Islam & Science – Ummate Nabi ﷺ https://ummat-e-nabi.com Quran Hadees Quotes Wed, 20 Mar 2024 08:31:56 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.4.3 https://ummat-e-nabi.com/wp-content/uploads/2023/09/favicon-96x96.png Islam & Science – Ummate Nabi ﷺ https://ummat-e-nabi.com 32 32 179279570 Ramadan Day 9 : Roza ek Dhaal hai https://ummat-e-nabi.com/ramadan-day-09/ https://ummat-e-nabi.com/ramadan-day-09/#respond Wed, 20 Mar 2024 08:31:50 +0000 https://ummat-e-nabi.com/09-ramzan-hadees-roza-gunaho-aur-jahannum-ki-aag-se-bachane-wali-ek-dhaal-hai/ 09th Ramzan | Roza Gunaho aur Jahannum ki aag se bachane wali ek Dhaal hai. [Hadees: Sahih Bukhari 1904]9th Ramadan Hadith: Abu Hurairah (R.A) se riwayat hai ke, RasoolAllah (ﷺ) ne farmaya: ❝Roza Gunaho aur Jahannum ki aag se bachane wali ek Dhaal hai.❞ [Sahih Bukhari 1904]

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Ramadan Hadees: Day 09

Roza ek Dhaal hai

۞ Bismillah-Hirrahman-Nirrahim ۞

Abu Hurairah (R.A) se riwayat hai ke,
RasoolAllah (ﷺ) ne farmaya:

Roza Gunaaho aur Jahannum ki aag se
bachane wali ek Dhaal hai.

📕 Sahih Bukhari, Hadees 1904

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रमज़ान का तआरुफी ख़ुत्बा | Ramzan ka Khutba https://ummat-e-nabi.com/ramzan-ka-khutba/ https://ummat-e-nabi.com/ramzan-ka-khutba/#respond Mon, 04 Mar 2024 07:56:57 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=30669 Ramzan ka Khutbaए लोगो!" तुम पर एक अज़ीम और मुबारक महीना साया फगन होने वाला है, ऐसा महीना जिसमें एक ऐसी रात (शबे कदर) है जो 1000 महीनों से बढ़कर ....

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रमज़ान का तआरुफी ख़ुत्बा

सैय्यदना हजरत सलमान फारसी रज़ि. फरमाते हैं के शाबान की आखिरी तारीख को नबी ए अकरम ﷺ मिम्बर पर तशरीफ़ फरमा हुए और इरशाद फरमाया:

“ए लोगो!” तुम पर एक अज़ीम और मुबारक महीना साया फगन होने वाला है, ऐसा महीना जिसमें एक ऐसी रात (शबे कदर) है जो 1000 महीनों से बढ़कर है। अल्लाह तआला ने इस महीने के दिनों का रोज़ा फ़र्ज़ और रातों की इबादत नफल करार दी है।

जो शख्स इस महीने मैं एक नेक अमल के जरिए अल्लाह तआला के क़ुर्ब का तालिब हो वह ऐसा ही है जैसे दूसरे महीने में फ़र्ज़ अमल करे (यानी नफल का सवाब फ़र्ज़ के दर्जे तक पहुंच जाता है) और जो शख्स कोई फर्ज अदा करे, वह ऐसा ही है जैसा दूसरे महीनों में 70 फ़र्ज़ अदा करे।

ए लोगो ! यह सब्र का महीना है, और सब्र का सवाब और बदला जन्नत है। और यह लोगों के साथ हुस्ने सुलूक और खैरख्वाही का महीना है, इस महीने में मोमिन का रिज़्क़ बढ़ा दिया जाता है।

जो आदमी इस मुबारक महीने में किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराए उसके गुनाह माफ कर दिए जाते हैं, उसे जहन्नम से आज़ादी का परवाना मिलता है, और रोजेदार के सवाब में कमी किए बगैर इफ्तार कराने वाले को भी उसके बराबर सवाब से नवाजा जाता है।

यह सुनकर सहाबा ने अर्ज किया:“ए अल्लाह के रसूल ﷺ! हम में से हर आदमी अपने अंदर इतनी गुंजाइश नहीं पाता कि वह दूसरे को (बाकायदा) इफ्तार कराए और उसके सवाब को हासिल करे।”

इस सवाल पर रहमते आलम ﷺ ने अपने सहाबा को ऐसा जवाब दिया जिससे उनकी मायूसी खुशियों में बदल गई।

आप ﷺ ने फरमाया:
अल्लाह तआला यह इनाम हर उस शख्स पर फरमाता हैं जो किसी भी रोजेदार को एक घूंट दूध या लस्सी, एक अदद खजूर, हत्ता के एक घूंट पानी पिला कर भी इफ्तार करा दे। हां, जो शख्स रोजेदार को पेट भर खिलाए तो अल्लाह रब्बुल आलमीन उसे कयामत के दिन मेरे हौज़ ए कवसर से पानी पिलायेगा जिसके बाद कभी प्यास न लगेगी यहां तक कि जन्नत में हमेशा के लिए दाखिल हो जाएगा।

फिर आप ﷺ ने फरमाया: यह ऐसा महीना है जिसका पहला अशरह रहमत, दरमियानी अशरा मगफिरत और आखरी अशरह जहन्नम से आजादी का है। जो शख्स इस महीने में अपने गुलाम (मुस्लिम रोज़ेदार खादिम और मुलाजिम वगैरा) के बोझ को हल्का कर दे तो अल्लाह तआला उसकी मगफिरत फरमाता हैं और आग से आजादी देता हैं।

ए लोगो ! इस महीने में चार चीजों की कसरत रखा करो!!
(1) कालिमा ए तैय्यबा ला इलाह इल्लल्लाह (2) इस्तिगफार (3) जन्नत की तलब (4) आग से पनाह।

📚 मिश्कात: 1/174, बैहक़ी शिअबुल ईमान:3/ 305

पढ़े :

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रमज़ान का महिना … जानिए: इसमें क्या है हासिल करना? https://ummat-e-nabi.com/ramzan-ke-mahine-me-kya-hai-hasil-karna/ https://ummat-e-nabi.com/ramzan-ke-mahine-me-kya-hai-hasil-karna/#respond Mon, 04 Mar 2024 07:51:36 +0000 https://ummat-e-nabi.com/ramzan-ke-mahine-me-kya-hai-hasil-karna/ Ramzan me kya karnaहम मुसलमानों ने कुरआन की तरह रमज़ान को भी सिर्फ सवाब की चीज़ बना कर रख छोड़ा है, हम रमज़ान के महीने से सवाब के अलावा कुछ हासिल नहीं करना चाहते इसी लिए हमारी ज़िन्दगी हर रमज़ान के बाद फ़ौरन फिर उसी पटरी पर आ जाती है जिस पर वो रमज़ान से पहले चल रही थी

