16 जमादी-उल-अव्वल | सिर्फ़ 5 मिनट का मदरसा

16 Jumada-al-Awwal | Sirf Panch Minute ka Madarsa

1. इस्लामी तारीख

ग़ज़व-ए-उहुद में सहाबा-ए-किराम की बेमिसाल क़ुरबानी

गजवा-ए-उहुद में हुजूर (ﷺ) के सहाबा ने जिस वालिहाना मुहब्बत व फिदाकारी का मुजाहरा किया उस का तसव्वुर भी रहती दुनिया तक आलमे इस्लाम को रूहानी जज़्बे से माला माल करता रहेगा।

जब मुश्रिकीन ने आप (ﷺ) का घेराव कर लिया तो फ़रमाया : मुझ पर कौन जान कुरबान करता है ?

जियाद बिन सकन (र.अ) चदं अन्सारियों के साथ आगे बढ़े और यके बाद दीगरे सातों ने आप (ﷺ) की हिफाजत में अपने आप को कुर्बान कर दिया। अब्दुल्लाह बिन कमीआ ने जब तलवार का वार किया तो उम्मे अम्मारा हुजूर (ﷺ) के सामने आ गईं और उस के वार को अपने कन्धे पर रोक लिया।

हज़रत अबू दुजाना (र.अ) ढाल बन कर खड़े हो गए, यहाँ तक के उन की पीठ तीरों से छलनी हो गई। हज़रत तलहा (र.अ) ने दुश्मन के तीर और तलवार हाथों पर रोकी, जिस की वजह से उन का एक हाथ कट कर गिर गया।

दुश्मन की एक जमात हमले के लिये आगे बढ़ी तो तन्हा हज़रत अली (ﷺ) ने उन का रुख फेर दिया।

ग़र्ज सहाब-ए-किराम (र.अ) की हुजूर (ﷺ) से वफादारी और जाँनिसारी ने अपनी शिकस्त को फतह में तबदील कर दिया।

To be Continued …

📕 इस्लामी तारीख


2. हुजूर (ﷺ) का मुअजीजा

हाथ से ख़ुश्बू निकलना

۞ हदीस: हज़रत उम्मे सलमा (र.अ) फर्माती हैं के,

जिस दिन रसूलुल्लाह (ﷺ) की वफात हुई, उस दिन मैंने हुजूर (ﷺ) के सीन-ए-मुबारक पर हाथ रखा था, उस के बाद एक जमाना गुजर गया, मैं उस हाथ से खाती रही और उस को धोती रही, लेकिन मेरे उस हाथ से मुश्क की खुश्बू ख़त्म नहीं हुई।

📕 बैहकी की दलाइलिन्नुबुव्वह : ३१५१


3. एक फर्ज के बारे में

मजदूर को पूरी मजदूरी देना

۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“मैं क़यामत के दिन तीन लोगों का मुक़ाबिल बन कर उन से झगडूंगा, (उन तीन में से एक) वह शख्स है जिसने किसी को मजदूरी पर रखा और उससे पूरा-पूरा काम लिया मगर उसको पूरी मजदूरी नहीं दी।”

📕 इब्ने माजाह : २४४२

खुलासा: मजदूर को मुकम्मल मजदूरी देना वाजिब है।


4. एक सुन्नत के बारे में

बदअख़्लाक़ी से बचने की दुआ

۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) यह दुआ फरमाते थे :

‏اللَّهمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِن منْكَرَاتِ الأَخلاقِ، والأعْمَالِ، والأَهْواءِ‏

( Allahumma Inni A’udhu Bika Min Munkaratil-Akhlaqi Wal-Amali Wal-Ahwa )

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मै बुरे अख्लाक और ख्वाहिशात से तेरी पनाह चाहता हु।

📕 तिर्मिज़ी : ३५९१


5. एक अहेम अमल की फजीलत

खुशू व खुजू से नमाज़ अदा करना

۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जो कोई खूब अच्छी तरह वुजू करे और दो रकात नमाज खुशू खुजू के साथ पड़े तो उस के लिये जन्नत वाजिब हो गई।”

📕 अबू दाऊद : ९०६


6. एक गुनाह के बारे में

यतीमों का माल खाने का गुनाह

कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :

“यतीमों के माल उन को देते रहा करो और पाक माल को नापाक माल से न बदलो और उन का माल अपने मालों के साथ मिला कर मत खाओ ऐसा करना यकीनन बहुत बड़ा गुनाह है।”

📕 सूरह निसा : २


7. दुनिया के बारे में

नाफ़र्मानों से नेअमतें छीन ली जाती हैं

कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है :

“वह नाफरमान लोग कितने ही बाग, चश्मे, खेतियाँ और उम्दा मकानात
और आराम के सामान जिन में वह मजे किया करते थे,
(सब) छोड़ गए,
हम ने इसी तरह किया और उन सब चीज़ों का वारिस एक दूसरी कौम को बना दिया।
फिर उन लोगों पर न तो आसमान रोया और न ही जमीन
और नही उन को मोहलत दी गई।”

📕 सूर दुःखान: २५ ता २९


8. आख़िरत के बारे में

अहले ईमान और क़यामत का दिन

۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) से पचास हज़ार साल के बराबर दिन (यानी क़यामत) के बारे में पूछा गया के वह कितना लम्बा होगा? तो रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“उस ज़ात की कसम जिस के कब्जे में मेरी जान है ! वह दिन मोमिन के लिये इतना मुख्तसर कर दिया जाएगा, जितनी देर में यह दुनिया में फर्ज़ नमाज अदा त किया करता था।”

📕 मुस्नदे अहमद : ११३२०


9. तिब्बे नबवी से इलाज

कद्दू (दूधी) से इलाज

۞ हदीस: हज़रत अनस (र.अ) फर्माते हैं के,
“मैंने खाने के दौरान रसूलुल्लाह (ﷺ) को देखा के
प्याले के चारों तरफ से कद्दू तलाश कर के खा रहे थे,

उसी रोज़ से मेरे दिल में कद्दु की रग़बत पैदा हो गई।”

📕 बुख़ारी : ५३७९

फायदा : अतिब्बा ने इस के बे शुमार फवायद लिखे हैं और अगर बही के साथ पका कर इस्तेमाल किया जाए तो
बदन को उम्दा ग़िज़ाइयत बख्शता है, गरम मिजाज और बुख़ार जदा लोगों के लिये यह गैर मामूली तौर पर नफा बख्श है।


10. नबी की नसीहत

पडोसी का इकराम किया करो

۞ हदीस: रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया :

“जो अल्लाह और आखिरत के दिन पर ईमान रखता हो उसे अपने पडोसी का इकराम करना चाहिये।

सहाबा ने पुछा: या रसुलल्लाह (ﷺ) पड़ोसी का क्या हक़ है ?

फरमाया : अगर वह तुम से कुछ माँगे तो उस को दे दिया करो।”

📕 तरगीब व तरहीब : ३६५७

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