शेख अब्दुल कादिर जीलानी रह. (मुख़्तसर सिरत व इरशादात)

शेख अब्दुल कादिर जीलानी रह. की मुख़्तसर सिरत, आपकी विलायत व बुजुर्गी और आपके अकीदतमंद मुरीदों के अक़ीदे का मुअजना आप ही के इरशादात की रौशनी में।

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Shaykh Abdul Qadir Jilani (R.A) Ki Mukhtasar Sirat aur Irshadaat (Sayings and Quotes)

۞ बिस्मिल्लाह-हिर्रहमान-निर्रहीम ۞

अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान निहायत रहम वाला है। सब तारीफे अल्लाह तआला के लिये हैं जो सारे जहानों का पालनहार है। हम उसी की तारीफ करते हैं और उसी से मदद और माफी चाहते हैं। अल्लाह की लातादाद सलामती, रहमतें और बरकतें नाजिल हों मुहम्मद (ﷺ) पर, आप की आल व औलाद और असहाब रजि. पर। व बअद!


शेख अब्दुल कादिर जीलानी रह. (सिरत व इरशादात)

पैदाइश : 

आप रह. का नाम अब्दुल कादिर, कुन्नियत अबुमुहम्मद और लकब मुहययद्दीन था। वालिद का नाम मूसा और दादा का यहया था। वालिदा का नाम फातेमा था। आप 470 हिजरी में बगदाद के करीब कस्बे जीलान में पैदा हुए। आपके बचपन ही में वालिद का इन्तेकाल हो गया। 488 हिजरी में 18 साल की उम्र में इल्म हासिल करने की गरज से बगदाद आए और अपने जमाने के बड़े-बड़े उलेमा से इल्म हासिल किया। फिर यही के हो रहे । बगदाद ही में दीने इस्लाम की दावत देते रहे और तब्लीग करते रहे।

रबीउस्सानी 561 हिजरी में 91 साल की उम्र में आप फौत हुए। अल्लाह तआला शैख रह की कब्र को नूर से रोशन करे और उन्हें जन्नतुल फिरदौस में जगह अता फरमाए।आमीन!


आपका अक़ीदा :

आपने कई किताबें लिखीं। उनमें गुन्यातत्तालिबीन उर्फ गुन्या और फतह अल गैब ज्यादा मशहूर हुई। इस पर्चे का ज्यादातर हिस्सा आपकी मशहूर तस्नीफ “गुन्या’ ही से माखूज है। आपकी वफात के बाद आपके अकीदतमंद आपको मुख्तलिफ अल्काबात जैसे मेहबूबे सुब्हानी, गौसे आजम, कुतुबे रब्बानी, पीराने पीर व दस्तगीर वगैरह से पुकारने लगे जबकि आपकी मजलिस में सुन्नते रसूल (ﷺ) की सख्ती से पाबन्दी की जाती थी। सिर्फ अल्लाह और उसके रसूल सल्ल, की इताअत का दर्स दिया जाता था। खानकाही अन्दाज के रसूम और बिदआत के लिए वहां कोई जगह न थी।

शैख रह. अक्सर फरमाते :

“सुन्नते रसूल (ﷺ), की पैरवी करो, बिदअत से बचकर रहो। अल्लाह की और उसके रसूल की इताअत करो। अल्लाह को एक जानों और किसी को उसका शरीक न ठहराओ । आपस में बिरादराना मुहब्बत रखो और दुश्मनी पैदा न होने दो। अपनी जिन्दगी को गुनाहों से आलूदा न करो। अपने रब की बन्दगी करो। तौबा करने में देर मत करो। अगर तुम अल्लाह के अलावा किसी और से कुछ मांगते हो या उससे जरा भी डरते हो तो यह समझ लो कि तुम्हारा ईमान कमजोर और दीन अधूरा है।”

फतह अल गैब

शैख जीलानी रह. ने जो तबलीग लोगो में की। जो अकाइद शागिर्दो को तालीम फरमाये। बाद के कम इल्म और सादा दिल मुसलमान उन बातों से ला इल्म रहे और आपकी अमली जिन्दगी से कुछ सबक नहीं लिया। अगर किया तो यह कि आपके नाम की नजरें-नियाजें देना शुरु कर दीं।

उनकी ग्यारहवीं करने को फायेदा हासिल करने और नुक्सान से बचने का जरिया बना लिया। मुश्किलात और परेशानी में अल्लाह को छोड़कर उन्हें पुकारने लगे। उन्हीं को हाजात पूरा करने वाला और मुसीबतों को टालने वाला मान लिया। हत्ता कि उनके नाम कि नमाज़ “नमाजे गौसिया” और उनके नाम का वजीफा “या शैख अब्दुल कादिर जीलानी शैअन लिल्लाह’ पढ़ने लगे।