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हम मुसलमानों ने कुरआन की तरह रमज़ान को भी सिर्फ सवाब की चीज़ बना कर रख छोड़ा है, हम रमज़ान के महीने से सवाब के अलावा कुछ हासिल नहीं करना चाहते इसी लिए हमारी ज़िन्दगी हर रमज़ान के बाद फ़ौरन फिर उसी पटरी पर आ जाती है जिस पर वो रमज़ान से पहले चल रही थी,

कुरआने हकीम रमज़ान के बारे में कुछ यूं फरमाता है –

“ऐ ईमान वालों तुम पर रोज़े फ़र्ज़ किये गए है जैसे तुमसे पहली उम्मतों पर फ़र्ज़ किये गए थे ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ…”

📕 सूरेह बक्रह 2:183

रमज़ान अपनी असल में एक ट्रेनिंग का महीना है और इस महीने का मकसद इन्सान को सब्र, शुक्र और परहेज़ करने की ट्रेनिंग देना है…

सब्र:

एक सरसरी निगाह दुनियां पर डाली जाए तो हमें यह देखने को मिलता है कि हर इंसान सब कुछ बहुत जल्दी पा लेने की कोशिश में अंधों की तरह दौड़ रहा है, वह इज्ज़त, दौलत और ऐश की हर चीज़ को फ़ौरन पा लेना चाहता है और इसके लिय जो भी उससे बन पड़ता है वो कर गुज़रता है वो तब तक ही ईमानदार रहता है जब तक उसे बेईमानी का सेफ मौका नहीं मिलता…

– इज्ज़त, दौलत और एशो आराम पाने की तमन्ना करना और उनके लिए कोशिश करना ना कोई गुनाह है और ना कोई बुरी बात, बल्कि हकीक़त यह है कि यह सब चीज़ें इंसान के लिए ही हैं. इनको पाने की कोशशि करने में ईमानदारी की हदों से बाहर ना जाने को ही सब्र कहते हैं,.

रोज़ा हमें सब्र करने की ट्रेनिंग इस तरह देता है कि दिन के ख़त्म होने तक हम पर खाना पीना बंद कर देता है और हमारे पास शाम तक इन्तिज़ार करने के सिवा कोई चारा नहीं रहता. इसके साथ ही अल्लाह का हुक्म यह है कि अगर रोज़े में आप को कोई गुस्सा दिलाए या लड़ने पर उभारे तो आप को उस से बदला नहीं लेना है बल्कि यह कह कर कि ”मैं रोज़े से हूँ” अलग हो जाना है…

एक महीने तक रोज़ ऐसे रोज़े रखने पर इंसान सब्र करना सीख जाता है और फिर वो अपने सब्र करने की सलाहियत (क्षमता) को खाने पीने से हटा कर दूसरी हराम चीज़ों पर बड़ी आसानी से इस्तिमाल कर सकता है.

शुक्र:

अपने रब का शुक्र गुज़ार होना हर इंसान के लिए बेहद ज़रूरी है. कुरआने हकीम में भी शुक्र गुज़ार होने की तलकीन बहुत ज्यादा की गई है, जो इंसान शुक्र गुज़ार होता है वो कभी तकब्बुर (घमण्ड) नहीं कर सकता,.. शुक्र करना तकब्बुर को पैदा ही नहीं होने देता.

– जो इंसान रब का शुक्र गुज़ार नहीं होता उसमें घमण्ड पैदा हो जाता है और घमण्ड इतनी बुरी चीज़ है कि हदीसों से पता चलता है कि जिस दिल में ज़रा भी घमण्ड आ जाता है उस दिल से ईमान अपना बोरया बिस्तर समेट कर चला जाता है.

– दूसरों पर ज़ुल्म करना, दूसरों को सताना, दूसरों की बात ना सुनना, लोगों की मदद ना करना और दूसरों को नीचा समझने की मानसिकता घमण्ड के ही रूप हैं, इस लिए इस्लाम में हर तरह के तकब्बुर को सख्ती से मना किया गया है…

– रोज़े में बहुत ज्यादा भूक और प्यास के बाद इंसान को अंदाज़ा होता है कि पानी और खाना कितनी बड़ी नेमत हैं जिन को वो बहुत मामूली समझ रहा था, और जब सारे दिन की भूक के बाद शाम को पहला निवाला और सख्त प्यास के बाद शाम पानी का पहला घूँट गले से नीचे उतरता है तो उस वक़्त इंसान का रोम रोम अल्लाह का शुक्र अदा कर रहा होता है. हर रोज़ ऐसा करने से हर नेमत मिलने पर शुक्र करने की आदत पैदा होती है, तो इस तरह रोज़ा इंसान को शुक्र गुज़ार बनाता है…

परहेज़:

इंसान की हवा के बाद सबसे पहली ज़रूरत खाना और पीना है बाकि सारी ज़रूरत खाने पीने के मुकाबले में कुछ भी नहीं हैं. एक प्यासा ही एक ग्लास पानी की सही कीमत जानता है. आप को रोज़े में बहुत प्यास और भूक लगी हुई है और पानी और खाना दोनों घर में मौजूद हैं और कोई देखने वाला भी नहीं है, लेकिन अभी वो आपके रब ने आप पर हराम कर रखा है इस लिए आप उसे अभी नहीं खा पी रहे बल्कि उस वक़्त का इन्तिज़ार कर रहे हैं जब वो आप पर हलाल हो जाएगा.

– वो इंसान जिसकी प्यास की वजह से जीभ भी ऐंठ गई हो फिर भी वो पानी नहीं पी रहा क्यों कि उसके रब ने उस पर वो हराम कर रखा है तो बाकि अल्लाह की हराम की हुई चीज़ें झूठ बोलना दूसरों को सताना गलत तरह से पैसा कमाना शराब पीना जैसे हराम कामों से परहेज़ करना सिर्फ इसलिए क्यों कि वो उसके रब ने उस पर हराम की हैं उसके लिए क्या मुश्किल है ? जो सख्त प्यास की हालत में पानी से परहेज़ कर सकता है वो हर चीज़ से परहेज़ कर सकता है.

