हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम

हज़रत अय्यूब (अलै.) और कुरआन पाक

      कुरआन में हज़रत अय्यूब (अलै.) का ज़िक्र चार सूरतों में आया है –

      तर्जुमा- ‘और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान (अलै.)’ (निसा 163) 

      तर्जुमा- ‘और उसकी औलाद में से दाऊद और सुलैमान और अय्यूब और यूसुफ़ और हारुन’ (अल-अनआम  84)  

      तर्जुमा- और अय्यूब (का मामला भी याद करो) जब उसने अपने परवरदिगार को पुकारा था। मैं दुख में पड़ गया हूं और अल्लाह! तुझसे बढ़कर रहम करने वाला कोई नहीं, पस हमने उसकी दुआ कुबूल कर ली और उसका दुख दूर कर दिया और उसको उसका कुंबा उसकी मिस्ल उसके साथ अपनी रहमत से अपने इबादतगुज़ार बन्दों की नसीहत के लिए अता कर दिया। (अल-अंबिया 83 : 84) 

      तर्जुमा- ‘और याद करो हमारे बन्दे अय्यूब (के मामले) को, जब उसने अपने पालनहार को पुकारा था कि मुझको शैतान ने ईज़ा और तक़लीफ़ के साथ हाथ लगाया है। (तब हमने उससे कहा) अपने पांव से ठोकर मार। (उसने ऐसा ही किया और चश्मा ज़मीन से उबल पड़ा। तो हमने कहा) यह है नहाने की जगह ठंडी और पीने की और हमने उसको उसके अहल व अयाल अता किए और उनकी मानिंद और ज़्यादा अपनी मेहरबानी से और यादगार बनाने के लिए अक्लमंदों के लिए और अपने हाथ में सींकों का मुट्ठा ले और उससे मार और अपनी क्रसम में झूठा न हो। बेशक हमने उसको सब करने वाला पाया (और वह अच्छा बन्दा है) बेशक वह (अल्लाह की तरफ) बहुत रुजू होने वाला है। (साद 41-44)

       इन आयतों में हज़रत अय्यूब  (अलै.) के वाक़िए को अगरचे बहुत थोड़े और सादा तरीके से बयान किया गया है, लेकिन बलाग़त व मआनी के लिहाज़  से वाक़ियों के जिस क़दर भी सही और अहम हिस्से थे, उनको ऐसे ढंग से अदा किया गया है कि हज़रत अय्यूब (अलै.) के सफ़र की लम्बी और मोटी किताब में भी यह बात नज़र नहीं आती।

      एक पाक और मुकद्दस इंसान है जो अल्लाह के यहां नबियों और रसूलों की जमाअत में शामिल है और उसका नाम अय्यूब है, ‘वज़्कूर अब्दना अय्यूब’ वह दौलत व सरवत और बाल बच्चों की कसरत के लिहाज़ से भी बहुत खुशबख़्त और फ़ीरोज़मंद था, मगर यकायक इम्तिहान व आज़माइश में आग और माल व दौलत, घर-बार, बाल-बच्चे और जिस्म व जान सबको मुसीबत ने आ घेरा, माल व सामान बर्बाद हुआ, बाल बच्चे हलाक हुए, और जिस्म व जान को सख़्त रोग लग गया, तब भी उसने न शिकवा किया और न शिकायत, बल्कि सब्र व शुक्र के साथ अल्लाह तआला की जनाब में अर्ज़ कर दिया

‘इज़ नादा रब्बहू अन्नी मस्सनियशशैतानु बिनुस्बिंव-व अजाब’ 