जबकि “मदारिज अल सालिकीन” में सलाते गौसिया के पढ़ने को कुफ्र कहा गया है। इसके अलावा उनके नाम से फरजी करामात गढ़ कर लोगों को सुनाने व बताने लगे।

गरज यह कि वो सारे काम जो इबादते इलाही के लिये खास हैं, वो आप रह. के लिए किये जाने लगे। जिन कामों को शैख रह. ने किया या करने की तालीम दी। उनके करीब न गए और जिन कामों और बातों से आपने मना किया, उन्हें करने लगे। शैख रह. के मलफूजात व इर्शादात नकल करने की वजह किसी की दिल आजारी नहीं बल्कि यह बताना है कि आप रह.का पैगाम व तालीमात क्या थे? और उनके नाम लेवा हजरात आज कर क्या कर रहे ?


मलफूजात शेख अब्दुल कादिर जीलानी रह.

(1) अल्लाह बुजुर्ग व बरतर का खौफ रखो। उसके सिवा किसी से न डरो। न उसके सिवा किसी से उम्मीद रखो। अपनी सारी ज़रुरतें उसी को सौंप दो। न उसके सिवा किसी पर भरोसा करो। जो मांगना है उसी से मांगो। उसके सिवा किसी की मदद पर भरोसा न करो। उसकी तौहीद को मजबूत पकड़ो।

गुन्या-जिल्द 2 सफा 156

(2) जब तू अल्लाह के सिवा किसी और के आगे झुका तो तूने जरुर शिर्क किया।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 491

(3) अल्लाह ही को पुकारने से सब रंज, गम और परेशानियां दूर होती हैं।

गुन्या – जिल्द 1 सफा 150

(4) अल्लाह के सिवा (फौक अल असबाब तौर पर) कोई मददगार व मुश्किलकुशा नहीं।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 491

(5) दिल के इरादों, नियतों और छिपे भेदों को सिर्फ अल्लाह ही जानता है।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 451

(6) जो कुछ अल्लाह ने तकदीर में लिख दिया है, कोई उससे बच नही सकता ।
तमाम मखलूक मिलकर अगर किसी को नफा पहुँचाना चाहे जो अल्लाह ने उसकी किस्मत में नहीं लिखा तो वो सब मिलकर उसे फायेदा नही पहुँचा सकते और अगर सारी मखलूक मिलकर किसी को नुक्सान पहुँचाना चाहे जो अल्लाह ने उसकी तकदीर में नहीं लिखा तो यह उनकी ताकत नही कि वो सब मिलकर कोई नुक्सान पहुँचा दें।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 197

इसी बात को अल्लाह तआला ने यूं इर्शाद फरमाया-

"सिवाये अल्लाह के ( परेशानी मुश्किलात व दुख दर्द में) किसी को न पुकारो। उसके सिवा न कोई तुम्हें नफा पहुँचा सकता है और न नुक्सान।" (युनुस - आयत -106)

(7) रोजिया अल्लाह ही तकसीम करता है और अन्दाज़े से देता है। वो (रोजिया) किसी के रोकने से नहीं रुकतीं। उनकी बुहतात को कोई रोकने वाला नही और कमी को कोई भरने वाला नहीं।

गुन्या – जिल्द 1 सफा 154

(8) अल्लाह के सिवा कोई गैब नहीं जानता। लेकिन बअज़ गुमराह लोगों का यह भी अकीदा है कि इमाम हर चीज का इल्म रखते हैं। जो हो चुकीं और जो होंगी।

गुन्या – जिल्द 1 सफा 206

जबकि आप सल्ल. ने क़यामत कब वाकेअ होगी ? सवाल के जवाब में फरमाया था 
"पूछने वाले की तरह मुझे भी इसका इल्म नहीं ।" (गुन्या - जिल्द 1 सफा 149) 

इसी तरह जब सुलैमान अलैहि ने कहा "हुद हुद नज़र नही आता" फिर कुछ देर बाद हुदहुद ने हाज़िर होकर कहा "मुझे एक ऐसी बात का इल्म है जो अब तक आपको मालूम नहीं ।" (नम्ल - आयत - 20, 22) 

साबित हुआ कि इल्में गैब सिवाये अल्लाह के कोई नहीं जानता। इसलिए भी कि इर्शादे बारी तआला है "(ऐ पैगम्बर सल्ल.) आसमानों और ज़मीन में अल्लाह के सिवाये कोई गैब नहीं जानता ।" ( नम्ल - 68 )