– भूक इंसान में कमजोरी पैदा करती है और कमजोरी इंसान के अन्दर झुकाओ पैदा करती है. इसके साथ ही रमज़ान हमें वक़्त की पाबन्दी और नमाज़ की आदत भी सिखाता है.

– जैसे ट्रेनिंग के बाद सिपाही जंग के मैदान में जाता है और ट्रेनिंग में सीखे हुए हुनर का इस्तिमाल करता है ऐसे ही हमें हर रमज़ान के बाद ग्यारह महीने शैतान से जंग करनी है और उसके लिए वही हुनर यानि सब्र, शुक्र और परहेज़ इस्तिमाल करने हैं जो हमें रमज़ान ने सिखाए थे..

रमज़ान का महीना है जिसमे कुरआन नाजिल किया गया, लोगों के लिए रहनुमा बना कर और बहुत साफ़ दलीलों की सूरत में जो अपनी असल के लिहाज़ से सरासर हिदायत भी है और हक और बातिल का फैसला भी ,..
– रमज़ान सवाब का महीना है आओ हम सब मिल कर इसे हिदायत का महीना बनाएं, इस बार हम सब अपनी बुराइयों पर गौर करें और कोशिश करें कि उनको मिटाएँ …….

– (मुशर्रफ अहमद)

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रोजों के मसाइल क़ुरआन और सुन्नत की रौशनी में। https://ummat-e-nabi.com/rozo-ke-masail-qurano-sunnat-ki-roshni-mein/ https://ummat-e-nabi.com/rozo-ke-masail-qurano-sunnat-ki-roshni-mein/#respond Mon, 04 Mar 2024 07:47:11 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=25745 Rozo ke Masail Qurano Sunnat ki Roshni meरोजे की फजीलत, रमज़ान की अहमियत, चांद देखने के मसाइल, रोज़े की नीयत के मसाइल, सहरी व इफ्तारी के मसाइल , क़ज़ा रोज़े, नफ्ली रोज़े,

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۞ बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम ۞

“अल्लाह के नाम से जो बड़ा मेहरबान बहुत रहम वाला है।”

सब तआरीफे अल्लाह तअला के लिए हैं जो सारे जहांनो का पालने वाला है, हम उसी की ताअरीफ करते है और उसी से मदद चाहते हैं।

       अल्लाह की बेशुमार रहमतें, बरकतें और सलामती नाज़िल हो मुहम्मद सल्लललाहु अलैहि वसल्लम पर और आप की आल व औलाद व असहाब रजि. पर। अम्मा बअद!

इस्लाम की पांच बुनियादों में से एक रोजा है। शरई इस्तेलाह में “रोजा सुबह सादिक से सूरज के गुरूब होने तक खाने पीने, बीवी से जमाअ करने और गुनाहों से बाज रहने का नाम है।”

1. रोज़ा कुरआने मजीद की रोशनी में

  1. “ऐ लोगों! जो ईमान लाये हो । तुम पर रोजे फर्ज कर दिये गये। जिस तरह तुम से पहले लोगों पर फर्ज किये गये थे। ताकि तुम परहेज़ गार बन जाओं” (सुरह बकरा-आयत-183)
  2. रमजान वह महीना है जिसमें कुरआन नाजिल किया गया । तुम में से जो शख्स इस महीने को पाये तो उसे चाहिये कि रोजा रखें । हां अगर कोई बीमार हो या मुसाफिर तो उसे दूसरे दिनों में यह गिनती पूरी करना चाहिये । (सुरह बकरा-आयत-185)

2. रोजे की फजीलत

  1. जब रमजान आता हे तो आसमान के दरवाजे खोल दिये जाते है, जहन्नम के दरवाजे बन्द कर दिये जाते है ओर शयातीन जन्जीरो से जकड़ दिये जाते है। (लुलु वर मरजान-65 2, अबु हुरैरा रजि.)
  2. रमजान मे उमरा करने से हज का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-225 5-56 इब्ने अब्बास रजि.)
  3. रमज़ान में सवाब की नीयत से रोजा रखने ओर कयाम करने वाले के गुजरे सब गुनाह माफ कर दिये जाते है। (बुखारी-1901, इब्ने माजा-1641 अबु हुरेरा रजि.)
  4. रोज़ा कयामत के दिन रोजेदार की सिफारिश करेगा । (मुसनद अहमद, तबरानी, इबने अम्र बिन आस रजि.)
  5. () रोजे का अज्र (बदला) बे हिसाब है।
    () रोजेदार की मुंह की बू कयामत के दिन अल्लाह तआला को मुश्क की खुशबू से भी ज्यादा पसंद होगी। (बुखारी-1894 मुस्लिम-1997-98 अबु हुरैरा रजि.)
  1. ‘जन्नत में रयान‘ नाम का एक दरवाज़ा है। कयामत के दिन उस दरवाजे से सिर्फ रोजेदार जन्नत में दाखिल होगे। (मुस्लिम, बुखारी-1896, इब्ने माजा-1640, सहल बिन सअद रजि.)
  2. रमजान का पूरा महीना अल्लाह तआला हर रात में लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1642 अबु हुरेरा रजि.)
  3. अल्लाह तआला हर रोज़ इफ्तार के वक्त लोगों को जहन्नम से आजाद करता है। (इब्ने माजा-1643 जाबिर रजि.)

3. रमज़ान की अहमियत 

  1. रमजान के महीने में एक रात ऐसी हे जो हजार महीनों से बेहतर है। जो शख्स इस (कि सआदत हासिल करने) से मेहरूम रहा, वह हर भलाई से मेहरूम रहा। (इब्ने माजा-1644 अनस रजि.)
  2. उस शख्स के लिए हलाकत है जिसने रमजान का महीना पाया ओर अपने गुनाहों की बख्शिश ओर माफी ना पा सका। (मुसतदरक हाकिम-काअब बिन उजरा रजि.)
  3. कोई शख्स अगर बगैर शरई उज्र के रमजान का रोज़ा छोड़ दे या तोड़ दे तो जिन्दगी भर के रोजे भी उसकी भरपाई नहीं कर सकते। (अबु दाऊद-2396 जईफ, तिर्मिज़ी-621, अबु हुरैरा रजि.)