      अदब का इतना ख्याल है कि यह नहीं कहा, ‘तूने मुसीबत में डाल दिया‘, क्योंकि उसको इल्म है कि तकलीफ़ व अज़ाब गो अल्लाह ही की मख्लूक़ है, मगर शैतानी अस्बाब की बुनियाद पर ज़ाहिर होते हैं। इसलिए यह कहा, ‘शैतान ने मुझको तकलीफ़ के अज़ाब के साथ छू दिया‘ और फिर हालत बयान करने के लिए निहायत अजीब और लतीफ़ अन्दाज़ इख़्तियार किया कि ‘अन्नी मस्सनियज़्ज़ूर’ (अल्लाह! मुझंको मुसीबत ने आ घेरा है) ‘व अन-त अरहमुर्राहिमीन’ (और तू मेहरबानों में सबसे बड़ा मेहरबान है) और जब उसने पुकारा, तो अल्लाह ने सुना और उसे कुबूल किया। जो माल व मता बर्बाद हुआ और जो घर वाले हलाक़ हुए, अल्लाह ने उससे कई गुना और ज़्यादा उसको बख़्श दिए और सेहत व तन्दुरुस्ती के लिए चश्मा जारी कर दिया कि नहा कर चंगा हो जाए।

      ‘उरकुज़ बिरिज़्ल-क हाज़ा मुग्तसलुन बारिदुब व शराब व व-हब्ना लहू अहलहू व मिस्लहुम म-अ हुम फ़स्तजबना लहू फ़-कशफ़ना मा बिही मिन ज़ुर्रिन व आतैनाहु अहलहू व मिस्लम व मअहुम।‘ और यह सब कुछ इसलिए हुआ कि रहमत उसकी ज़ाती ख़ूबी है। ‘व रहमती व सिअत कुल्ल शैईन फ़-स अक्तुबुहा लिल्लज़ी-न यत्तकून‘ और ताकि सोचने-समझने वाले और फ़रमाबरदार बन्दे उससे नसीहत व इबरत हासिल करें।

      और फिर हज़रत अय्यूब (अलै.) के सब्र और बन्दगी की तारीफ़ करते हुए उसने यह कहकर उनकी अज़्मत को चार चांद लगा दिए ‘इन्ना वजदनाहु साबिरन नेमल अब्दु इन्नहू अव्वाब’ ‘और इसमें कोई शक नहीं कि हमने अय्यूब को बड़ा साबिर पाया। वह बहुत ही अच्छा बन्दा और हमारी जानिब रुजू होने वाला है।

कुछ तफ़्सीरी हक़ीक़तें

हज़रत अय्यूब (अलै.) का मर्ज़

      1. इसराईली रिवायतों में हज़रत अय्यूब (अलै.) के मर्ज़ के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर बयान की गई रिवायतें दर्ज हैं और उनमें ऐसे-ऐसे मर्ज़ों को जोड़ा गया है जो नफ़रत की वजह समझे जाते हैं, जिनकी वजह से रोगी से इंसान का बचना ज़रूरी हो जाता है। तहक़ीक़ करने वालों की राय यह है और यही सही और ठीक है कि जब कुरआन ने मर्ज़ की कोई तफ़सील नहीं बयान की और हदीस का पूरा ज़ख़ीरा उसके ज़िक्र से ख़ाली है तो इसराईली रिवायतों पर बहस क़ायम करना फ़िजूल है।

“मस्सनियश्शैतानु’ से क्या मुराद है? 

      2. ‘मुझको शैतान ने ईज़ा और तकलीफ़ के साथ हाथ लगाया है’, तहकीक़ करने वालों के ख़्याल में हज़रत अय्यूब (अलै.) ने यह बात अदब के तौर पर फ़रमाई (इनका ताल्लुक उनके जिस्म पर शैतान को क़ाबू देने से बिल्कुल नहीं) इसलिए कि यह एक हक़ीक़त है कि अल्लाह की तरफ़ से तो ख़ै रही ख़ैर है और जिस चीज़ को हम शर कहते हैं, वह हमारी निस्बत से शर है, वरना कायनात की तमाम मस्लहतों के लिहाज़ से ग़ौर करोगे तो उसको भी ख़ैर ही मानना पड़ेगा। हमारी ज़िंदगी और हमारे आमाल (काम) की निस्बतें कुछ चीज़ों को शर बना देती हैं, लेकिन हक़ीक़त के एतबार से ये भी ख़ैर ही होती हैं।

