1. इस्लामी तारीख
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हजरत सअद बिन अबी वक्फास (र.अ) की करामत
हजरत उमर फारुक (र.अ) ने अपने जमान-ए-खिलाफत में किसरा को फतह करने के लिए हज़रत सअद बिन अबी वक्कास (र.अ) की इमारत में एक बड़ा लशकर ईरान की तरफ रवाना फर्माया।
रास्ते है उन्हें दर्याए दज्ला मिला उस को पार करने के लिए उनके पास न कोई कश्ती थी और न ही कोई दूसरा रास्ता। और दर्या का पानी भी काफी चढ़ा हुआ था।
हजरत सअद (र.अ) ने लोगों को दर्या पार करने की दावत दी। इस पर एक जमात तय्यार हो गई और उस ने अपने घोड़े दर्या में डाल दिए।
फिर हज़रत सअद ने तमाम लोगों को दर्या में कूद जाने का हुक्म दिया। इस पर तमाम लोग दर्याए दज्ला में अपने घोड़ों के साथ कूद पड़े, घोड़े दर्या में इस तरह चल रहे थे जैसे जमीन पर हों और वह लोग दर्या पार करते हुए आपस में इस तरह बातें कर रहे थे जिस तरह जमीन पर चलते हुए किया करते है ! हालांके दर्या बहुत जोश में था।
ईरानियों ने जब यह मन्जर देखा तो घबरा गए और अपना साजो सामान छोड़ कर भाग निकले और मुसलमानों को अल्लाह ने फतह दी।
उन की वफ़ात सन ५५ हिजरी में हजरत मुआविया (र.अ) के दौरे खिलाफत में हुई।
2. अल्लाह की कुदरत
नींद अल्लाह की अज़ीम नेअमत
अल्लाह तआला ने इन्सान को बेशुमार नेअमतों से नवाजा है, उन्हीं में से एक अजीम नेअमत नींद है, जब आदमी सो जाता है तो उस का एहसास व शुऊर खत्म हो जाता है और आदमी अपने गिर्द व पेश बल्के अपने जिस्म के अहवाल से भी बेखबर हो जाता है।
गोया उस वक्त यह क़ुव्वते उस से लेली जाती है मगर मौत की तरह नींद देकर फिर जीती जागती ज़िन्दगी कौन अता करता है?
यकीनन यह अल्लाह तआला ही अता करता है।
3. एक फ़र्ज़ के बारे में
नमाजे अस्र की अहमियत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जिस शख्स ने अस्र की नमाज़ छोड़ दी, तो उस का अमल जाया हो गया।”
[बुखारी : ५५३. अन बुरैया (र.अ)]
वजाहत: दिन और रात में तमाम मुसलमानों पर पाँचों नमाजों को अदा करना तो फर्ज है ही, लेकिन ख़ास तौर से अस्त्र की नमाज़ छोड़ने वालों के हक में रसूलल्लाह (ﷺ) का वईद बयान फर्माना इस की अहमियत को मजीद बढ़ा देता है,
चुनान्चे हमारे लिए जरूरी है के हम अस्र की नमाज वक्त पर अदा करें और कजा न करें। अल्लाहतआला हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौफीक दे , अमीन।
4. एक सुन्नत के बारे में
सामने वाले की बात पूरी तवज्जोह से सुनना
जब आप (ﷺ) से कोई मुलाकात करता और गुफ्तगू करता, तो आप (ﷺ) उस की तरफ से तवज्जोह न हटाते, यहाँ तक के वह आप से रुख न हटा लेता।
[ इब्ने माजा: ३७१६, अन अनस (र.अ) ]
5. एक अहेम अमल की फजीलत
मुसाफा करने की फ़ज़ीलत
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
“जब दो मुसलमान मिलते हैं और एक दूसरे से मुसाफह करते हैं (यानी हाथ मिलाते हैं) तो उनके जुदा होने से पहले पहले दोनो की मगफिरत कर दी जाती है।”
[ तिरमिजी : २७२७, अन बरा बिन आजिब (र.अ) ]
6. एक गुनाह के बारे में
सहाबा की सीरत को दागदार बनाने का गुनाह
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“मेरे सहाबा के बारे में अल्लाह से डरते रहना, मेरे बाद उनको निशाना मत बनाना।
जो उनसे मुहब्बत करेगा वह मुझसे मुहब्बत की बिना पर उन से मुहब्बत करेगा
और जो उनसे बुग्ज रखेगा वह मुझसे बुग्ज की बिना पर उन से बुग्ज रखेगा
और जिसने उन को तकलीफ दी उसने मुझ को तकलीफ दी
और जिसने मुझ को तकलीफ दी गोया उस ने अल्लाह को तकलीफ पहुँचाई
और जिसने अल्लाह को तक्लीफ पहुँचाई
करीब है के अल्लाह तआला उसको अजाब में पकड़ ले।”
[ तिर्मिज़ी : ३८६२ ]
7. दुनिया के बारे में
बेजा जीनत से बचना
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फर्माया :
“आदमी के लिए मुनासिब नहीं के वह
नक्श व निगार वाले घर में दाखिल हो।”
[ बैहकी शोअबुल ईमानः १०३२६ ]
8. आखिरत के बारे में
कयामत के रोज़ सब को जिंदा किया जाएगा
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“(दोबारा) सूर फूंका जाएगा, तो सब के सब कब्रों से निकल कर अपने रब की तरफ दौड़ पड़ेंगे। वह कहेंगे: हाय हमारी बरबादी! हमको हमारी ख्वाब गाहों से किस ने उठा दिया?
(जवाब मिलेगा) यह वही है जिसका रहमान (अल्लाह) ने वादा किया था और रसूलों ने सच कहा था। बस वह एक जोर की आवाज़ होगी, जिस से सब जमा हो कर हमारे पास हाजिर कर दिए जाएंगे।”
9. कुरआन की नसीहत
सब के साथ हुस्ने सुलूक (अच्छा बर्ताव) करो
कुरआन में अल्लाह तआला फर्माता है :
“तुम सब अल्लाह की इबादत करो, उस के साथ किसी को शरीक न करो, माँ बाप, रिश्तेदारों, यतीमों, मिस्कीनों, करीबी पड़ोसियों और दूर के पड़ोसियों, पास बैठने वालों, मुसाफिरों और जो लोग तुम्हारे मातहत हों, सब के साथ हुस्ने सुलूक (अच्छा बर्ताव) करो और अल्लाह तआला तकब्बुर (घमंड) करने वाले और शेखी (बढ़ाई) मारने वाले को बिलकुल पसंद नहीं करता।
[ सूरह निसा:३६ ]