4. चांद देखने के मसाइल 

  1. चांद देखे बिना रमजान के रोजे शुरू ना करो ओर चांद देखे बगैर रमजान खत्म ना करो। अगर मतला अब आलूद हो तो महीने के 30 दिन पूरे कर लो। (मुस्लिम 1842, बुखारी 1906, इब्ने माजा-1654 इब्ने उमर रजि.)
  2. एक मुसलमान की गवाही पर रोजे शुरू किये जा सकते है। (अबु दाऊद-2342 इब्ने उमर रजि., इब्ने माजा 165 2 इब्ने अब्बास रजि.)
  3. शव्वाल (ईद) का चांद देखने में दो आदमियों की गवाही होना चाहिये। (अबु दाऊद 2339 रबीअ बिन हिराश रजि.)
  4. रमजान की पहली तारीख के चांद के बजाहिर छोटा या बड़ा दिखने से शक में नहीं पड़ना चाहिये। (मुस्लिम 1859 अबु अल बख़तरी रजि)
  5. नया चांद देखने पर यह दुआ पढ़ना मसनून है “अल्ला हुम्मा अहिल्लहु अलैना बिल्युम्नि वल ईमानि वस्सलामति वल इस्लाम! रब्बि व रब्बु कल्लाह।” यानि ऐ अल्लाह! हम पर यह चांद अम्न, ईमान, सलामती ओर इस्लाम के साथ तुलूअ फरमा। (ऐ चांद मेरा और तेरा रब अल्लाह है।) (तिर्मिजी, मिश्कात-23 1 5 तल्हा बिन उबैदुल्लाह रजि.)
  6. () चांद देख कर रोजा शुरू करने और चांद देखकर खत्म करने के लिए उस वक्त हाज़िर इलाके या मुल्क का लिहाज़ रखना चाहिये।
    () रमजान में एक मुल्क से दुसरे मुल्क सफर करने पर अगर मुसाफिर के रोजों की तादाद हाजिर इलाके में माहे रमजान के रोजों की तादाद से ज्यादा होती हो तो जाइद दिनों के रोजे छोड़ देना चाहिये या नफिल रोजे की नीयत से रखना चाहिये और अगर तादाद कम बनती हो तो ईद के बाद रोजों की गिनती पूरी करनी चाहिये। (मुस्लिम 1858 अबु दाऊद 2332 तिर्मिजी 596 इब्ने अब्बास रजि.)
  7. अब्र (बादल) की वजह से शव्वाल (ईद) का चांद दिखाई ना दे और रोजा रख लेने के बाद मालूम हो जाये कि चांद नजर आ चुका है तो रोजा खोल देना चाहिये। (अबु दाऊद-233 9 रबिअ बिन हिराश रजि.)

5. रोज़े की नीयत के मसाइल

  1. आमाल के अज्र व सवाब का दारोमदार नीयत पर है। (बुखारी-01 उमर रजि.)
  2. जिसने दिखावे का रोजा रखा उसने शिर्क किया। (मुसनद अहमद-शद्दाद बिन औस रजि.)
  3. जिसने फज़र से पहले फ़र्ज़ रोजे की नीयत ना की उसका रोजा नहीं। (अबु दाऊद-2454 तिर्मिजी-628 हफ़सा बिनते उमर रजि.)
    () नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी भी वक्त की जा सकती है।
    () नफली रोजा किसी भी वक्त और किसी भी वजह से तोड़ा जा सकता है। (मुस्लिम-2004-05 अबु दाऊद-2455 आयशा रजि.)
  4. रोजे की नीयत दिल के इरादे से है। मुरव्वजा अलफाज “व बि सौमि गदिन नवैतु मिन शहरि रमज़ान“ सुन्नते रसूल सल्ल. से साबित नहीं.

6. सहरी व इफ्तारी के मसाइल 

  1. सहरी खाओं क्योकि सहरी खाने में बरकत है। (लुलुवल मरजान-665, इबने माजा-1692 अनस रजि.)
  2. हमारे और अहले किताब के रोजे में फर्क सहरी के खाने का है। (अबु दाऊद-2343 नसाई-21 70 अम्र इब्ने आस रजि.)
  3. सहरी देर से खाना और इफ्तार में जल्दी करना अखलाके नबुवत से है। (तबरानी-अबुदर्दा रजि.)
  4. सहरी खाते अगर अजान हो जाये तो खाना फौरन छोड़ देने के बजाय जल्दी-जल्दी खा लेना चाहिये। (अबुदाऊद-2350 अबुहुरैरा रजि.)
  5. रोज़ा इफ्तार करने के लिए सूरज का गुरूब होना शर्त है। (बुखारी-1954 मुस्लिम-1877 अबु दाऊद-2351 उमर रजि.)
  6. जब तक लोग इफ्तार में जल्दी करेंगे उस वक्त तक खैर व भलाई पर रहेंगे। (लुलुवल मर्जान-667 सहल बिन सअद रजि.)
  7. ताजा खजूर, छुवारा या पानी से रोजा इफ्तार करना मसनून है। (तिर्मिजी-अबु दाऊद-2356 अनस रजि.)
  8. नमक से रोजा इफ्तार करना सुन्नत से साबित नहीं।
  9. रोजे के इफ्तार पर यह दुआ पढ़ना साबित है। “जहब्बज़्जमउ वन्तलल्तिल उरूक व सब तल अज्रू इन्शा अल्लाह” यानि “प्यास खत्म हो गई, रगें तर हो गई और रोजे का सवाब इन्शा अल्लाह पक्का हो गया। (अबू दाऊद-2357-इब्ने उमर रजि.)
    नोट: इफ्तार के वक्त यह दुआ “अल्लाहुम्मा लका सुन्तु (व बिका आमनतु व इलैका तवक्कलत) व अला रिज्किका अफतरतु” (अबुदाऊद-2358)
     ना पढ़ना बेहतर है। इसलिए के ये अलफाज हदीसे रसूल सल्ल. में ज़्यादती है। और बाकी हदीस भी सनदन जईफ है।
  10. जिसने रोजेदार का रोजा इफ्तार करवाया उसे भी उतना ही सवाब मिलेगा जितना सवाब रोजेदार के लिए होगा और रोजेदार के सवाब (अज्र) से कोई चीज़ कम ना होगी। (इब्ने माजा-1746 तिर्मिजी-700 जेद बिन खालिद रजि.)