      3. आयत व व हब्ना लहू अहलहूं व मिस्लहुम मअहुम में बाल-बच्चों के देने का जो ज़िक्र किया है – क्या उससे यह मुराद है कि अल्लाह तआला ने अय्यूब की सेहत के बाद उनके हलाक़ हुए बाल-बच्चों की जगह पहले से ज़्यादा उनके बाल-बच्चों में इज़ाफ़ा कर दिया और जो ख़ानदान के लोग बिखरे थे, उनको दोबारा जमा कर दिया या यह मक़्सद है कि हलाक़ हुए लोगों को भी ताज़ा ज़िंदगी बख़्श दी और ज़्यादा भी दिए। इब्ने कसीर ने हसन और क़तादा से यही मानी नक़ल किए हैं और शाह अब्दुल कादिर साहब (नव्वरल्लाहु मरक़दहू) की भी यही राय है और इमाम राज़ी रह० और इब्ने हब्बान रह० का रुझान पहले मानी की और है और आयत में दोनों मानों की मुंजाइश है।

      4. सूरः साद में है, ‘व ख़ुज़ य-द-क जिग्सा फज़्रिब बिहीं व ला तहनस’ और अपने हाथ में सींकों का मुट्ठा ले, फिर उससे मार और कसम में झूठा न हो तो यह किस वाक़िए की तरफ़ इशारा है? कुरआन और सहीह हदीसों में तो इसकी कोई तफ़्सील नहीं ज़िक्र की गई, अलबत्ता तफ़्सीर लिखने वाले यह कहते हैं कि हज़रत अय्यूब (अलै.) की हर किस्म की बर्बादी के बाद जब उनकी बीवी के अलावा कोई ग़मगुसार बाक़ी न रहा तो वह नेक बीवी हर वक्त हज़रत अय्यूब (अलै.) की तीमारदारी में मश्ग़ूल और दुख दर्द की शरीक रहती थी।

      एक बार उसने हज़रत अय्यूब (अलै.) की इंतिहाई तकलीफ़ से बेचैन होकर कुछ ऐसी बातें कह दी जो सब्रे अय्यूब को ठेस पहुंचाने वाली और अल्लाह तआला की तरफ़ शिकवा का पहलू लिए हुए थीं, हज़रत अय्यूब (अलै.) उसको बरदाश्त न कर सके और क़सम खाकर फ़रमाया कि मैं तुझको सौ कोड़े लगवाऊंगा।

      जब हज़रत अय्यूब (अलै.) के इम्तिहान की मुद्दत खत्म हो गई और वह सेहतयाब हुए तो क़सम पूरी करने का सवाल सामने आया ! ‘एक तरफ़ ज़िंदगी की साथ की इतिहाई वफ़ादारी, ग़मख़्वारी और अच्छी खिदमत करने का मामला और दूसरी तरफ़ क़सम को सच्चा और पूरा करने का सवाल, हज़रत अय्यूब (अलै.) सख़्त तरद्दुद में थे कि अल्लाह तआला ने नेक बीवी की नेकी और शौहर के साथ वफादारी का यह सिला दिया कि सौ तिनकों का एक मुट्ठा बनाएं और उससे अपनी जीवन-सार्थी को मारें, इस तरह आपकी क़सम पूरी हो जाएगी।

      5. सूरः साद में है उर्कूज़ बिरिज्ल-क हाज़ा मुन्तसतुंब बारिदूंव-व शराब‘, इब्ने कसीर ने उसकी तफ़्सीर में जो कुछ फ़रमाया है। उसका हासिल यह है – अल्लाह तआला ने हुक्म दिया कि-अय्यूब अपनी जगह से उठो और ज़मीन पर ठोकर मारो। हज़रत अय्यूब (अलै.) ने अल्लाह तआला के हुक्म की तामील की, तो अल्लाह तआला ने उनके लिए एक चश्मा जारी कर दिया, जिसमें उन्होंने ग़ुस्ल किया और जिस्म का ज़ाहिरी रोग सब जाता रहा। इसके बाद फिर उन्होंने ठोकर मारी और दूसरा चश्मा उबल पड़ा और उन्होंने उसका पानी पिया और उससे जिस्म के बातिनी हिस्से पर मर्ज़ का जो असर था, उसकी भी जड़ें कट गईं और इसी तरह वह चंगे होकर अल्लाह का शुक्र बजा लाए।