(9) उस शख्स पर अल्लाह की लअनत है जो अपनी जैसी मखलूक पर भरोसा रखे ।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 489

(10) हराम हैं ऐसे अलकाब और नाम रखना जो अल्लाह के नामों की बराबरी करें।

गुन्या – जिल्द 1 सफा 361

क्योंकि दस्तगीर, मुश्किल कुशा, हाज़त रवा, गौसे आज़म, गौसुस्सकलैन वगैरह अलकाब अल्लाह के सिवा किसी के लिए जाइज़ नहीं। इसलिए कि

"अल्लाह के सिवा कोई भी लाचार व बेकरार की फरियाद को पहुंचने वाला नहीं ।" (नम्ल - आयत - 62 )

(11) कब्रों की जियारत के वक्त न उनपर हाथ फेरों और न उन्हें चूमों कि यह यहुदियों की आदत है।


(12) सब काम अल्लाह के हाथ में हैं। वह जिस तरह चाहता है करता है। जिसे वह पीछे कर दे उसे कोई आगे करने वाला नहीं और जिसे वह आगे कर दे उसे कोई पीछे करने वाला नहीं ।

फिक्ह हनफी की मोअतबर किताब “फ़्तावा बज़ाज़िया ” में है – “जो यह अकीदा रखे कि बुजुर्गाने दीन की रुहें हाज़िर व नाज़िर हैं। सब हाल जानती है तो वह काफिर हो जाता है। इसी तरह वह भी काफिर हो जाता है जो फौतशुदा बुजुर्गो के बारे में यह अकीदा रखता है कि वो नफा या नुक्सान पहुंचाने का इख्तियार रखते हैं।


(13) इन्सान का यह अकीदा होना चाहिये कि जो मेरे नसीब में होगा। वह मुझे जरुर मिलेगा।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 466

(14) अल्लाह के सिवा किसी से सवाल न करो यानि उसके अलावा किसी के आगे हाथ न फैलाओ।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 422

(15) अल्लाह अपने बन्दों के तमाम कामों के लिये काफी है।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 451

(16) अल्लाह के सिवा किसी के आगे अपनी हाजात पैश न करो।

गुन्या-जिल्द 2 सफा 463

(17). अगर तुम ईमान वाले हो तो अल्लाह ही पर भरोसा रखो।

गुन्या-जिल्द 2 सफा 465

(18) अल्लाह के सिवा किसी से न डरो और न ही उसके सिवा किसी से कोई उम्मीद रखो।

गुन्या-जिल्द 2 सफा 467

(19) सिर्फ अल्लाह ही से लौ लगाओ और बाकी से मुंह फेर लो।

गुन्या-जिल्द 2 सफा 468

(20) कारसाज़ होने के ऐतेबार से तुम्हारे लिए अल्लाह ही काफी है।

गुन्या-जिल्द 1 सफा 361, जिल्द 2 सफा – 468

(21) गौस यानि फरियादरस सिर्फ अल्लाह है।

गुन्या – जिल्द 2 सफा 451

(22) सिवाए अल्लाह के किसी को अपना मददगार न जानों और न किसी और के बस में अपनी रोजी व रिज़्क़ समझो।

गुन्या – जिल्द 1 सफा 150

(23) मेरे सच्चे चाहने वालों को हरगिज़ यह लायक नहीं कि वो अपने दिलों को (मुसीबत व परेशानी में) अल्लाह के बन्दों की तरफ झुकायें और उनसे हाज़तें चाहें । इसलिए कि सबकुछ अल्लाह के हाथ में है। वही देने वाला है। उसी से दुआ करो

गुन्या – जिल्द 2 सफा 463

फिक्ह हनफी की मशहूर किताब “शामी” में है “बहुत से लोग जो मुर्दों की नज़रों नियाज़ देते हैं। नकदी से या और चीज़ से। यह नज़रो नियाज़ हनफी मज़हब के तमाम उलैमा के नज़दीक बिलइज़्माइअ बातिल और हराम है। इसलिए कि नज़रो नियाज़ इबादत है और इबादत मखलूक की नहीं की जा सकती।

इसके अलावा यह कि मय्यत (मुर्दे) को किसी चीज़ का इख्तियार नही होता जबकि ऐसा करने वाला यह समझता है कि मय्यत को इख्तियार हासिल है। ऐसा अकीदा रखना कुफ़ है।

अल्लाह के सिवा किसी और की नज़र मानना या नियाज देना हराम है। इसी तरह अब्दुल हई लखनवी हनफी रह. ने मजमूआ अल फतावा’ में लिखा “गैरुल्लाह की नज़रो – नियाज हराम है और जो चीज़ गैरुल्लाह के नाम पर नज़र की जाए वह भी हराम है।”