7. रोजे की रुख्सत (छूट) के मसाइल

  1. सफर में रोजा रखना और छोड़ना दोनो जाइज है। (लुलुवल मर्जान-684 आयशा रजि.)
    नबी सल्ल. के साथ सफर में कुछ सहाबा ने (रमजान का) रोजा रखा और कुछ ने नहीं रखा और किसी ने किसी पर ऐतराज नहीं किया (मुस्लिम-1923 अबु सईद खुदरी रजि.)
  1. मुसाफिर को रोजा बाद में रखने और आधी नमाज़ की छूट है। और हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को भी रोजा बाद में रखने की रूख्सत है। (अबुदाऊद-2408 इब्ने माज़ा-1667 अनस कअबी रजि.)
  2. सफर या जिहाद में रोजा तर्क किया जा सकता है और अगर रखा हो तो तोड़ा जा सकता है। उसकी सिर्फ कजा होगी, कफ्फारा नहीं। रमजान के महीने में एक सफर के दौरान आप सल्ल. ने रोजा तोड़ दिया और लोगो (सहाबा) ने भी तोड़ दिया। (लुलु वल मर्जान-680 इब्ने अब्बास रजि. मुसिलम-1913)
  3. बुढापा या ऐसी बीमारी जिसके खत्म होने की उम्मीद ना हो, कि वजह से रोजा रखने के बजाय फिदया दिया जा सकता है। एक रोजे का फिदया एक मिस्कीन को 2 वक्त का खाना खिलाना है और उस पर कोई कजा नहीं। (मुसतदरक हाकिम, दार कत्नी इबने अब्बास रजि)
  4. बीमारी, सफर, बुढ़ापा, जिहाद और औरत के मामले में हमल और दूध पिलाने के दिनों में अगर कोई रोजा रख ले ओर रोजा पूरा ना कर सके या तोड़ ले तो ऐसी सूरत में सिर्फ कजा होगी। (लुलु वल मर्जान-682 नसाई-23 19 अनस बिन मालिक रजि.

8. कज़ा रोज़ों के मसाइल 

  1. रमजान के रोजों की कजा आइन्दा रमजान से पहले किसी वक्त भी अदा की जा सकती है। (लुलु वल मर्जान-70 3 आयशा रजि.)
  2. फर्ज रोजों की कजा अलग-अलग या लगातार दोनों तरह जाइज है। (दार कत्नी-आयशा रजि.)
  3. मरने वाले के कजा रोजे उसके वारिस को रखना चाहिये। (लुलु वल मर्जान-704 मुस्लिम 1987 आयशा रजि.)
  4. नफली रोजे की कजा अदा करना वाजिब नहीं। (अबु दाऊद-2456 उम्मे हानी रजि.)
  5. अगर किसी ने बादल की वजह से रोजा वक्त से पहले इफ्तार कर लिया लेकिन बाद में मालूम हुवा कि सूरज गुरूब नहीं हुआ था तो कजा वाजिब होगी। इसी तरह सहरी खाई और बाद में यकीन हो गया कि सुबह सादिक हो चुकी थी। ऐसी हालत में भी कजा वाजिब होगी, कफ्फारा नहीं। (बुखारी-1959 इबने माजा-1674 अस्मा बिन्ते अबु बकर रजि.)

9. वह बाते जिन से रोज़ा मकरूह नहीं होता 

  1. भूल-चूक से खा-पी-लेने से। (बुखारी-1933, मुस्लिम 2006 अबु दाऊद-2398, अबु हुरैरा रजि.)
  2. मिसवाक करने से। (इब्ने माजा-1677 अबुदाऊद-2364 आयशा रजि.)
  3. गर्मी की शिद्दत में सर पर पानी बहाने (नहाने) से। (अबु दाऊद-2365, बुखारी, जिल्द 3 सफा 1 89 इब्ने उमर रजि.)
  4. मजी खारिज होने या एहतेलाम होने से। (अबु दाऊद-2376 इब्ने अब्बास रजि. तिर्मिजी-618 अबु सईद रजि.)
  5. सर में तेल डालने, कंघी करने या आंखों में सुरमा लगाने से। (इब्ने माजा-1678-आईशा रजि., तिर्मिजी-624-अनस रजि.)
  6. हंडिया का जायेका चखने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-189, इब्ने अब्बास रजि.)
  7. मक्खी हलक में चले जाने या उसे बाहर निकालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-191, हसन बिन अली रजि.)
  8. थूक निगलने से। (अबुदाऊद-2386 आईशा रजि.)
  9. नाक में दवा डालने से। (बुखारी-जिल्द 3 सफा-192-हसन रजि.)
  10. अगर किसी पर गुसल फर्ज हो तो वह सहरी खा कर नमाजे फज़र से पहले गुसल कर सकता है। (लुलु वल मर्जान-677, अबुदाऊद-2388-आईशा रजि.)
  11. बीवी का बोसा लेने से। (बशर्ते कि जजबात पर काबू हो) (लुलु वल मर्जान-676, अबुदाऊद-2382, तिर्मिज़ी-625-आईशा रजि.)
  12. खुद ब खुद कय (उलटी) आने से (तिर्मिज़ी-618-अबु सईद खुदरी रजि.)

10. वह बातें जो रोजे की हालत में मना हैं। 

  1. गीबत करना, झूट बोलना, गाली देना और लड़ाई-झगड़ा करना। (बुखारी-1903, अबुदाऊद-2362-अबु हुरैरा रजि.)
  2. बेहुदा, फहश और जहालत के काम या बातें करना। (लुलु वल मर्जान-706, अबुदाऊद-2363-अबु हुरैरा रजि.)
  3. (जो अपनी शहवत पर काबू न रख पाता हो, उसके लिए) बीवी से बगलगीर होना या बोसा लेना। (बुखारी-1927-आईशा रजि., अबुदाऊद-2387-अबु हुरैरा रजि.)
  4. कुल्ली करते वक्त नाक में इस तरह पानी डालना कि हलक तक पहुंच जाए। (तिर्मिजी-68 3, अबुदाऊद-लकीत बिन सबरह रजि.)

11. रोज़े को खराब करने या तोड़ने वाली बातें।

  1. () रोजे की हालत में जमाअ (हमबिस्तरी) करना। इस पर कफ्फारा भी है और कजा भी।
    () रोजे का कफ्फारा एक गुलाम आजाद करना, या दो माह के लगातार रोजे रखना या साठ मोहताजों को खाना खिलाना है। (लुलु वल मर्जान-678, अबुदाऊद-2390-अबु हुरैरा रजि.)
  1. कसदन कय (उलटी) करना। इस से रोजा टूट जाता है और कजा वाजिब है। (अबु दाऊद-2380, इब्ने माजा-1676 अबु हुरैरा रजि.)
  2. हैज (माहवारी) या निफास का शुरू हो जाना। रोजे की कजा है, नमाज की नहीं। (बुखारी-1951-अबु सईद रजि., अबु अल जनाद रह.)

