नमाज़ की दुआएँ,

Namaz ki Duain | Sana | Tasmiyah | Awzu | Auzubillah minash shaitan rajeem ki dua

नमाज़ की दुआएँ, दुआए इस्तिफताह (सना), तअव्वुज़, नमाज़ में शैतानी वस्वसह आए तो उसकी दुआ, तस्मियह, सूरह फातिहा, सूरह इख्लास, सूरह कौसर, रूकूअ की दुआएँ, कौमा की दुआएँ, सजदह की दुआएँ, सजदा तिलावत की दुआ, जल्सह (दो सजदों के बीच) की दुआएँ, तशहहुद (पहला कदह) की दुआ, दरूद शरीफ, सलाम फेरने से पहले की दुआएँ,…

नमाज़ की दुआएँ

दुआए इस्तिफताह (सना)

तकबीरे तहरीमह के बाद और सूरह फातिहा से पहले पढ़ने की दुआ:

اللَّهُمَّ بَاعِدُ بَيْنِي وَبَيْنَ خَطَايَايَ كَمَا بَاعَدَتْ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ، اللَّهُمْ نَقِنِي مِنَ الْخَطَايَا، كَمَا يُنَقَّى الثَّوبُ الْأَبْيَضُ مِنَ الدَّنَسِ، اللهم اغسِلُ خَطَايَايَ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالبَرَدِ .

1. अल्लाहुम्म बाइद बैनी वबै-न ख़ताया-य कमा बाअ-त्त मरिक वल मग्रिब, अल्लाहुम्म नक्किनी मिनल ख़ताया कमा युनक-करसौ-बुल अब्यजु मिनद दनस, अल्लाहुम्मग्सिल खताया- य – बिल्माइ वरसल्जि वल्बरद. 1

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! तू मेरे और मेरे गुनाहों के बीच ऐसी दूरी कर दे जैसी मश्रिक़ और मग्रिब के दरमियान ( पूरब और पश्चिम के बीच ) तूने दूरी कर दी है, ऐ अल्लाह ! तू मुझे ख़ताओं ( गुनाहों) से इस तरह पाक कर दे जिस तरह सफेद कपड़ा मैल से साफ किया जाता है । ऐ अल्लाह ! तू मेरी ख़ताओं को पानी और बर्फ और ओलों से धो दे ।

या यह दुआ पढ़नी चाहिए :

सना:

سُبُحْنَكَ اللهُمَّ وَبِحَمْدِكَ ، وَ تَبَارَكَ اسْمُكَ ، وَ تَعَالَى جَدُّكَ، وَلَا إِلَهَ

2. सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व त’आला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका 2

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! तू पाक है ( तमाम ऐबों से) और तेरे लिए हम्द (तारीफ) है और बरकत वाला है तेरा नाम और बुलंद (ऊँचा ) है तेरा मक़ाम और तेरे सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं है।

तअव्वुज़:

दुआए इस्तिफ्ताह के बाद और सूरह फातिहा शुरु करने से पहले की दुआ :

اَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّحِيمِ 

अऊ बिल्लाहि मिनश्शैतानिर्रजीम 3

तर्जुमा : मैं अल्लाह की पनाह माँगता हूँ शैतान मरदूद के शरर से ।

या यह दुआ पढ़नी चाहिए :

اَعُوذُ بِاللهِ السَّمِيعِ الْعَلِيمِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّحِيمِ مِنْ هَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَ

2. अऊजु बिल्लाहिस समीइल अलीमि मिनश्शैतानिर्रजीमि मिन हज़िही व नफरिवही व नफसिह 4

तर्जुमा: मैं सुनने वाले, जानने वाले अल्लाह की पनाह चाहता हूँ शैतान मर्दूद से, उसके वस्वसे से और उसकी फूँक से और उसके जादू ।

नमाज़ में शैतानी वस्वसह आए तो उसकी दुआ:

اَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّحِيمِ 

अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम 5

तर्जुमा : मैं अल्लाह की पनाह चाहता हूँ शैतान मर्दूद से ।

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : नमाज़ में शैतानी वस्वसह आए तो अल्लाह की पनाह माँगो और बाएँ (उल्टे ) कन्धे की तरफ तीन बार थू थू करो। 


तस्मियह:

بِسمِ اللهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम 6

तर्जुमा : अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान और निहायत रहम वाला है ।