(24) खबरदार! जिसने अपने जैसी मखलूक से उम्मीद रखी। उसने अल्लाह के साथ शिर्क किया। मखलूक में से कोई न नुक्सान पहुंचा सकता है और न नफा । न किसी के इख्तियार में देना है और न रोकना।

गुन्या – जिल्द 2 सफा – 491

(25) अगर तुम अल्लाह के सिवा किसी से कुछ मांगते हो या उससे जरा भी डरते हो तो यह समझ लो कि तुम्हारा ईमान कमजोर और दीन ना मुकम्मल है।

गुन्या – जिल्द 1 सफा -03

(26) अल्लाह अर्श पर है हर जगह नहीं।

गुन्या – जिल्द 1 सफा – 191

(27) शैख (पीर) मुरीद की किसी भी चीज का इस्तेमाल न करें और न ही उसकी किसी भी चीज़ से फायदा उठायें।

गुन्या-जिल्द 2 सफा – 408

(28) बिदअतियों की कई निशानियां हैं। जिनसे वो पहचाने जाते हैं। (उनमें से एक निशानी यह है कि वो अहले असर (अहलुल हदीस) को बुरा कहते हैं।

गुन्या-जिल्द 1 सफा – 188

(29) बिदअतियों से ज्यादा बहस-मुबाहेसा न करो। न उनके मुंह लगो और उनसे घुलना मिलना तो दूर उनके पास भी न जाओ और न ही उनको सलाम करो।

गुन्या – जिल्द 1 सफा -188

(30) हर उम्मती पर जरुरी है कि किताब व सुन्नत (कुरआन व हदीस) को मजबूत पकड़ ले और उन दोनों पर ही अमल करे। उसूल में भी और फुरुअ में भी । यही कुरआन व हदीस दो पर हैं जिनके जरिए अल्लाह की राह में परवाज़ करके इज्जत व जलाल वाले अल्लाह तक पहुंचा जा सकता है।

गुन्या-जिल्द 1 सफा – 188

(31) तुम जब किसी के सामने हदीसे रसूल सल्ल. बयान करो और वह कहे छोड़ो इसे। हमारे सामने कुरआन बयान करो तो जान लो कि यह शख्स गुमराह है।

गुन्या – जिल्द 1 सफा – 189-190

(32) उम्मत में सबसे बड़े फितना फैलाने वाले वो लोग हैं जो अल्लाह के दीन में राय व कयास पर अमल करते हैं।

गुन्या-जिल्द 1 सफा -197

(33) अल्लाह के रसूल सल्ल. के तरीके को सुन्नत कहते हैं और सहाबा किराम रजि. के मुत्तफिक होने को जमाअत कहते हैं। निजात पाने वाला गिरोह अहले सुन्नत वल जमाअत ही है यानि रसूल सल्ल. के और सहाबा रजि. के तरीके पर चलने वाला।

गुन्या-जिल्द 1 सफा -197

(34) सिर्फ कुरआन व हदीस को अपना इमाम (पेशवा) बना लो। इन दोनों को गौर व फिक्र से पढ़ा करो। इन दोनों पर ही अमल करो। उम्मतियों की राय व कयास पर (इन्हें छोड़कर) मत चलो। इसलिए कि सिवाए मुहम्मद सल्ल. के हमारा कोई नबी नहीं जिसकी हम ताबेदारी करे और सिवाए कुरआन के हमारे पास कोई (इल्हामी) किताब नही जिस पर हम अमल करें।
लोगो ! अगर कुरआन व हदीस के सिवा तुम किसी ओर तरफ गये तो तबाह हो जाओगे और नफ़्स और शैतान तुम्हें हलाक कर देंगें।

फतह अल गैब

ये वो आप रह के जुर्री अकवाल और नसीहतें थी। जिन पर अमल करके कोई भी शख्स अपनी जिन्दगी संवार सकता है और आखिरत में कामयाबी की भी उम्मीद रख सकता है। अब जरा यह भी देख लें कि आप रह नमाज़ किस तरह पढ़ा करते थे और नमाज़ से मुताल्लिक आप के क्या इर्शादात हैं?


