मिना बैतुल्लाह के मशरिक़ में तीन मील के फ़ास्ले पर वादी ए मोहस्सर से जमरह-ए-अकया तक एक वसीअ मैदान है, यहीं पर जब शैतान ने तीन मर्तबा हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) व इस्माईल (अलैहि सलाम) को बहकाने की कोशिश की थी, तो हज़रत इब्राहीम (अलैहि सलाम) ने बिस्मिल्लाह पढ़ कर उस को कंकरी मारी, तो वह रास्ते से हट गया, उसी की याद में यहां पर जमरह-ए-अकबा, जमरह-ए-वुस्ता और जमरहए-ऊला के नाम के तीन सुतून बना दिए गए हैं, उन्हीं जमरात पर हाजी लोग दस से बारह जिलहिज्जा तक कंकरियां मार कर सुन्नते इब्राहीमी की याद ताज़ा करते हैं, मिना से मुत्तसिल वादीए मोहस्सर में हाजियों को कयाम करना मम्नू है, क्यों कि इसी जगह पर अब्रहा नामी बादशाह और उस की फौज को अल्लाह के हुक्म से अबाबील परिन्दों ने कंकरियों के ज़रिए हलाक कर दिया था और अल्लाह तआला ने अपने घर की हिफाज़त फर्माई थी।
कअब बिन अशरफ़ यहूदी के कत्ल के मौके पर जैद बिन मुआज (ऱ.अ) के पैर पर तलवार का जख्म आ गया था। आप (ﷺ) ने उन के जख्म पर अपना मुबारक थूक डाल दिया, तो वह उसी वक्त ठीक हो गया।
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“और (औरतों) के साथ हुस्ने सुलूक से जिन्दगी बसर करो।”
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (ऱ.अ) बयान करते हैं के रसूलुल्लाह (ﷺ)का तल्बिया इस तरह था:
“लब्बैका, अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैका ला शरीका लका लब्बैक, इन्नल-हम्दा वन्ने-मता लका वल-मुल्क, ला शरीका लक”
तर्जमा : मैं हाजिर हूं ऐ अल्लाह! हाजिर हूं, तेरा कोई शरीक नहीं है, मैं हाजिर हूं, हर किस्म की तारीफ़, नेअमतें और मुल्क व हुकूमत का मालिक तू ही है, तेरा कोई शरीक नहीं।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“हज और उम्रह करने वाले लोग अल्लाह की जमात हैं। जब वह लोग दुआ करते हैं, तो अल्लाह तआला उन की दुआ कुबूल फ़र्माता हैं और जब मगफिरत तलब करते हैं, तो अल्लाह तआला उन की मगफिरत फर्मा देते हैं।”
[इब्ने माजा : २८९२, अन अबी हुरैरह (ऱ.अ)]
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“जो लोग रसूलुल्लाह (ﷺ) के हुक्म की खिलाफ़ वर्जी करते हैं, उन को इस से डरना चाहिए के कोई आफ़त उन पर आ पड़े या कोई दर्दनाक अज़ाब उन पर आ जाए।”
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“दुनिया का सामान कुछ ही दिन रहने वाला है और उस। शख्स के लिए आखिरत हर तरह से बेहतर है, जो अल्लाह तआला से डरता हो और (क़यामत) में तुम पर ज़र्रा बराबर भी जुल्म न किया जाएगा।”
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जन्नत में एक दरख्त है, जिस की जड़ें सोने की और उन की शाखें हीरे जवाहिरात की हैं, उस दरख्त से एक हवा चलती है, तो ऐसी सुरीली आवाज़ निकलती है, जिससे अच्छी आवाज़ सुनने वालों ने आज तक नहीं सुनी।”
[तरग़ीब : ५३२२, अन अवी हुरैरह (ऱ.अ)]
हज़रत आयशा (ऱ.अ) बयान करती हैं के जब रसूलुल्लाह (ﷺ) बीमार हुए, तो जिब्रईल ने इस दुआ को पढ़ कर दम किया :
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“जो आदमी तुम से अल्लाह का वास्ता दे कर पनाह मांगे उसे पनाह दे दो और जो आदमी तुम से अल्लाह का वास्ता दे कर सवाल करे उसे दे दो और जो शख्स तुम्हारे साथ कोई भलाई करे तो तुम उस का बदला दे दो, लेकिन अगर तुम उस का बदला देने के लिए कोई चीज़ न पाओ तो उस के लिए दुआ ही करो, यहां तक के तुम को इतमिनान हो जाए के तुम ने उस का बदला दे दिया।”
[नसई : २५६८, अन इन्ने उमर (ऱ.अ)]