12. नफली रोजे

  1. (रमजान के रोजो के साथ) हर साल माहे शव्वाल में 6 रोजे रखने का सवाब उम्र भर रोजे रखने के बराबर है। (मुस्लिम-2040, अबुदाऊद-2433,इब्ने माजा-1716, अबु अय्युब अन्सारी)
  2. हमेशा अय्यामे बैद (चांद की 13-14-15 तारीख) के रोजे रखने से उम्र भर के रोजों का सवाब मिलता है। (मुस्लिम-2033- अबु दाऊद-2449 इब्ने माजा1707-अबु कतादा रजि.)
  3. () सफ़र में रोजा रखना जाइज है। (अबुदाऊद-2402-आईशा रजि.)
    () सफर में रोजा छोड़ना जाइज है। (अबु दाऊद-2403-हमजा बिन उमर सलमी रजि.)
    () सफर में रोजा रखना और न रखना दोनो जाइज है। (लुलु वल मर्जान-684-आईशा रजि., 685’अबु दर्दा रजि.)
  1. जिहाद के सफर में नफली रोजा रखने वाले को अल्लाह तआला 70 साल की मुसाफत के बराबर जहन्नम से दूर कर देते हैं। (लुलु वल मर्जान-709, इब्ने माजा-1717-अबु सईद खुदरी रजि.)
  2. सोमवार और गुरूवार (पीर और जुमेरात) को रोज़ा रखना आप सल्ल. को पसन्द था। (अबुदाऊद-2436, उसामा बि जैद रजि., तिर्मिजी-644-अबु हुरैरा रजि.)
  3. यौमे अरफा (9 जिल्हिजा) का रोजा रखने से अगले और पिछले एक साल के सगीरा गुनाह माफ हो जाते हैं। जब कि यौमे आशूरा (10 मुहर्रम) का रोजा रखने से गुजरे एक साल के सगीरा (छोटे) गुनाह माफ हो जाते हैं। (मुस्लिम-20 33-अबुकतादा रजि.)
  4. एक दिन छोड़कर दूसरे दिन रोजा रखना सबसे अफजल रोजा है। (लुलु वल मर्जान -714,अबु दाऊद-2427,2448-इब्ने उम्र बिन आस रजि.)
  5. रमजान के बाद सब से अफजल रोजे माहे मुहर्रम के रोजे हैं। (मुस्लिम-20 38,अबु दाऊद-2429, अबु हुरैरा रजि.)
  6. जिल्हिज्जा के 1 से 9 तारीख के रोजे रखना मुस्तहब है। (तिर्मिजी-653, आईशा रजि.)
  7. हर माह तीन रोजे रखना मुस्तहब है। (तिर्मिज़ी-660-आईशा रजि., अबुदाऊद2449-कतादा बिन मुलहान रजि.)
  8. हर माह के पहले सोमवार और पहली दो जुमेरातों के रोजा रखना मुस्तहब है। (नसाई-2419, अबु दाऊद-2451 -हफ्सा रजि.)
  9. नफली रोजे की नीयत दिन में जवाल से पहले किसी वक्त भी की जा सकती है बशर्त कि कुछ खाया-पिया न हो। (अबु दाऊद-2455, मुस्लिम-2004,05, आईशा रजि.)

13. ममनूअ और मकरूह रोजे 

  1. ईदुल फितर और ईदुल जुहा के दिन रोजा रखना मना है। (लुलु वल मर्जान-697, अबु दाऊद-2416-उमर रजि.)
  2. सिर्फ जुमे के दिन रोजा रखना मकरूह है। अलबत्ता अगर कोई शख्स रोजे रखने का आदी हो और उसमें जुमा आ जाए तो फिर जाइज़ है। (लुलु वल मर्जान-701 इब्ने माजा-1 723-अबु हुरैरा रजि.)
  3. सौमे विसाल (यानि शाम के वक्त रोजा इफ्तार न करना और बिना कुछ खाये-पिये अगला रोजा शुरू कर देना) मकरूह है। (लुलु वल मर्जान-672-अबु हुरैरा रजि.)
  4. लगातार रोजे रखना मना है। इसलिए कि “जिसने लगातार रोजे रखे, उसका कोई रोजा नहीं। (लुलु वल मर्जान-71, 4-अब्दुल्लाह बिन अम्र रजि.)
  5. () अय्यामे तश्रीक (11-12-13 जिल्हज्ज) के रोजे रखना मना है। (मुस्लिम 1974-75, अबु दाऊद-2419-उक्बा बिन आमिर रजि)
    () अलबत्ता जो हाजी कुर्बानी न दे सके वह ‘मिना’ में इन दिनों में रोजे रख सकता है। (बुखारी-1997-98-आईशा व इब्ने उमर रजि.)
  6. हाजी को अरफात में 9 जिल्हज्जा का रोजा रखना मना है। (लुलु वल मर्जान-687, तिर्मिजी-647 मैमूना रजि.)
  7. निस्फ शअबान के बाद रोजे नहीं रखना चाहिये। (अबुदाऊद-2337, तिर्मिजी-635 -अबु हुरैरा रजि.)
  8. औरत का अपने शौहर की इजाजत के बिना नफली रोजे रखना मना है। (बुखारी 51 92, अबु दाऊद-2458-अबु हुरैरा रजि.)
  9. सिर्फ आशूरा (10 मुहर्रम) का रोजा रखना मकरूह है। 9 व 10 या 10 और 11 मुहर्रम के रोजे रखना चाहिये। (मुस्लिम-1963-64-इब्ने अब्बास रजि.)
  10. सिर्फ शनिवार (हफ्ते) के दिन नफली रोजा रखना मकरूह है। (इब्ने माजा-1726-अब्दुल्ला बिन बसर रजि.)
  11. शक के दिन का रोजा रखना मकरूह है। (नसाई-2194-अबु हुरैरा रजि., तिर्मिजी-589, अम्मार रजि.)
  12. आशूरा का रोजा रखना और न रखना दोनों जाइज है। (तिर्मिजी-650–आईशा रजि.)