सूरह फातिहा हर रकअत में पढ़ना वाजिब है क्योंकि इसके बगैर नमाज़ नहीं होती । 7


नमाज़ की चंद सुरते:

सूरह फातिहा :

بِسْمِ ٱللَّهِ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ ٱلْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ ٱلْعَٰلَمِينَ ٱلرَّحْمَٰنِ ٱلرَّحِيمِ مَٰلِكِ يَوْمِ ٱلدِّينِ إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِينُ ٱهْدِنَا ٱلصِّرَٰطَ ٱلْمُسْتَقِيمَ صِرَٰطَ ٱلَّذِينَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ ٱلْمَغْضُوبِ عَلَيْهِمْ وَلَا ٱلضَّآلِّينَ

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम (1) अलहम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन (2) अर्रहमानिर्रहीम ( 3 ) मालिकि यौमिददीन (4) इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन (5) इहदिनस सिरातल मुस्तकीम (6) सिरातल्लज़ी-न अन्अम-त अलैहिम गैरिल मग्ज़बि अलैहिम वलज़्ज़ाल्लीन. (7)

तर्जुमा : अल्लाह के नाम से शुरु जो बड़ा महेरबान निहायत रहम करने वाला है (1) सब तारीफ अल्लाह ही के लिए है जो तमाम जहानों (सारी दुनिया) का पालने वाला है ( 2 ) बड़ा महेरबान निहायत रहम करने वाला है (3) बदले के दिन का मालिक है ( 4 ) हम सिर्फ तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ तुझ ही से मदद चाहते हैं ( 5 ) हमें सीधी राह ( रास्ता ) दिखा (6) उन लोगों की राह जिन पर तूने इन्आम किया, उनकी नहीं जिन पर गज़ब (गुस्सा) किया गया और न गुमराहों की । (7)

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ जेहरी ( ऊंची आवाज़ वाली ) नमाज़ में आमीन ऊंची आवाज़ से कहते थे । 8

फज़ीलत : जब बंदा सूरह फातिहा नमाज़ में पढ़ता है तो अल्लाह पाक किस कदर खुश होता है इसका अंदाज़ह इस हदीसे कुदसी से लगाइए।

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : जब बंदा नमाज़ में ‘अल्हम्दुलिल्लाह रब्बिल आ-लमीन‘ कहता है तो अल्लाह तआला फरमाता है ‘हमिदनी अब्दी’ मेरे बंदे ने मेरी तारीफ की।

जब बंदा ‘अर्रहमानिर्रहीम‘ कहता है तो अल्लाह फरमाता है ‘अस – न अलै-य अब्दी‘ मेरे बंदे ने मेरी सना (तारीफ) बयान की।

जब बंदा ‘मालिकि यौमिद्दीन‘ कहता है तो अल्लाह फरमाता है ‘मज्जदनी अब्दी‘ मेरे बंदे ने मेरी बुजुर्गी बयान की।

जब बंदा ‘इय्या-क नअबुदु वइय्या-क नस्तईन‘ कहता है तो अल्लाह फरमाता है ‘हाज़ा बैनी व बै-न अब्दी वलि अब्दी मा स – अल‘ यह मेरे और मेरे बंदे के बीच का मुआमलह है।

मेरा बंदा जो सवाल करेगा वह दूंगा और जब बंदा ‘इहदिनस सिरातल मुस्तकीम‘ से ‘वलज़्ज़ाल्लीन‘ तक पढ़ता है तो अल्लाह फरमाता है ‘हाजा लिअब्दी वलिअब्दी मा स- अल‘ यह मेरे बंदे के लिए है और मेरा बंदा जो माँगे दूंगा 9

इमाम और मुन्फरिद (अकेले ) को पहली दो रकअतों में सूरह फातिहा के बाद कोई सूरह पढ़नी चाहिए ।

सूरह इख्लास:

قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ ‏ اللَّهُ الصَّمَدُ ‎ لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ ‎

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

कुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहुस्समद, लम् यलिद वलम यूलद, वलम कुल्लहू कुफुवन अहद.