      हाफ़िज़ इब्ने हजर रह० ने इब्ने जरीर के वास्ते से क़तादा से भी इसी किस्म का क़ौल नक़ल किया है –

      चश्मा एक था या दो, इस बहस से हटकर अल्लाह तआला ने हज़रत अय्यूब (अलै.) के लिए सेहत का जो तरीका इख़्तियार फ़रमाया, वह फ़ितरी तरीका है। आज भी ऐसे मादनी (खनिज) चश्मे उसने इंसानी कायनात के फायदे के लिए ज़ाहिर कर रखें हैं, जिनमें गुस्ल करने और उनका पानी पीने से बहुत-से रोग कम हो जाते या दूर हो जाते हैं। फ़र्क इस क़दर है कि ऐसे चश्मे का ज़ाहिर होना हज़रत अय्यूब (अलै.) के लिए एजाज़ की शक्ल में हुआ और आम हालात में अस्बाब के तहत हुआ करता है। 

दूसरे वाक़िए

      इमाम बुख़ारी रह० ने अपनी सहीह में रियायत नक़ल की है कि नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इर्शाद फ़रमाया, हज़रत अय्यूब (अलै.) गुस्ल फ़रमा रहे थे कि अल्लाह तआला ने सोने की कुछ टिड्डियां उन पर बरसाई । हज़रत अय्यूब (अलै.) ने उनको देखा तो मुट्ठी भर कर कपड़े में रखने लगे। अल्लाह तआला ने अय्यूब को पुकारा, अय्यूब ! क्या हमने तुमको यह सब कुछ धन-दौलत देकर ग़नी नहीं बना दिया, फिर यह क्या?

      हज़रत अय्यूब (अलै.) ने अर्ज़ किया- परवरदिगार! यह सही और दुरुस्त, मगर तेरी नेमत और बरकतों से कब कोई बे-परवाह हो सकता है? “व लाकिन ला ग़नी सन बरकतिक०’ इस रिवायत की शरह करते हुए हाफ़िज़ इब्ने हजर तहरीर फ़रमाते हैं कि इमाम बुखारी रह० की अपनी शर्त के मुताबिक़ हज़रत अय्यूब (अलै.) के वाक़िए से मुताल्लिक़ कोई खबर साबित नहीं हो सकी, इसलिए सिर्फ ऊपर लिखी रिवायत ही को उन्होंने काफ़ी समझा, इसलिए कि वह उनकी शर्त के मुताबिक सही है। इसके बाद हाफ़िज़ इब्ने हजर अपनी तरफ़ से फ़रमाते हैं कि इस सिलसिले में अगर कोई रिवायत सेहत को पहुंच सकी है. तो वह इस तरह है–

      हज़रत अनस (अलै.) से रिवायत है कि हज़रत अय्यूब (अलै.) तेरह साल तक मुसीबतों के इम्तिहान में मुब्तिला रहे, यहां तक कि उनके तमाम रिश्ते-नातेदार और करीब व दूर के जान-पहचान के सभी लोगों ने उनसे किनारा कर लिया। अलबत्ता अज़ीज़दारों में से उनके दो अज़ीज़ सुबह व शाम उनके पास आते रहे। एक बार उनमें से एक ने दूसरे से कहा, मालूम होता है कि अय्यूब ने कोई बहुत बड़ा गुनाह किया है, तभी तो वह इसके बदले में ऐसी सख़्त मुसीबत में फंस गया है। अगर यह बात न होती तो अल्लाह उन पर मेहरबान न हो जाता और उनको शिफ़ा न हो जाती?

