18 जमादी-उल-अव्वल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

18 Jumada-al-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

शराब की हुरमत का हुक्म

अल्लाह तआला ने मुसलमानों को इस्लामी माहौल में जिन्दगी गुजारने और अहकामे इलाही पर अमल करने के लिये मदीने का साजगार माहौल अता किया, ताके जमान-ए-जाहिलियत की तमाम रस्मों और बुरी आदतों को खत्म कर के इस्लामी मुआशरे का अमली नमूना दुनिया के सामने आ जाए, उन की सब से बुरी आदत शराब नोशी थी, उस की मुहब्बत अरबों की घुट्टी में पड़ी हुई थी,

चुनान्चे शराब और जूए के बारे में पहला हुक्म सन ३ हिजरी में नाजिल हुआ के उस में भलाई के मुकाबले में बुराई और गुनाह जियादा है, हत्ता के अकल व होश तक को खत्म कर देती है, चुनान्चे बाज लोगों ने उसे छोड़ दिया,

फिर दूसरा हुक्म नाजिल हुआ के शराब और नशे की हालत में नमाज के करीब मत जाओ, चुनान्चे सहाब-ए-किराम ने उसको तर्क कर दिया के जब नशे की हालत में नमाज नहीं पढ़ सकते तो उस से बचना चाहिये,

फिर शराब के मुतअल्लिक सूर-ए-माइदा की तीसरी आयत नाजिल हुई, उस में क़तई तौर पर शराब को हराम करार दे दिया गया,

सहाब-ए-किराम के ईमानी जजबे का हाल यह था के हुक्म मिलते ही शराब के बरतन और मटके तोड़ डाले यहाँ तक के मदीना की गलियों और सडकों पर शराब बहती नजर आ रही थी।

To be Continued…

📕 इस्लामी तारीख


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

हज़रत साबित (र.अ) के लिये पेशीनगोई

आप (ﷺ) ने हज़रत साबित बिन कैस (र.अ) से फरमाया था:

“क्या तुम इस पर राजी नहीं के एक अच्छी जिन्दगी बसर करो और शहीद की मौत मरो
और फिर जन्नत में दाखिल हो जाओ?

तो हजरत साबित ने फरमाया : या रसूलल्लाह (ﷺ) हाँ क्यों नहीं।

चुनान्चे हज़रत साबित (र.अ) ने अच्छी जिन्दगी बसर की
और फिर अल्लाह की राह में शहीद हो गए।”

📕 मुअजमे कबीर लित तबरानी : १२९६


3. एक फर्ज के बारे में

विरासत में लड़की का हिस्सा

कुरआन में अल्लाह तआला फ़र्माता है :

“अल्लाह तआला तुमको तुम्हारी औलाद के हक में हुक्म देता है के 1 लड़के का हिस्सा 2 लड़कियों के हिस्से के बराबर है।”

📕 सूरह निसा: ११

खुलासा: वालिदैन की विरासत में लड़के के 2 हिस्से और लडकी का 1 हिस्सा होता है, जिस का अदा करना फर्ज है।


4. एक सुन्नत के बारे में

फसाद करने वालों पर गलबा पाने की दुआ

फितना व फसाद करने वालों पर गलबा पाने के लिये क़ुरआन की इस दुआ का एहतेमाम करना चाहिये:

۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞

قَالَ رَبِّ انصُرْنِي عَلَى الْقَوْمِ الْمُفْسِدِينَ

“Rabbi onsurnee AAala alqawmi almufsideena”

तर्जुमा: ऐ मेरे परवरदिगार ! मुझे फसाद करने वाली कौम पर गलबा अता फर्मा।

📕 सूरह अंकबूत 29:30


5. एक अहेम अमल की फजीलत

अपने घरवालों पर खर्च करने की फ़ज़ीलत

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :

“एक वह दीनार जिसे तुमने अल्लाह के रास्ते में खर्च किया और एक वह दीनार जिसे तुमने किसी गुलाम के आज़ाद करने में खर्च किया और एक वह दीनार जो तुमने किसी ग़रीब को सदका किया और एक वह दीनार जो तुम ने अपने घर वालों पर खर्च किया

तो इन में से उस दीनार का अज्र व सवाव सबसे ज़ियादा है, जो तुमने अपने अहल व अयाल पर खर्च किया।”

📕 मुस्लिम : २३११


6. एक गुनाह के बारे में

इन्कार करने वालो का अजाब

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“जो लोग हमारी आयतों का इन्कार करते रहे हैं, तो वही बडबख्त हैं, (जिन को बाएँ हाथ में नाम-ए-आमाल दिया जाएगा) उन पर चारों तरफ से बंद की हुई आग को मुसल्लत कर दिया जाएगा।”

📕 सूरह बलद: १९ ता २०


7. दुनिया के बारे में

अपने बीवी बच्चों से होशियार रहो

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“ऐ ईमान वालो ! तुम्हारी बाज़ बीवियाँ और बाज़ औलाद तुम्हारे हक़ में दुश्मन हैं, तो तुम उन से होशियार रहो।”

वजाहत: बीवी बच्चे बाज़ मर्तबा दुनियावी नफे के लिये शरीअत के खिलाफ कामों का हुक्म देते हैं, उन्हीं लोगों को अल्लाह तआला ने दीन का दुश्मन बताया है और उन के हुक्म को पूरा न करने की हिदायत दी है।

📕 सूरह तग़ाबुन : १४


8. आख़िरत के बारे में

जहन्नम की आग की सख्ती

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“दोजख को एक हजार साल तक दहकाया गया, तो वह लाल हो गई, फिर एक हजार साल तक दहकाया गया तो वह सफेद हो गई, फिर एक हजार साल तक दहकाया गया तो अब वह बहुत जियादा काली हो गई।”

📕 शोअबुल ईमान : ८१२


9. तिब्बे नबवी से इलाज

तबीअत के मुवाफिक ग़िज़ा से इलाज

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जब मरीज़ कोई चीज खाना चाहे, तो उसे खिलाओ।”

📕 कन्जुल उम्माल : २८१३७

फायदा: जो गिजा चाहत और तबी अत के तकाजे से खाई जाती है, वह बदन में जल्द असर करती है, लिहाजा मरीज़ किसी चीज़ के खाने का तकाज़ा करे, तो उसे खिलाना चाहिये। हाँ अगर गिजा ऐसी है के जिस से मर्ज बढ़ने का कवी इमकान है, तो जरूर परहेज करना चाहिये।


10. नबी की नसीहत

मेहमान की दावत व मेहमान नवाजी तीन दिन है

रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जो आदमी अल्लाह और यौमे आखिरत पर ईमान रखता हो, उसे अपने मेहमान का इकराम करना चाहिये, एक दिन व रात की खिदमत उस का जाइज हक़ है और उस की दावत व मेहमान नवाजी तीन दिन है, उस के बाद की मेजबानी उस के लिये सदक़ा है और मेहमान के लिये जियादा दिन ठहर कर मेजबान को तंगी में मुब्तला करना जाइज नहीं है।”

📕 बुखारी : ६१३५

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