तर्जुमा: आप कह दीजिए के वह अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ (बेपरवा) है । न उससे कोई पैदा हुआ, और न वह किसी से पैदा किया गया और न उसका कोई हमसर (बराबर ) है । 

फज़ीलत : एक अन्सारी सहाबी जो मस्जिदे कुबा में इमाम थे वह हर रकअत में कोई दूसरी सूरह पढ़ने से पहले सूरह इख़्लास (सूरह ‘कुल हुवल्लाह’) पढ़ते । लोगों ने एतेराज़ करते हुए रसूलुल्लाह ﷺ से यह बात कही । आपने उस अन्सारी इमाम से वजह पूछी, उन्होंने जवाब दिया : ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ मुझे इस सूरह से मुहब्बत है, तो आप ﷺ ने फरमाया : तुझे इसकी मुहब्बत जन्नत में ले जाएगी । 10

सूरह कौसर :

إِنَّا أَعْطَيْنَاكَ الْكَوْثَرَ فَصَلِّ لِرَبِّكَ وَانْحَرْ إِنَّ شَانِئَكَ هُوَ الْأَبْتَرُ ‎

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

इन्ना अतैना कल कौसर, फसल्लि लिरब्बि-क- वन्हर, इन्न शानिअ-क-हुवल अब्तर.

तर्जुमा : (ऐ रसूल) हमनें तुमको को कौसर अता किया, तो तुम अपने परवरदिगार की नमाज़ पढ़ा करो और क़ुर्बानी दिया करो बेशक तुम्हारा दुश्मन बे औलाद रहेगा ।



नमाज़ के सूरतों के बाद की तस्बीह

रूकूअ की दुआएँ:

वजाहत :

1. रसूलुल्लाह ﷺ ने रूकूअ और सजदह में कुरआन पढ़ने से मना फरमाया है। 11

2. रूकूअ में इन दुआओं में से कोई एक दुआ पढ़ें या फिर सब पढ़ें।

سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ

1. सुब्हान रब्बियल अज़ीम (तीन बार) 12

तर्जुमा : मैं पाकी बयान करता हूँ अपने बड़े रब की ।

سُبُحْنَكَ اللَّهُمْ رَبَّنَا وَبِحَمْدِكَ اللَّهُمَّ اغْفِرُلى 

2. सुब्हा-नकल्लाहुम्म रब्बना बि-हम्दिक अल्लाहुम्मग्फिरली 13

तर्जुमा : पाक है तू ऐ अल्लाह ! हमारे रब ! हम तेरी तारीफ करते हैं, ऐ अल्लाह मेरी मग्फिरत फरमा ।

قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلَائِكَةِ وَالرُّوح سبوح

3. सुब्बुहुन कुद्दूसून रब्बुल मलाइकति वर्रुह 14

तर्जुमा : पाक सिफतों (खूबियों ) वाला, पाक जात वाला, फरिश्तों और जिब्रईल का रब है ।

 اللَّهُمَّ لَكَ رَكَعْتُ، وَبِكَ آمَنْتُ، وَلَكَ أَسْلَمْتُ خَشَعَ لَكَ سَمْعِي، وَبَصَرِي وَمُخِّي، وَعَظْمِي، وَعَصَبِي، وَمَا اسْتَقَلَّ بِهِ قَدَمِي

4. अल्लाहुम्मा लक रकाअतु, वबिक आमन्तु, वल-क अस्लम्तु, ख़शा’ लक सम’ई, वबसरी वमुख्खी, व-अज़्मी, व-असबी। 15

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मैंने तेरे लिए रूकूअ किया, और मैं तुझ पर ईमान लाया और मैं तेरा फरमांबर्दार ( हुक्म मानने वाला) हुआ, मेरे कान और मेरी निगाह (नज़र) और मेरा गूदा और मेरी हड्डी और मेरे पुट्ठे ( पिछला हिस्सा) तेरे लिए झुक गए ।

कौमा (रूकू के बाद खड़े होने की दुआ)

سَمِعَ اللهُ لِمَنْ حَمِدَهُ 

समिअल्लाहु लिमन हमिदह 16

तर्जुमा : अल्लाह ने उस की सुन ली जिस ने उस की तारीफ की ।

कौमा की दुआएँ :

1. रब्बना लकल हम्द 17
2. रब्बना व लकल हम्द 18
3. अल्लाहुम्म रब्बना व लकल हम्द 19

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! हमारे रब ( पालने वाले ) सब तारीफ तेरे लिए है ।

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया के जिस का यह कहना फरिश्तों के कहने के मुवाफिक हो जाए तो उसके अगले गुनाह माफ कर दिए जाएँगे ।

