1. इस्लामी तारीख
इमाम मुस्लिम (रहमतुल्लाहि अलैहि)
आपका इस्मे गिरामी मुस्लिम बिन हज्जाज और कुनिय्यत अबुल हसन थी। आपकी विलादत वा सआदत सन २०४ हिजरी में अरब के मशहूर कबीला बनू कुशौर में हुई, इब्तेदाई तालीम अपने वतन नीसापूर में हासिल की जब कुछ बड़े हुए तो इल्म के लिये दूसरे ममालिक मक्का, कूफ़ा, इराक, मिस्र वगैरा का सफ़र शुरू किया और वहाँ जाकर बड़े बड़े मुहद्दिसीन की मजलिसों में शिर्कत की और अपनी इल्मी प्यास बुझाने लगे, यहाँ तक के लोग आपको वक़्त की चंद जलीलुल कद्र हस्तियों में शुमार करने लगे।
आपने अलग अलग फ़न में कई किताबें लिखी है, जिनमें से हदीस शरीफ़ की एक किताब “सही मुस्लिम” है, जिस को शुरू दिन से वह मकाम व मर्तबा और कुबूलियत हासिल हुई के इस का शुमार कुतुबे सित्ता की सही तरीन किताबों में होने लगा, रहती दुनिया तक के तमाम इन्सानों बिलखुसूस मुसलमानों के लिये यह किताब अजीमुश्शान तोहफ़ा है, जो अपनी हुस्ने तरतीब में बे मिसाल और सेहत में ला जवाब है।
इस में तकरीबन चार हजार हदीसें हैं, जिस को इमाम मुस्लिम ने तीन लाख हदीसों में से छान कर लिखा है, आपने २५ रजबुल मुरज्जब इतवार के दिन सन २६१ हिजरी में अपने वतन नीसापूर में इन्तेकाल फर्माया।
2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा
कंधे का अच्छा हो जाना
एक गज़वे में हजरत खुबैब बिन यसाफ़ (र.अ) को कंधे और गर्दन के बीच में तलवार लगी, जिस की वजह से वह हिस्सा लटक पड़ा, वह आप के पास आए तो हुजूर (ﷺ) ने उस हिस्से पर अपना लुआबे मुबारक (थूक) लगाया और फिर उस को जोड़ा, तो वह चिपक कर ठीक हो गया।
📕 बैहक़ी फी दलाइलिन्नाव्या : २४२५
3. एक फर्ज के बारे में
नमाजे अस्र की अहमियत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया :
“जिस शख्स ने अस्र की नमाज़ छोड़ दी, तो उस का अमल जाया हो गया।”
📕 बुखारी: ५५३
फायदा: दिन और रात में तमाम मुसलमानों पर पाँचों नमाज़ों को अदा करना तो फ़र्ज़ है ही, लेकिन खास तौर से अस्र की नमाज छोड़ने वालों के हक में रसूलुल्लाह (ﷺ) का वईद बयान फर्माना इस की अहेमियत को और बटा देता है।
4. एक अहेम अमल की फजीलत
रास्ते से तकलीफ़ देह चीज़ को हटाने की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“एक आदमी का इन्तेकाल हो गया, उसने कोई नेकी नहीं की थी, हां! उस ने रास्ते से कांटे की टहनी उठा कर फेंकी थी या (रास्ते पर) कोई दरख्त था जिसे उसने काट डाला था और उसे किनारे डाल दिया था, अल्लाह तआला ने उसे इस के बदले में जन्नत में दाखिल कर दिया।”
📕 अबू दाऊद : ५२४५, अन अबी हुरैरह (र.अ)
5. एक गुनाह के बारे में
कुफ्र व नाफर्मानी की सजा
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“जो शख्स मुंह मोड़ेगा और कुफ्र करेगा, तो अल्लाह तआला उस को बड़ा अज़ाब देगा फिर उन को हमारे पास आना है। फिर हमारे ज़िम्मे उन का हिसाब लेना है।”
6. दुनिया के बारे में
काफ़िरों के माल से तअज्जुब न करना
कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :
“तुम उन (काफ़िरों) के माल और औलाद से तअज्जुब में मत पड़ना, कयोंकि अल्लाह तआला दुनियाही की ज़िंदगी में उन काफ़िरों को अज़ाब में मुब्तला करना चाहता है और जब उनकी जान निकलेगी, तो कुफ्र की हालत में मरेंगे।”
खुलासा : काफ़िरों को माल व औलाद जो दी जाती है, उन की ज़ियादती से किसी को तअज्जुब नहीं होना चाहिए, क्योंकि उन्हें अल्लाह तआला उन चीज़ों के ज़रिए उन की नाफ़र्मानी और बगावत की वजह से अज़ाब देना चाहता है।
7. आख़िरत के बारे में
काफ़िरों की हालत
रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“काफ़िर अपनी ज़बान को एक या दो फरसख (यानी तकरीबन बारा किलोमीटर) तक जमीन पर घसीटते हुए चलेगा, और लोग उस को रौंदते हुए उस पर चलेंगे।”
📕 तिर्मिज़ी : २५८०, अन इब्ने उमर (र.अ)
8. तिब्बे नब्बीसे इलाज
ऑपरेशन से फोड़े का इलाज
हजरत अस्मा बिन्ते अबी बक्र (र.अ) कहती हैं के : मेरी गर्दन में एक फोड़ा निकल आया, जिसका जिक्र हुजूर (ﷺ) से किया गया, तो आप (ﷺ) ने फ़रमाया :
“उसे खोल दो (फोड़ दो) और छोड़ो मत, वरना गोश्त खाएगा और खून चूसेगा, (यानी उसका खराब माद्दा अगर वक्त पर न निकाला गया तो ज़ख्म को और ज़ियादा बढाकर गोश्त और खून को बिगाड़ता रहेगा)।”
📕 मुस्तदरक हाकिम : ८२५०
9. नबी (ﷺ) की नसीहत
जो ताक़त रखता है वो निकाह जरुरु करे
रसूलअल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया:
“ऐ नौजवानों की जमात! तुम में से जो नान व नफ़्का की ताकत रखता हो उसे ज़रूर शादी कर लेना चाहिए इस लिए के यह आँख और शर्मगाह की हिफ़ाज़त का ज़रिया है और जो इस की ताकत नहीं रखता, तो उसे चाहिए के रोजा रखे, इस लिए के यह उस की शहवत को कम करने में मोअस्सिर है।”
📕 बुखारी : ५०६६, अब्दुल्लाह (र.अ)
← PREV | ≡ | NEXT → |
3. जिल हिज्जा | LIST | 5. जिल हिज्जा |