दुआ इबादत है – तो इबादत के उसूल – हदीस की रौशनी में

♥ मह्फुम ऐ हदीस: हजरत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि0) का बयान है कि एक दिन मैं अल्लाह के अन्तिम रसूल मुहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के पीछे सवारी पर बैठा था कि आपने फऱमायाः
ऐ बेटे! मैं तुम्हें कुछ बातें सिखाता हूं: अल्लाह को याद रख, अल्लाह तेरी रक्षा करेगा। अल्लाह को याद रख अल्लाह को अपने सामने पाएगा। जब तुझे कुछ सवाल करना हो, तो मात्र अल्लाह से सवाल कर,
और जब तुझे सहायता की आवश्यकता हो, तो मात्र अल्लाह से सहायता माँग। और अच्छी तरह जान ले कि यदि सारा संसार इस बात पर एकत्र हो जाए कि तुझे किसी चीज़ से लाभ पहुंचा सके तो वह कदापि नहीं पहुंचा सकते, हाँ मगर उस चीज़ के साथ जो अल्लाह ने तेरे भाग्य में लिख दी है।
और यदि प्रत्येक जगत इस बात पर एकत्र हो जाए कि वह तुझे किसी चीज़ से हानि पहुंचा सके तो वह कदापि नहीं पहुंचा सकते परन्तु इतना ही जितना अल्लाह ने तेरे भाग्य में लिख दी है। क़लम उठा लिए गए हैं। और सहीफें खुश्क हो चुके हैं।
– (तिर्मिज़ी)

इस हदीस में अल्लाह के रसूल (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने बड़े प्यार से इब्ने अब्बास (रज़ि0) को कुछ उपदेश दियाः
(1) पहला उपदेश यह था कि अल्लाह को याद रख अल्लाह तुझे याद रखेगा। इसका अर्थ यह है कि अल्लाह के अधिकार उसके आदेशों का पालन करो और उसके मना किए हुए कामों से रुक जाओ। इसका परिणाम यह होगा कि तू अल्लाह की सुरक्षा और अमान में रहेगा।

(2) दूसरा उपदेश यह दिया कि तू अल्लाह का ख्याल रख अल्लाह को अपने सामने पाएगा अर्थात् वह तुम्हारा काम संवार देगा, तुम्हारी कठिनाइयाँ दूर कर देगा वह तेरा हर समय सहायक बना रहेगा। जैसा कि अल्लाह के रसूल (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने सौर के गुफा में अबू बक्र रज़ि. से कहा था : “(दुश्मनों से) घबराओ मत अल्लाह हमारे साथ है।..”

(3) तीसरा उपदेश जो अल्लाह के रसूल (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने दिया यह है कि: “जब तू सवाल करे (मांगे) तो केवल अल्लाह से ही कर और सहायता मांगे तो अल्लाह से मांग। यही दुआ तो हम नमाज़ की हर रकअत में सूरः फातिहा के अंदर करते हैं कि ऐ अल्लाह हम तेरी ही इबादत करते हैं और तुझ से ही सहायता मांगते हैं। अल्लाह और बन्दे के बीच कोई गैप और दूरी नहीं इस लिए बन्दे को चाहिए कि बिना किसी माध्यम के अल्लाह से मांगे। कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई लाभ अथवा हानि पहुंचाने का अधिकारी नहीं।

*अल्लाह ने कुरआन में फरमाया ( जिसका अर्थ है):
और अल्लाह के अतिरिक्त उनको न पुकारो जो तुमको न लाभ पहुँचा सकते हैं और न हानि। फिर यदि तुम ऐसा करोगे तो निश्चय ही तुम अत्याचारियों में से हो जाओगे। और यदि अल्लाह तुमको किसी कष्ट में पकड़ ले तो उसके अतिरिक्त कोई नहीं जो उसको दूर कर सके। और यदि वह तुमको कोई भलाई पहुँचाना चाहे तो उसकी कृपा को कोई रोकने वाला नहीं। वह अपनी कृपा अपने बन्दों में से जिसको चाहता है प्रदान करता है और वह क्षमा देने वाला, दयावान है।
– (सूरः यूनुस 107)

*दूसरी एक हदीस में आता है कि –
प्यारे नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने फरमाया: “दुआ इबादत है”, फिर नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने ये आयत पढ़ी-
“और तुम्हारा परवरदिगार इरशाद फ़रमाता है- “तुम मुझसे दुआएं माँगों मैं तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूँगा, बेशक जो लोग हमारी इबादत से तकब्बुर करते (अकड़ते) हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख्वार हो कर यक़ीनन जहन्नुम मे दाखिल होंगे”
– (सुरह गफिर आयत 60)
– (Jami’ at-Tirmidhi, Chapters on Tafsir ,Book 47, Hadith 3555)

*तो याद रहे: अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नही और दुआ इबादत है , और जब दुआ इबादत है तो इबादत के तमाम तरीके नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने अपनी उम्मत को बता दिए है ,.. लिहाजा अगर हम दुनिया और आखिरत की हकीकी कमियाबी चाहते है तो इबादत में वोही अमल करे जिसकी तालीम नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने हमे दी है, जो कुरानो सुन्नत से साबित हो ,..

*अल्लाह तआला से दुआ है की:
– हमे कहने सुनने से ज्यादा अमल की तौइक अता फरमाए,.
– हम सबको दिन की सही समझ अता फरमाए,.
– जबतक हमे जिन्दा रखे – इस्लाम और ईमान पर जिन्दा रखे,.
– खात्मा हमारा ईमान पर हो ,.
*वा आखिरू दावाना अलाह्मुद्लिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!

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