رَبَّنَا وَ لَكَ الْحَمُدُ حَمْداً كَثِيراً طَيِّباً مُبَارَكاً فِيهِ 

4. रब्बना व लकल हम्दु हम्दन कसीरन तैयिबम मुबा -रकन फीह 20

तर्जुमा : ऐ हमारे रब ! सब तारीफ तेरे लिए है । बहुत ज़्यादा तारीफ जो पाकीज़ह और बाबरकत है ।

اللَّهُمَّ رَبَّنَا لَكَ الْحَمْدُ مِلاً السَّمَوَاتِ وَمِلَأُ الْأَرْضِ وَ مِلأَ مَا بَيْنَهُمَا وَ مِلاً مَا شِئْتَ مِنْ شَيْءٍ بَعْدُ 

5. अल्लाहुम्मा रब्बना लका अल-हम्दु मिल’न अस-समावती व मिल’अल-अर्दि व मिल’ मा बेयनाहुमा व मिल’मा शि’ता मिन शै’इम बअद 21

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! हमारे रब ! तमाम तारीफ तेरे लिए है, आसमानों भर और ज़मीन भर और उनके दरमियान (बीच ) भर, और उनके बाद जितना तू चाहे उस भर ।

सजदह की दुआएँ:

वजाहत :

1. रसूलुल्लाह ﷺ ने रूकूअ और सजदह में कुरआन पढ़ने से मना फरमाया । 22

2. सजदह में कोई एक दुआ पढ़ें या फिर सब पढ़ें ।

سُبْحَانَ رَبِّي الأعلى

1. सुब्हा-न रब्बियल अअला (तीन बार) 23

तर्जुमा : पाक है मेरा बुलंद (ऊँचा) रब ।

سبحتكَ اللهُم رَبَّنَا، وَ بِحَمْدِكَ اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي 

2. सुब्हा-नकल्लाहुम्म रब्बना व बि-हमदिक, अल्लाहुम्मग्फिरली 24

तर्जुमा : पाक है तू ऐ अल्लाह ! हमारे रब ! हम तेरी तारीफ करते हैं, ऐ अल्लाह मुझे बख्श (माफ कर) दे ।

वजाहत : रसूलुल्लाह ﷺ सजदह में यह दुआ ज़्यादा पढ़ते थे ।

سبوح قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلَائِكَةِ وَالرُّوحِ

3. सुब्बहुन कददूसुन रब्बुल मलाइ – कति वर्रुह 25 

तर्जुमा : पाक है मुकद्दस है वह फरिश्तों और जिब्रईल का रब है।

सजदह और उस में दुआ की फजीलत :

रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया: बंदा सजदह में अल्लाह से बहुत ज़्यादा करीब (नज़दीक) होता है सो तुम उस में कसरत से (बहुत ज़्यादा ) दुआ करो । 26

सजदा तिलावत की दुआ:

سَجَدَ وَجُهِيَ لِلَّذِي خَلَقَهُ ، وَ شَقٌ سَمُعَهُ، وَبَصَرَهُ، بِحَوْلِهِ وَ قُوَّتِهِ،فَتبَارَكَ اللهُ اَحْسَنُ الْخَالِقِينَ

स-ज-द वजहि-य लिल्लज़ी ख़-ल- कहू वशक्क सम्अहू व ब-स-रहू बिहौलिही व- कुव्वतिही फ-तबा- रकल्लाहु अह्सनुल खालिकीन 27

तर्जुमा : मेरे चेहरे ने उस ज़ात के लिए सजदह किया जिस ने उस को पैदा किया और उस के कान और आँख को खोला अपनी ताकत और कुव्वत से, सो अल्लाह बरकत वाला है जो बेहतर ख़ालिक (पैदा करने वाला) है ।

जल्सह (दो सजदों के बीच) की दुआएँ :

رَبِّ اغْفِرُ لِى رَبِّ اغْفِرُ لِي

1. रब्बिफिरली, रब्बिफिरली 28

तर्जुमा: ऐ रब ! मुझे बख़्श ( माफ कर) दे, ऐ रब ! मुझे बख़्श दे।

اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمُنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي

2. अल्लाहुम्मग्फिरली, वर्हम्नी, आफिनी वदिनी वर्जुकनी 29

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मुझे बख़्श दे और मुझ पर रहम फरमा और मुझे आफियत (चैन) दे और मुझे हिदायत दे और मुझे रिज़्क (रोज़ी) दे।

اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي، وَاجْبُرُنِي، وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِی۔