शैख जीलानी रह. के नमाज़ के मुताल्लिक इर्शादात:-

(35) नमाज तब ही सही मानी जाएगी जब अल्लाह के रसूल सल्ल. के बताए हुए तरीके के मुताबिक पढ़ी जाएगी। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 264)

(36) बेनमाज़ी का न दीन है और न इस्लाम (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 256) (37) बे नमाजी पर नमाज़े जनाजा न पढ़ी जाए और न उसे मुसलमानों के कब्रिस्तान में दफन किया जाए। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 257 )

(38) दायें हाथ को बायें हाथ पर नाफ से ऊपर बांधो। (गुन्या – जिल्द 1 सफा – 23 )

(39) नमाज शुरु करते वक्त और रुकूअ में जाते और रुकूअ से सर उठाते वक्त रफायदैन करो। (गुन्या – जिल्द 1 सफा – 23 )

(40) सूरह फातेहा का पढ़ना (इमाम, मुक्तदी, मुन्फरिद) सब पर फर्ज है। यह सूरह नमाज़ का रुक्न है। इसके न पढ़ने से नमाज़ बातिल हो जाती है। (गुन्या-जिल्द 2 सफा – 263)

(41) जहरी नमाज़ों में जहर से आमीन कहो। (गुन्या – जिल्द 1 सफा – 23 )

(42) तश्हुद में शहादत की उंगली से इशारा करो। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 266)

(43) सुबह (फज) की नमाज गुल्स (अन्धेरे) में पढ़ना अफजल है । (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 231)

(44) असर की नमाज़ अव्वल वक्त पढ़ना अफज़ल है। जब हर चीज़ का साया उसके बराबर हो जाए। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 240)

(45) जलसा (दोनों सज्दों के बीच) में बैठकर “रब्बिग फिरली” तीन दफा पढ़ो। (गुन्या – जिल्द 1 सफा -240)

(46) रुकूअ के बाद सीधे इत्मीनान और आराम से खड़े हों। (गुन्या – जिल्द 1 सफा – 22)

(47) सफर में दो नमाजो को मिलाकर पढ़ना यानि जुहर व असर और मग्रिब व इशा को जमा करना जाइज़ है। (गुन्या-जिल्द 2 सफा – 311)

(48) बारिश की वजह से भी दोनों नमाज़ों को जमा करके पढ़ना जाइज है। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 312)

(49) ईदैन की नमाज में पहली रकअत में सिवाए तक्बीरे ऊला के 7 (सात) और दूसरी रकअत में 5 (पांच) तकबीरात कहें। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 299)

(50) नमाज़े जनाजा में पहली तकबीर के बाद “सूरह फातेहा ” पढ़ें। (गुन्या – जिल्द 2 सफा – 314)

यह थे शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी रह. के मलफूज़ात व इर्शादात अपने शागिर्दो और चाहने वालों के लिए।


अब हम अपना अपना जायज़ा ले लें कि आप रह. से क्या हमारी सिर्फ नाम की मुहब्बत है ? हम जो उनकी शान में गुलू करते हैं और उन्हें एक बन्दे और उम्मती से उठाकर खुदाई मुकाम तक पहुंचा देते हैं, क्या हमारा ऐसा करना सही है?

अगर नही और यकीनन नही तो आइये हम उनके अकीदे को अपनाएं। उनकी तालीमात पर अमल करें। उनके बतलाए रास्ते पर चलें ताकि कयामत के दिन हम नुकसान उठाने वालों में न हों और न ही जहन्नम हमारा ठिकाना बने।

यहां यह बात भी हमारे ध्यान में रहे कि शैख अब्दुल कादिर जीलानी रह. के इर्शादात बतौर दलील और मुहब्बत के नहीं हैं। दलील व हुज्जत (दीने इस्लाम में) कुरआन व सही अहादीस ही हैं।

आप रह के इर्शादात चूंकि कुरआन व हदीस पर बनी हैं, किताब व सुन्नत के मुआफिक व मुताबिक हैं। इसलिए आप रह. के इल्म व फज्ल और बुजुर्गी को नज़र में रखकर आम मुसलमानों के लिए नकल किये हैं। खासकर उन लोगों के लिए जो उनसे बेहद अकीदत व मुहब्बत रखते हैं ताकि वो अल्लाह के इस वली का कहना मान कर “सिराते मुस्तकीम ” (सीधी राह) को जान समझ लें और सिर्फ और सिर्फ कुरआन व अहादीसे सहीहा पर अमल पैरा हो जाएं।

अल्लाह तआला से दुआ है कि वह हम सभी को अपने दीन की सीधी राह दिखाये और उस पर चलने की तौफीक अता फरमाये । इस्लाम से मुहब्बत हमारे दिलों में भर दे और हमारे गुनाहों को माफ फरमाए ।

आमीन या रब्बल आलामीन

आपका दीनी भाई
मुहम्मद सईद मो. 09214836639

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