अहले इल्म हजरात से गुजारिश है कि अगर कहीं कमी या गल्ती पाये तो जरूर हमारी इस्लाह फरमाएं। और आप हजरात से अपील है अगर आप हमारी इसे कोशिश से सहमत हैं तो इसे आम करने में हमारे साथ तआवुन करे।

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आब ए ज़म ज़म !! Part 2 – एक खातून का इबरतनाक अकीदा https://ummat-e-nabi.com/zamzampart2/ https://ummat-e-nabi.com/zamzampart2/#respond Tue, 31 Oct 2023 13:50:37 +0000 https://ummat-e-nabi.com/zamzampart2/ 2!! आब-ए-जमजम से मोरक्को के महिला की एक इबरतनाक हकीकत !! आब ए जमजम के करिश्मे की दास्तां सुनिए इस मोरक्को की महिला से जो कैसर से पीडि़त थीं। वे […]

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!! आब-ए-जमजम से मोरक्को के महिला की एक इबरतनाक हकीकत !!

आब ए जमजम के करिश्मे की दास्तां सुनिए इस मोरक्को की महिला से जो कैसर से पीडि़त थीं। वे अल्लाह के दर पर पहुंची और शिफा की नीयत से आब ए जमजम का इस्तेमाल किया। अल्लाह ने उसे इस लाइलाज बीमारी से निजात दी। मोरक्को की लैला अल हेल्व खुद बता रही है अपनी स्टोरी – नौ साल पहले मुझे मालूम हुआ कि मुझे कैंसर है। सभी जानते है कि इस बीमारी का नाम ही कितना डरावना है और मोरक्को में हम इसे राक्षसी बीमारी के नाम से जानते हैं।

अल्लाह पर मेरा यकीन बेहद कमजोर था। मैं अल्लाह की याद से पूरी तरह से गाफिल रहती थी। मैंने सोचा भी नहीं था कि कैंसर जैसी भयंकर बीमारी की चपेट में आ जाऊंगी। मालूम होने पर मुझे गहरा सदमा लगा। मैंने सोचा दुनिया में कौनसी जगह मेरी इस बीमारी का इलाज हो सकता है? मुझे कहां जाना चाहिए? मैं निराश हो गई।

मेरे दिमाग में खुदकुशी का खयाल आया लेकिन….. मैं अपने शौहर और बच्चों को बेहद चाहती थी। उस वक्त मेरे दिमाग में यह नहीं था कि अगर मैंने खुदकुशी की तो अल्लाह मुझे सजा देगा।

जैसा कि पहले मैंने बताया अल्लाह की याद से मैं गाफिल ही रहती थी। शायद अल्लाह इस बीमारी के बहाने ही मुझे हिदायत देना चाह रहा था।

मैं बेल्जियम गई और वहां मैंने कई डॉक्टरों को दिखाया। उन्होंने मेरे पति को बताया कि पहले मेरे स्तनों को हटाना पड़ेगा, उसके बाद बीमारी का इलाज शुरू होगा। मैं जानती थी कि इस चिकित्सा पद्धति से मेरे बाल उड़ जाएंगे। मेरी भौंहें और पलकों के बाल जाते रहेंगे और चेहरे पर बाल उग जाएंगे। मैं ऐसी जिंदगी के लिए तैयार नहीं थी।

मैंने डॉक्टर को इस तरह के इलाज के लिए साफ इंकार कर दिया और कहा कि किसी दूसरी चिकित्सा पद्धति से मेरा इलाज किया जाए जिसका मेरे बदन पर किसी तरह का दुष्प्रभाव ना हो। डॉक्टर ने दूसरा तरीका ही अपनाया। मुझ पर इस इलाज का कोई दुष्प्रभाव नहीं हुआ। मैं बहुत खुश थी। मैं मोरक्को लौट आई और यह दवा लेती रही। मुझे लगा शायद डॉक्टर गलत समझ बैठे और मुझे कैंसर है ही नहीं।

तकरीबन छह महीने बाद मेरा वजन तेजी से गिरने लगा। मेरा रंग बदलने लगा और मुझे लगातर दर्द रहने लगा। मेरे मोरक्कन डॉक्टर ने मुझे फिर से बेल्जियम जाने की सलाह दी। मैं बेल्जियम पहुंची। लेकिन अब मेरा दुर्भाग्य था। डॉक्टर ने मेरे शौहर को बताया कि यह बीमारी मेरे पूरे बदन में फैल गई है। फैंफड़े पूरी तरह संक्रमित हो गए और अब उनके पास इसका कोई इलाज नहीं है। डॉक्टरों ने मेरे पति से कहा कि बेहतर यह है कि आप अपनी बीवी को वापस अपने वतन मोरक्को ले जाएं ताकि वहां आराम से उनके प्राण निकल सके।

यह सुन मेरे पति को बड़ा सदमा लगा। बेल्जियम से लौटते वक्त हम फ्रांस चले गए इस उम्मीद से कि शायद वहां इस बीमारी का इलाज हो जाए। लेकिन फ्रांस में बेल्जियम की चिकित्सा से ज्याद कुछ नहीं मिला। फिर मैंने मजबूरन अस्पताल में भर्ती होकर अपने स्तन हटवाने और सर्जीकल थैरेपी लेने का फैसला किया जिसके बारे में हमें डॉक्टर पहले ही कह चुका था, लेकिन तब मैं तैयार ना थी।

इस बीच मेरे शौहर को खयाल आया कि हम कुछ भूल रहे हैं। कुछ ऐसा जो हरदम हमारे खयालों से दूर रहा है। अल्लाह ने मेरे शौहर के दिल में खयाल पैदा किया कि वे मुझे मक्का स्थित काबा शरीफ ले जाएं। जहां जाकर वे अल्लाह से दुआ करें। अल्लाह से उनकी बीमारी को दूर करने की इल्तिजा कर सके।

अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इलल्लाह (अल्लाह सबसे बड़ा है। अल्लाह के सिवाय कोई इबादत के लायक नहीं) कहते हुए हम पेरिस से मक्का के लिए रवाना हो गए। मैं बेहद खुशी थी क्योंकि मैं पहली बार काबा शरीफ जा रही थी। मैंने पेरिस से पवित्र कुरआन की एक कॉपी खरीद ली थी। हम मक्का पहुंचे। जब मैंने हरम शरीफ में प्रवेश किया और काबा की तरफ मेरी पहली नजर पड़ी तो मैं जोर से रो पड़ी। मैं रो पड़ी क्योंकि मैं शर्मिंदा थी कि मैंने बिना उस मालिक की इबादत के यूं ही अपनी जिंदगी के इतने साल बर्बाद कर दिए।