3. अल्लाहुम्मग्फिरली, वर्हम्नी, वज्बुर्नी, वह्दिनी वर्जुकनी 30

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मुझे बख़्श दे और मुझ पर रहम फरमा और मेरा नुकसान पूरा कर और मुझे हिदायत दे और मुझे रिज़्क अता फरमा। 

तशहहुद (पहला कदह) की दुआ:

التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ ، وَالصَّلَوَاتُ، وَالطَّيِّبَاتُ ، اَلسّلامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ ، وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلَامُ عَلَيْنَا ، وَ عَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ

اَشْهَدُ أَنْ لا إِلهَ إِلَّا اللهُ وَ اَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ .

अत्तहिय्यातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तय्यिबातु अस्सलामु अल-क अय्युहन-नबिय्यु वरमतुल्लाहि व ब-र-कातुह, अस्सलामु अलैना व अला इबादिल्लाहिस सालिहीन, अश्हदु अल्ला इला-ह-इल्लल्लाहु व अश्हदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुह. 31

तर्जुमा : ज़बानी, बदनी और माली इबादतें अल्लाह के लिए हैं, ऐ नबी ﷺ आप पर सलाम और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हों, हम पर सलाम हो और अल्लाह के नेक बंदों पर । मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं और मैं गवाही देता हूँ के बेशक मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और उसके रसूल हैं ।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया के जब नमाज़ी यह कलिमात कहता है तो आसमान और ज़मीन के हर नेक बंदे को सलाम पहुँच जाता है ।

जिस रकअत में सलाम फेरना हो उस में तशहूहूद (अत्तहिय्यात) पढ़ कर दरुद पढ़ना चाहिए । 32

दरूद शरीफ:

اللهُمَّ صَلَّ عَلى مُحَمَّدٍ ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ ، كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى

إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ – اللَّهُمَّ بَارِك عَلى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ ، كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ، وَ عَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ، إِنَّكَ حَمِيدٌ مَّجِيدٌ

अल्लाहुम्म सल्लि अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लय्-त अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्न-क हमीदुम मजीद, अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिंव व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक-त अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्न-क हमीदुम मजीद 33

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! रहमत फरमा मुहम्मद ﷺ पर और मुहम्मद ﷺ की आल (घर वालों) पर जैसा के तूने रहमत फरमाई इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आल पर, बेशक तू तारीफ के लाइक बुजुर्गी वाला है।

ऐ अल्लाह ! बरकत नाज़िल फरमा ( उतार) मुहम्मद ﷺ पर और मुहम्मद ﷺ की आल पर जैसा के तूने बरकत नाज़िल फरमाई इब्राहीम अलैहिस्सलाम पर और इब्राहीम अलैहिस्सलाम की आल पर, बेशक तू तारीफ के लाइक बुजुर्गी वाला है। 

सलाम फेरने से पहले की दुआएँ:

اللهم إنّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلماً كَثِيرًا ، وَلَا يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلَّا أَنْتَ ، فَاغْفِرْ لِي، مَغْفِرَةً مِّنْ عِنْدِكَ وَارْحَمْنِي، إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ

अल्लाहुम्म इन्नी जलम्तु नफ्सी जुल्मन कसीरंव वला यग्फिरूज जुनू-ब इल्ला अन्त फग्फिरली मग्फि-रतम मिन इन्दि – क वर्हम्नी इन्न- क अन्तल गफूरूर रहीम. 34

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैंने अपनी जान पर बहुत ज़ुल्म किया और तेरे सिवा कोई गुनाहों को नहीं बख़्शता, पस तू मुझे अपने ख़ास फ़ज़्ल से बख़्श दे और मुझ पर रहम कर, बेशक तू बख़्शने वाला, रहम करने वाला है। 

اللَّهُمْ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ، وَ اَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ، وَ اَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا، وَفِتْنَةِ الْمَمَاتِ ، اَللَّهُمَّ إِنِّي 

أعُوذُ بِكَ مِنَ الْمَأْثَمِ وَالْمَغْرَمِ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजु बि क मिन अज़ाबिल कबि, व अजु बि-कमिन फित्नतिल मसीहिद दज्जालि, व अऊजु बि क मिन फित्नतिल महया वफित्नतिल ममात, अल्लाहुम्म इन्नी अऊजु बि क मिनल मअसमि वल मग्रम. 35