      यह बात दूसरे ने हज़रत अय्यूब (अलै.) से कह सुनाई। हज़रत अय्यूब (अलै.) यह सुनकर बड़े बेचैन और परेशान हो गए और अल्लाह की दरगाह में सज्दे में गिरकर दुआ करने लगे। इसके फौरन बाद ही हज़रत अय्यूब (अलै.) ज़रूरत पूरी करने के लिए जगह से उठे और उनकी बीवी हाथ पकड़ कर ले गई। जब फ़ारिग़ हुए और वहां से अलग हुए तो अल्लाह की वह्य नाज़िल हुई कि ज़मीन पर पांव से ठोकर मारो और जब उन्होंने ठोकर मारी तो पानी का चश्मा उबल पड़ा और उन्होंने ग़ुस्ले सेहत किया और पहले से ज़्यादा सही व तन्दुरुस्त नज़र आने लगे।

      यहां बीवी इतिज़ार कर रही थी कि हज़रत अय्यूब (अलै.) ताज़गी और शगुफ्तगी के साथ सामने नज़र आए। वह क़तई तौर पर न पहचान सकीं और हज़रत अय्यूब (अलै.) से मुताल्लिक़ उन्हीं से मालूम करने लगी। तब आपने फ़रमाया, मैं ही अय्यूब हूं और अल्लाह के फ़ज़्ल व करम का वाक़िया सुनाया। रोज़ाना के खाने के लिए अय्यूब के पास एक गठरी गेहूं की और एक जौ की थी। अल्लाह ने उनकी दौलत में इज़ाफ़ा करने के लिए गेहूं को सोने और जौ को चाँदी में बदल दिया।

      करीब-करीब इसी क़िस्म का वाकिया इब्ने अबी हातिम ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (अलै.) से भी रिवायत किया है और मुसीबत की मुद्दत के मुताबिक़ वहब बिन मुनबह तीन साल बयान करते हैं और हसन से सात साल नकल किए गए हैं। 

सबक और नसीहत 

      1. अल्लाह की मख़लूक़ में से जिसको अल्लाह तआला के साथ जिस कदर कुरबत हासिल होती है, उसी हिसाब से वह आजमाइशों और मुसीबतों की भट्ठी में ज़्यादा तपाय जाता है और जब वह उनके पेश आने पर सब्र व जमाव से काम लेता है तो यही मुसीबतें उसके कुर्ब वाले दर्जों की, ऊंचाई और बुलन्दी की वजह बन जाती हैं। चुनांचे इस मज़मून को नबी अकरम ने इन लफ्जों में इर्शाद फरमाया –

      “मुसीबतों में सबसे ज़्यादा सख़्त इम्तिहान नबियों का होता है, इसके बाद नेक बन्दों का होता है और फिर मर्तबों और दर्जों के मुताबिक्र।” (हदीस)

      “इंसान अपने दीन के दर्जों के मुताबिक़ आज़माया जाता है, पस अगर उसके दीन में पुख्तगी और मज़बूती है तो वह मुसीबत की आज़माइश में भी दूसरों से ज़्यादा होगा।” (हदीस) 

      2. इज़्ज़त, शोहरत, दौलत, सरवत, खुशहाली और अच्छी हालत में अल्लाह की शुक्रगुज़ारी और एहसान शनासी कुछ ज़्यादा मुश्किल नहीं है और अगर घमंड, गर्व और मैं काम नहीं कर रहा है तो बहुत आसान है, लेकिन मुसीबत, आज़माइश, दुख-ग़म, तंगी, बदहाली में अल्लाह के फैसले पर राज़ी रहकर शिकायत का एक लफ़्ज़ भी ज़ुबान पर न लाना और सब्र व इस्तिकामत का सबूत देना बहुत मुश्किल और कठिन है, इसलिए जब कोई अल्लाह का बन्दा इस बुरी हालत में सब्र व ज़ब्त का दामन हाथ से नहीं छोड़ता।

