाद व इत्तेफाक और कौमी यकजहती की ऐसी मिसाल थी, जिसने नस्ल व रंग, वतन व मुल्क और तहजीब व तमद्दुन के सारे इम्तियाज को अमली तौर पर खत्म कर डाला।

📕 इस्लामी तारीख

2. अल्लाह की कुदरत/मोजज़ा

शहद का कारखाना

अल्लाह तआला ने अपनी कुदरत से इन्सानों की खिदमत के लिए एक छोटी सी मखलूक शहद की मक्खी बनाई, जो फूलों से रस जमा कर के छत्तों में महफूज़ कर देती है।

अल्लाह तआला ने इस छोटी सी मक्खी को कैसा हुनर दे रखा है के वह अपने रहने के लिए जो छत्ता बनाती है, उस में छोटे छोटे खाने होते हैं और हर खाने में छे कोने होते हैं, जो सारे के सारे एक ही साइज़ के होते हैं और वह फलों के रस ला कर उन्हीं खानों में जमा करती है।

ज़रा गौर कीजिए के अल्लाह तआला ने हमारे लिए खालिस शहद पैदा करने के लिए कितना अच्छा इन्तेज़ाम किया है, यकीनन वह बड़ी कुदरत वाला है।

📕 अल्लाह की कुदरत

3. एक फर्ज के बारे में

नमाज़ में खामोश रहना (एक फर्ज अमल)

हज़रत जैद बिन अरकम (र.अ) फर्माते हैं :

(शुरू इस्लाम में) हम में से बाज़ अपने बाज़ में खड़े शख्स से नमाज की हालत में बात कर लिया करता था,
फिर यह आयत नाजिल हुई:

तर्जमाः अल्लाह के लिये खामोशी के साथ खड़े रहो (यानी बातें न करो)।

फिर हमें खामोश रहने का हुक्म दे दिया गया और बात करने से रोक दिया गया।

📕 तिर्मिज़ी : ४०५

फायदा: नमाज़ में बातचीत न करना और खामोश रहना जरूरी है।

4. एक सुन्नत के बारे में

5. एक अहेम अमल की फजीलत

6. एक गुनाह के बारे में

अहेद और कस्मों को तोड़ने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है:

“यक़ीनन जो लोग अल्लाह तआला से अहेद कर के उस अहेद को और अपनी क़स्मों को थोड़ी सी कीमत पर फरोख्त कर डालते हैं, तो ऐसे लोगों का आखिरत में कोई हिस्सा नहीं और न अल्लाह तआला उनसे बात करेगा और न कयामत के दिन (रहमत की नज़र से) उनकी तरफ देखेगा और न उन को पाक करेगा और उन के लिये दर्दनाक अजाब होगा।”

📕 सूरह आले इमरान : ७७

7. दुनिया के बारे में

दुनिया की चीजें चंद रोजा हैं

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है : 

“जो कुछ भी तुम को दिया गया है, वह सिर्फ चंद रोज़ा ज़िन्दगी के लिये है और वह उस की रौनक है और जो कुछ अल्लाह तआला के पास है, वह इस से कहीं बेहतर और बाकी रहने वाला है। क्या तुम लोग इतनी बात भी नहीं समझते?”

📕 सूरह कसस : ६०

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8. आख़िरत के बारे में

अहले जन्नत की नेअमतें: परहेज़गारों के लिये अच्छा ठिकाना है

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“परहेज़गारों के लिये (आखिरत में) अच्छा ठिकाना है, हमेशा रहने वाले बागात हैं, जिन के दरवाजे उन के लिये खुले हुए होंगे, वह उन बागों में तकिये लगाए बैठे होंगे, वह वहाँ (जन्नत के खादिमों से) बहुत से मेवे और पीने की चीजें मंगाएँगे और उन लोगों के पास नीची नजरों वाली हम उम्र हुरे होंगी।”

📕 सूरह साद: ४९ ता ५२

9. तिब्बे नबवी से इलाज

जिस्म के दर्द का इलाज

हजरत उस्मान बिन अबिल आस (र.अ) ने रसूलुल्लाह (ﷺ) की खिदमत में हाजिर हो कर अपने जिस्म के दर्द को बताया तो रसूलल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जहां दर्द होता हो वहां हाथ रख कर तीन बार “बिस्मिल्लाह” और सात मर्तबा यह दुआ पढ़ो:

( أَعُوذُ بِاللَّهِ وَقُدْرَتِهِ مِنْ شَرِّ مَا أَجِدُ وَأُحَاذِرُ )

“A’udhu Billahi Wa Qudratihi Min Sharri Ma Ajidu Wa Uhadhiru”

तर्जमा: मैं अल्लाह और उस की कुदरत की पनाह चाहता हुँ उस तकलीफ़ से जो मुझे पहुँची है और जिस से मैं डरता हुँ। चुनान्चे उन सहाबी ने जब यह कलिमात कहे तो उन का दर्द खत्म हो गया फिर वह सहाबी अपने घर वालों और दूसरे जरुरतमंदों को हमेशा इन कलिमात की तलकीन करते रहते थे।

📕 मुस्लिम: ५७३७, अन उस्मान बिन अबिल आस (र.अ)

10. क़ुरआन व सुन्नत की नसीहत

दुआए जिब्रईल से इलाज

हजरत आयशा (र.अ) बयान करती है के जब रसूलुल्लाह (ﷺ) बीमार हुए,
तो जिब्रईल ने इस दुआ को पढ़ कर दम किया:

[ ” اللہ کے نام سے ، وہ آپ کو بچائے اور ہر بیماری سے شفا دے اور حسد کرنے والے کے شر سے جب وہ حسد کرے اورنظر لگانے والی ہر آنکھ کے شرسے ( آپ کومحفوظ رکھے ۔ ) ” ]

तर्जुमा: “अल्लाह के नाम पर, वह आपको बचाये और आपको हर बीमारी और हसद की बुराई से, जब वह हसद करता है और हर आंख की बुराई से (जो आपको महफूज़ रखे)।”

📕 मुस्लिम: ५६९९

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