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं पनाह चाहता हूँ कब्र के अज़ाब से और मैं तेरी पनाह चाहता हूँ दज्जाल के फ़ित्ने से और मैं तेरी पनाह चाहता हूँ ज़िंदगी और मौत के फ़ित्ने से, ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तेरी पनाह चाहता हूँ गुनाह और कर्ज़ से ।

फाइदा : रसूलुल्लाह ﷺ से किसी ने कहा : क्या बात है आप कर्ज़ से बहुत पनाह माँगते हैं ? आप ﷺ ने फरमाया : जब आदमी कर्ज़दार हो जाता है तो उसकी बात झूठी हो जाती है और वह वादा-ख़िलाफ होता है।

सलाम:

पहले दाहिनी तरफ़ चेहरा फेरते हुए कहना चाहिए :

السَّلَامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ 

अस्सलामु अलैकुम वरमतुल्लाह 

फिर बाएँ तरफ चेहरा फेर कर कहना चाहिए:

السّلامُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللهِ

अस्सलामु अलैकुम वरह्मतुल्लाह 36

तर्जुमा: सलामती हो तुम पर और अल्लाह की रहमतें हों ।

फर्ज़ नमाज़ के बाद की दुआएँ:

एक बार ऊँची आवाज़ से कहना चाहिए 37

الله أكبر.

1. अल्लाहु अकबर

तर्जुमा : अल्लाह सब से बड़ा है ।

أستغفر الله.

2. अस्तग्फिरुल्लाह (तीन बार) 38

तर्जुमा: मैं अल्लाह से बख़्शश चाहता हूँ ।

फिर यह दुआएँ भी ऊँची आवाज़ से पढ़नी चाहिए ।

اللهم أنتَ السَّلَام وَ مِنْكَ السَّلَامُ تَبَارَكْتَ يَا ذَا الْجَلَالِ وَالْإِكْرَامِ 

3. अल्लाहुम्म अन्तस्सलामु वमिन्कस सलामु तबारक-त या जल्जलालि वल इकराम 39

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! तू सलामती वाला है और तुझ ही से सलामती है, तू बरकत वाला है ऐ बुजुर्गी और इज़्ज़त वाले ।

أَعِنِّى عَلى ذِكْرِكَ ، وَ شُكْرِكَ وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ

4.अल्लाहुम्म अइन्नी अला जिक्रि- क वशुक्रि-क वहुस्नि इबा-दतिक 40

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! मेरी मदद फरमा तेरे ज़िक्र पर, तेरे शुक्र पर और तेरी अच्छी इबादत पर ।

لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ، وَ لَهُ الْحَمُدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ اللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ ، وَلَا مُعْطِيَ لِمَا مَنَعْتَ وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْحَدِ مِنْكَ الْجَدُّ

5. ला इला–ह इल्लल्लाहु वह्दहू ला शरी-क लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु वहु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर. अल्लाहुम्म ला मानि-अ लिमा अ-त वला मुक्ति-य मा मन – वला यन्फउ जल जद्दि मिन्कल जद. 41

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं, वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिए हुकूमत है और उसी के लिए तारीफ है और वह हर चीज़ पर कुदरत रखने वाला है । ऐ अल्लाह ! जो कुछ तू दे उस को कोई रोकने वाला नहीं और जो तू रोक दे उसको कोई देने वाला नहीं और फाइदा नहीं पहुँचा सकती तेरे अज़ाब से मालदार को उस की मालदारी ।

اللهم إنّي اَعُوذُ بِكَ مِنَ الْحُبُنِ، وَأَعُوذُ بِكَ مِنَ الْبُخْلِ، وَ اَعُوذُ بِكَ مِنْ اَرْذَلِ الْعُمُرِ، وَاَعُوذُ بِكَ مِنْ فِتْنَةِ الدُّنْيَا، وَعَذَابِ الْقَبْرِ

अल्लाहुम्म इन्नी अऊजु बि क मिनल जुब्नि व अऊजु बि-क मिनल बुख़्लि व अऊजु बि क मिन अर्जलिल उमुरि व अऊजु बि-क मिन फित्नतिद दुन्या व अज़ाबिल कब्र 42 

तर्जुमा : ऐ अल्लाह ! बेशक मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ बुज़दिली से और मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ बख़ीली (कंजूसी) से और मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ बुढ़ापे की उम्र से और मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ दुनिया के फ़ित्ने से और अज़ाबे कब्र से ।

