28. जमादी-उल-अव्वल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

28 Jamadi-ul-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

गज्व-ए-ख़न्दक में सहाबा की कुरबानी

ग़ज़्व-ए-खन्दक में मारिकीन ने दस हजार का लश्कर ले कर मदीने का मुहासरा कर दोनों तरफ से तीर अन्दाज़ी और संगबारी का तबादला होते हुए दो हफ्ते गुजर गए, तो कुरैश ने तमाम फौज को जमा कर के हमला करने का मन्सूबा बनाया, इत्तेफाक से एक मकाम पर खन्दक़ की चौडाई कम थी, तो अरब का मशहूर बहादुर अम्र बिन अब्देवुद्ध और उसके साथियों ने घोड़ों को एड लगाकर खन्दक को पार कर लिया और मुसलमानों को तीन मर्तबा मुकाबले के लिये ललकारा, तो हजरत अली (र.अ)  मुकाबले के लिये आगे बढ़े, थोड़ी देर दोनों ने अपने अपने जौहर दिखाए, बिलआखिर हजरत अली (र.अ)  ने उस को निमटा दिया, यह मन्जर देख कर मुश्रिकीन पर रोब तारी हो गया और मुकाबले की ताबनला कर भाग गए, हमले का यह बड़ा सख्त दिन था, कुफ्फार व मुश्रिकीन की तरफ से नेजों और पत्थरोंकी बारिश हो रही थी।

चुनान्चे एक माह के तवील मुहासरे के बाद अल्लाह तआला की गैबी मदद आई और ऐसी ठंडी व तेज हवा चली के उन के खेमे उखड़ गए, लश्करों में अफरा तफरी मच गई मौसम की सख्ती, खाने पीने की किल्लत की वजह से वह मजबूर हो कर भाग गए।

📕 इस्लामी तारीख

To be Continued ...


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजिजा

हुजूर (ﷺ) की दुआ की बरकत

एक मर्तबा रसूलुल्लाह (ﷺ) ने हज़रत अली (र.अ) को काज़ी बना कर यमन भेजा, तो हज़रत अली कहने लगे: या रसूलल्लाह! मैं तो एक नौजवान आदमी हूँ मैं उन के दर्मियान फैसला (कैसे) करूँगा? हालाँकि मैं ! तो यह भी नहीं जानता के फैसला क्या चीज है ?

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने मेरे सीने पर अपना हाथ मुबारक मारा और फर्माया : ऐ अल्लाह ! इस के दिल को खोल दे और हक बात वाली जबान बना दे, हजरत अली फरमाते हैं के अल्लाह की कसम ! उस के बाद मुझे कभी भी दो आदमियों के दर्मियान फैसला करने में शक और तरहुद नहीं हुआ।

📕 बैहक़ी फी दलाइलिन्नुबुव्वह : २१३४, अन अली (र.अ)


3. एक फर्ज के बारे में

शौहर की विरासत में बीवी का हिस्सा

कुरआन में अल्लाह तअला फर्माता है :

"उन औरतों के लिये तुम्हारे छोड़े हुए माल में चौथाई हिस्सा है, जब के तुम्हारी कोई औलाद न हो अगर तुम्हारी औलाद हो तो उन के लिये तुम्हारे छोड़े हुए माल में आठवाँ हिस्सा है (उन को यह हिस्सा) तुम्हारी वसिय्यत और कर्ज को अदा करने के बाद मिलेगा।"

📕 सूरह निसा: १२

फायदा : शौहर के इन्तेकाल के बाद अगर उस की कोई औलाद न हो, तो बीवी को शौहर के माल का चौथाई हिस्सा देना और अगर कोई औलाद हो, तो आठवाँ हिस्सा देना जरूरी है।


4. एक सुन्नत के बारे में

गम के वक्त यह दुआ पढ़े

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने ग़म व मुसीबत के वक्त इस दुआ को पढ़ने के लिये फर्मायाः

إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ اللَّهُمَّ أْجُرْنِي فِي مُصِيبَتِي وَأَخْلِفْ لِي خَيْرًا مِنْهَا ‏

( inna Lillahi Wa inna ilaihi rajeuun , Allahumma Ajurni fi Musibati Wa Akhlifli Khairam Minha )

तर्जमा : हम सब अल्लाह की मिलकियत में हैं और उसी की तरफ जाने वाले हैं, या अल्लाह ! तू मुझे मेरी इस मुसीबत में सवाब दे और  मुझे इससे बेहतर बदला इनायत फ़र्मा।

📕 मुस्लिम २१२६


5. एक अहेम अमल की फजीलत

अल्लाह के रास्ते में मौत की फ़ज़ीलत

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

"जो अल्लाह के रास्ते में कत्ल किया जाए, या उसको मौत आजाए, तो वह (सीधा) जन्नत में जाता है।"

📕 मुस्तदरक हाकिम: २५२१, अन उमर (र.अ)


6. एक गुनाह के बारे में

सरगोशी करने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

"ऐसी सरगोशी (खुफिया मश्वरा) सिर्फ शैतान की तरफ से है जो के मुसलमानों को रंज में मुब्तला कर दे, और वह अल्लाह की मशिय्यत व इरादे के बगैर (मुसलमानों को) कुछ भी नुकसान नहीं पहुँचा सकता और मुसलमानों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिये।"

📕 सूरह मुजादला: १०


7. दुनिया के बारे में

आखिरत के मुकाबले में दुनिया से राज़ी होने का वबाल

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

"क्या तुम लोग आख़िरत की जिन्दगी के मुकाबले में दुनिया की ज़िन्दगी पर राजी हो गए? दुनिया का माल व मताअ तो आखिरत के मुकाबले में कुछ भी नहीं।"

📕 सूरह तौबा: ३८

यानी मुसलमान के लिये मुनासिब नहीं है के वह दुनिया ही की जिन्दगी पर राजी हो जाए या दुनिया के थोड़ेसे साज़ व सामान की खातिर अपनी आखिरत को बरबाद कर दे।


8. आख़िरत के बारे में

जन्नतुल फिरदौस का दर्जा

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

"जब तुम अल्लाह तआला से सवाल करो, तो जन्नतुल फिरदौस का सवाल किया करो, क्योंकि वह जन्नत का सबसे अफजल और बुलंद दर्जा है और उसके ऊपर रहमान का अर्श है और उसीसे जन्नत की नहरें निकलती हैं।"

📕 बुखारी: ७४२३, अन अबी हुरैरा (र.अ)


9. तिब्बे नबवी से इलाज

सफर जल (बही, Pear) से इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

"सफर जल (यानी बही) खाया करो, क्योंकि यह दिल को राहत पहुँचाता है।"

📕 इब्ने माजा: ३३६९


10. क़ुरान की नसीहत

ग़रीबों से मुहब्बत और उन के करीब रहने की वसिय्यत

हज़रत अबू जर (र.अ) फर्माते हैं के मुझे मेरे दोस्त रसूलुल्लाह (ﷺ) ने वसिय्यत फर्माई :

"मैं अपने से जियादा मालदार की तरफ न देखू और अपने से कम दर्जा वाले (कम मालदार) की तरफ देखू और ग़रीबों से मुहब्बत और उन के करीब रहने की वसिय्यत फर्माई और सिला रहमी करने की वसिय्यत फ़रमाई अगरचे वह तुमसे पीठ फेरे।"

📕 सहीह इब्ने हिम्बान : ४५०, अन अबी जर (र.अ)

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