      और सब व शुक्र का बराबर मुज़ाहिरा करता है, तो फिर अल्लाह की रहमत भी जोश में आ जाती है और ऐसे आदमी पर उसके फ़ज़्ल व करम की बारिश होने लगती है और उम्मीद के खिलाफ़ बेपनाह फ़ज़्ल व करम से नवाज़ा जाता और दीन व दुनिया दोनों की कामरानी का हक़दार बन जाता है। चुनाचें  हज़रत अय्यूब (अलै.) की मिसाल इसके लिए रोशन गवाही है।

      तर्जुमा- “और अय्यूब को हिदायत दी जिस वक्त पुकारा उसने अपने रब को, बेशक मुझको पहुंची है ईज़ा और तू बहुत मेहरबान है सब मेहरबानी कर वालों से पस कुबूल किया हमने वास्ते उसके, पस खोल दी हमने जो कुछ थी उसको पीड़ा और दी हमने उसको औलाद उसकी और मानिंद उनकी साथ उनके मेहरबानी अपनी तरफ़ से और नसीहत वास्ते इबादत करने वालों के” (अंबिया : 83, 84)

      3. इंसान को चाहिए कि किसी हालत में भी अल्लाह तआला की रहमत से नाउम्मीद न हो, इसलिए कि मायूसी कुफ़्र का तरीका है और यह न समझे कि मुसीबत व बला गुनाहों ही के बदले में वजूद में आती हैं, बल्कि कभी-कभी आज़माइश और इम्तिहान बनकर आती और सब्र करने वाले और शुक्र करने वाले के लिए अल्लाह तआला की रहमत का दरवाज़ा खोल देती है। एक हदीसे कुदसी में है कि अल्लाह तआला अपने बन्दों को मुख़ातिब करके इर्शाद फ़रमाता है, “मैं अपने बन्दे के गुमान से करीब हूं।” (अल-हदीस)

      यानी बन्दा मेरे बारे में जिस किस्म का गुमान अपने दिल में रखता है, मैं उसके गुमान को पूरा कर देता हूं।

      4. मियां-बीवी के ताल्लुकात में वफ़ादारी और जमाव सबसे ज़्यादा महबूब चीज़ है और इसीलिए एक हदीस में वस्वसों में सबसे घटिया वस्वसा, जो शैतान को बहुत ही प्यारा है, मियां-बीवी के दर्मियान बद-गुमानी और बुग़्ज़ और दुश्मनी के बीज बो देना है। इसलिए सही हदीसों में उस औरत को जन्नत की खुशखबरी दी गई है जो अपने शौहर के लिए नेक और वफ़ादार साबित हो और इस वफ़ा और मुहब्बत की क़द्र व कीमत उस वक्त बहुत ज़्यादा हो जाती है जब शौहर, दुख और रंज में गिरफ्तार हो और उसके अज़ीज़ और रिश्तेदार तक उससे अलग हो चुके हों।

      चुनांचे हज़रत अय्यूब (अलै.) की ‘पाक बीवी‘ ने हज़रत अय्यूब (अलै.) की मुसीबत के ज़माने में जिस वफ़ादारी, इताअत, हमदर्दी और ग़मख़्वारी का सबूत दिया, अल्लाह ने उसके एहतराम में हज़रतअय्यूब (अलै.) की कसम को उनके हक में पूरा करने के लिए आम हुक्मों की किस्म से जुदा एक ऐसा हुक्म दिया जिससे अल्लाह तआला के यहां उस नेक बीवी की कद्र व अहमियत का आसानी से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है।

      5. तर्जुमा- ‘और खुश्नूदी की खुशखबरी सुना दो उन लोगों को कि जब उन पर कोई मुसीबत आती है तो कहते हैं कि हम अल्लाह ही का माल हैं और उसी की तरफ लौट जाने वाले हैं। यही लोग हैं उन पर उनके परवरदिगार की मेहरबानी और रहमत है और यही सीधे रास्ते पर हैं।’ (अल-बकरः : 157)

To be continued …