फर्ज़ नमाज़ के बाद की तस्बीहः

1. सुब्हानल्लाह. (33 बार)
अल्हम्दु लिल्लाह. (33 बार)
अल्लाहु अकबर. (34 बार) 43

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : फर्ज़ नमाज़ के बाद यह कलिमात (यह तस्बीह) कहने वाला कभी नामुराद ( मायूस ) नहीं होगा ।


2. या 33 बार सुब्हानल्लाह, 33 बार अल्हम्दु लिल्लाह और 33 बार अल्लाहु अकबर पढ़ कर यह दुआ पढ़ें :

لَا إِلَهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ، وَ لَهُ الْحَمْدُ،

وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

ला इला–ह इल्लल्लाहु वहदहू ला शरी-क लहू लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु वहु-व अला कुल्लि शैइन क़दीर 44

फज़ीलत : रसूलुल्लाह ﷺ फरमाया : जो शख़्श फर्ज़ नमाज़ के बाद इन कलिमात को पढ़ेगा तो उसके गुनाह बख़्श दिए जाते हैं चाहे गुनाह दरया के झाग के बराबर ही क्यों न हो। 


फर्ज़ नमाज़ के बाद की सूरतें:

1. सूरह इख्लास:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम

कुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहुस्समद, लम् यलिद वलम यूलद, वलम कुल्लहू कुफुवन अहद.

देखे: सूरह इखलास का तर्जुमा

2. सूरह फलक:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम.

कुल अऊजु बिरब्बिल फलक, मिन शर रिमा ख़लक़, वामिन शर रि ग़ासिकिन इज़ा वकब, वमिन शर रिन नफ़फ़ासाति फ़िल उक़द, वमिन शर रि हासिदिन इज़ा हसद.

3. सूरह नास:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम.

कुल अऊजु बिरब्बिन नास, मलिकिन नास, इलाहिन नास, मिन शर रिल वसवा सिल खन्नास, अल्लज़ी युवस विसु फी सुदूरिन नास, मिनल जिन्नति वन नास.
वज़ाहत :

1. फर्ज़ नमाज़ के बाद मुअव्विज़ात यानी ‘सूरह इख़्लास‘ (कुल हुवल्लाहु अहद), ‘सूरह फलक‘ और ‘सूरह नास‘ पढ़नी चाहिए। 45

2. हज़रत उकबह (रज़ि.) को रसूलुल्लाह ﷺ ने हर फर्ज़ नमाज़ के बाद मुअव्विज़ात पढ़ने का हुक्म दिया और मुअव्विज़ात में ‘सूरह इख़्लास’ भी शामिल है जैसा के सुननुन्नसई की एक सहीह हदीस में है के रसूलुल्लाह ﷺ ने इसी रावी उकबह को सूरह इख़्लास, सूरह फलक और सूरह नास पढ़ कर सुनाईं और फरमाया इन सूरतों से बढ़ कर कोई तअव्वुज़ ( पनाह की चीज़ ) नहीं है। 46

आयतुल कुर्सी :

फर्ज़ नमाज़ के बाद यह आयत पढ़नी चाहिए ।

اللَّـهُ لَا إِلَـٰهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ ۚ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ ۚ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ ۗ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ ۚ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ ۖ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاءَ ۚ وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ ۖ وَلَا يَئُودُهُ حِفْظُهُمَا ۚ وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

अल्लाहु ला इला-ह-इल्लाहू, अल्हय्युल कय्यूम ला तअवुजुहू सि-नतुंव वला नौम, लहू मा फिस्समावाति वमा फिल अर्ज, मन जल्लजी यश्फउ इन्दहू इल्ला बिइज़निह, यलमु मा बै-न औदीहिम वमा खल्फहुम, वला युहीत- न बिरौइम मिन इल्मिही इल्ला बिमा शा-अ, वसि-अ कुर्सिय्यु हुस्समावाति वल अर्ज, वला दुहू हिफ्जुमा, वहुवल अलिय्युल अज़ीम 47

तर्जुमा : अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लाइक नहीं वह हमेशा जिंदा रहने वाला, सब को काइम रखने वाला है, उसको न ऊँघ आती है न नींद, आसमानों और ज़मीन की सब चीजें उसी की हैं, कौन है जो उस के पास किसी की शफाअत ( गुनाहों से माफी की सिफारिश) करे उसकी इजाज़त के बगैर, वह जानता है जो लोगों के सामने है और जो उनके पीछे है, और लोग उसके इल्म में से कुछ घेर नहीं सकते मगर जितना अल्लाह चाहे, उस की कुर्सी ने आसमानों और ज़मीन को अपनी वुस्अत (घेराव) में ले रखा है और उन की हिफाज़त उसे थकाती नहीं और वह बुलंद अज़मत ( बड़ाई) वाला है ।

फजीलत : रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया : जो शख़्स फर्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ ले तो उसे जन्नत में जाने से कोई चीज़ रोक नहीं सकती सिवाए मौत के। 48

  1. सहीह बुखारी : किताबुल अज़ान ( 1/372) ↩︎
  2. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (776) ↩︎
  3. सूरह नहल : 98 पारह 14 ↩︎
  4. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (775) ↩︎
  5. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलाम ( 5/380) ↩︎
  6. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात (2/26) ↩︎
  7. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात (2 / 21 ) ↩︎
  8. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (932) ↩︎
  9. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात (2/22) ↩︎
  10. सहीह बुख़ारी : किताबुल अज़ान (1/383) ↩︎
  11. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात (2776) ↩︎
  12. सुनन इब्ने माजह: इकामतिस्सलात ( 888) ↩︎
  13. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 78 ) ↩︎
  14. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 80 ) ↩︎
  15. सहीह मुस्लिम : किताबु सलातिल मुसाफिरीन ( 2 / 265 ) ↩︎
  16. सहीह बुख़ारी : किताबुल अज़ान ( 1/390) ↩︎
  17. सुननुन्नसई किताबुत्तत्बीक (1057 ) ↩︎
  18. सहीह मुस्लिम : किताबु सलातिल मुसाफिरीन (2 /267) ↩︎
  19. सहीह बुख़ारी : किताबुल अज़ान ( 1/390) ↩︎
  20. सहीह बुखारी : किताबुल अज़ान ( 1 / 391) ↩︎
  21. सहीह मुस्लिम : किताबु सलातिल मुसाफिरीन (2 / 266) ↩︎
  22. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 76 ) ↩︎
  23. सुनन इब्ने माजह: इक़ामतिस्सलात (888) ↩︎
  24. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2 / 78) ↩︎
  25. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात ( 2/80) ↩︎
  26. सुननुन्नसई : किताबुत्तत्बीक़ ( 1137 ) ↩︎
  27. मुस्तदरक हाकिम : किताबुस्सलात ( 1/220) ↩︎
  28. सुनन इब्ने माजह: इक़ामतिस्सलात ( 897 ) ↩︎
  29. सुनन अबीदाऊद : किताबुस्सलात (850) ↩︎
  30. सहीह तिर्मिज़ी लिल अल्बानी : किताबुस्सलात (1/284) ↩︎
  31. सहीह मुस्लिम : किताबुस्सलात (2/28) ↩︎
  32. सहीह तिर्मिज़ी लिल अल्बानी : किताबुल जुमुअह ( 1 / 593) ↩︎
  33. सहीह बुखारी : बदउल ख़ल्क : (2/314 ) ↩︎
  34. सहीह बुखारी : किताबुस्सलात ( 1/405) ↩︎
  35. सहीह बुखारी : किताबुस्सलात (1/405) ↩︎
  36. सहीह तिर्मिज़ी लिल अल्बानी : किताबुस्सलात ( 1/295) ↩︎
  37. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद (2/144 ) ↩︎
  38. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद ( 2 / 149 ) ↩︎
  39. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद ( 2 / 149 ) ↩︎
  40. सुनन अबी दाऊद : किताबुस्सलात (1522 ) ↩︎
  41. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद ( 2 / 149 ) ↩︎
  42. सहीह तिर्मिज़ी लिल अल्बानी : किताबुद दवात ( 3 / 3567 ) ↩︎
  43. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद ( 2 / 153) ↩︎
  44. सहीह मुस्लिम : किताबुल मसाजिद ( 2 / 153) ↩︎
  45. सुननुन्नसई : किताबुस्सहव ( 1336 ) ↩︎
  46. सुननुन्नसई : किताबुल इस्तिआज़ह (5431 ) ↩︎
  47. सूरह बक़रह : 255 पारह 3 ↩︎
  48. सिल्सिलतुल अहादीसुस्सहीहा लिल अल्बानी : (2/972) ↩︎