मैंने कहा- ऐ मेरे मालिक मेरा इलाज करने में डॉक्टर असमर्थ हैं। सब बीमारी का इलाज तेरे पास है। तृ ही शिफा देने वाला है। मेरे सामने सारे दरवाजे बंद हो गए हैं, सिवाय तेरे दर के। तेरे दर के अलावा मेरा अब कोई ठिकाना नहीं है। अब तो मुझे तेरे ही दर से उम्मीद है। ऐ मेरे मालिक मेरे लिए तू अपना दरवाजा बंद ना कर। मैं काबा के चारों तरफ चक्कर काटती रही और अल्लाह से यह दुआ करती रही।

मैंने कहा- मेरे मौला तू मुझे नाउम्मीद और खाली हाथ मत लौटाना।

जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूं कि मैं अल्लाह और उसकी इबादत के मामले में पूरी तरह दूर रही थी इसलिए मैं उलमा के पास गई और इबादत से जुड़ी किताबें हासिल की जिनसे मैं अच्छी तरह समझ सकूं। उन्होंने मुझे ज्यादा से ज्यादा कुरआन पढऩे का मशविरा दिया। उन्होंने मुझे ज्यादा से ज्यादा जमजम का पानी पीने की सलाह दी।

उन्होंने कहा कि मैं ज्यादा से ज्यादा अल्लाह का नाम लू और मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) पर दुरूद भेजूं। मैंने इस मुकाम पर शांति और सुकून महसूस किया। मैंने अपने शौहर से होटल में जाकर ठहरने के बजाय हरम शरीफ में ही रुकने की इजाजत चाही। उन्होंने मुझे हरम शरीफ में ठहरने की इजाजत दे दी।

हरम शरीफ में मेरे नजदीक ही कुछ मिस्री और तुर्क की महिलाएं थी। जब उन्होंने मुझे इस हालत में देखा तो मुझसे जाना कि मेरे साथ क्या परेशानी है? मैंने अपनी बीमारी के बारे में उनको बताया और बताया कि मैंने जिंदगी में सोचा भी नहीं था कि मैं कभी काबा शरीफ आऊंगी और उससे इतनी करीब हो पाऊंगी। यह जानकर वे महिलाएं मेरे पास रहीं और उन्होंने अपने-अपने शौहर से मेरे साथ हरम शरीफ में ही ठहरने की इजाजत ले ली। इस दौरान हम बहुत कम सोईं और बहुत कम खाया। लेकिन हमने जमजम का पानी खूब पीया।

» हदीस : और जैसा कि हमारे प्यारे नबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया है कि – जमजम का पानी जिस नियत से पीया जाए वैसा ही फायदा पहुंचाता है। यदि इस पानी को बीमारी से निजात की नीयत से पीया जाए तो अल्लाह उसको बीमारी से निजात देता है और अगर आप इसको प्यास बुझाने की नीयत से पीते हैं तो यह आपकी प्यास बुझाता है।(तबरानी शरीफ)

यही वजह है कि हमने भूख महसूस नहीं की। हम वहीं रुके रहे और तवाफ करते रहे, कुरआन पढ़ते रहे। हम रात और दिन ऐसा ही करते। जब मैं हरम आई थी तो बहुत पतली थी। मेरे बदन के उपरी हिस्से में सूजन थी। इस हिस्से में खून और मवाद थी। कैंसर मेरे बदन के ऊपरी हिस्से में पूरी तरह फैल गया था।

इस वजह से मेरे साथ वाली बहनें मेरे बदन के ऊपरी हिस्से को जमजम पानी से धोया करती थी। लेकिन मैं बदन के इस हिस्से को छूने से भी डरती थी। अल्लाह की इबादत और उसके प्रति पूरी तरह समर्पण के बावजूद मैं अपनी बीमारी को याद कर भयभीत रहती थी। इसी वजह से मैं अपने बदन को बिना छूए ही साफ करती थी।

पांचवे दिन मेरे साथ रह रही बहनों ने जोर देकर कहा कि मुझे अपने पूरे बदन को जमजम पानी से धोना चाहिए। शुरुआत में तो मैंने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। लेकिन मुझे अहसास हुआ मानो कोई मुझ पर दबाव बनाकर ऐसा ही करने के लिए कह रहा हो। मैं जिन अंगों को धोने से बचती थी उनको जमजम से धोने के लिए कोशिश शुरु की। लेकिन मैं फिर घबरा गई लेकिन मैंने फिर से महसूस किया कि मानो कोई मुझ पर दवाब डालकर इन्हें धोने के लिए कह रहा हो। मैं फिर से झिझक गई।

तीसरी बार मैंने जोर देकर अपना हाथ मेरे शरीर के ऊपरी हिस्से पर रख दिया और फिर पूरे शरीर पर फिराया। कुछ अविश्वसनीय सा महसूस हुआ। यह क्या? ना सूजन, ना खून और ना ही मवाद?

जो कुछ मैंने महसूस किया मैं उस पर भरोसा नहीं कर पाई। मैंने अपने हाथों से अपने बदन के ऊपरी अंगों को फिर से जांचा। सच्चाई यही थी जो मैंने महसूस किया था। मेरे बदन में कंपकंपी छूट गई। अचानक मेरे दिमाग में आया अल्लाह सुब्हान व तआला तो सबकुछ करने की ताकत रखता है। मैंने अपनी साथ की सहेली को मेरे बदन को छूने और सूजन जांचने के लिए कहा।

उसने ऐसा ही किया। वे सब अचानक बोल पड़ीं- अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर। मैं अपने शौहर को बताने के लिए होटल की तरफ दौड़ पड़ी। मैंने उनसे मिलते ही कहा- देखो अल्लाह का करम।

मैंने उन्हें बताया कि यह सब कैसे हुआ। वे भरोसा ही नहीं कर पाए। वे रो पड़े, फिर रो पड़े। उन्होंने मुझसे कहा कि क्या तुम्हें पता है कि डॉक्टरों का पक्का यकीन था कि तुम ज्यादा से ज्यादा तीन हफ्ते तक ही जिंदा रह पाओगी?
मैंने कहा-सब कुछ अल्लाह के हाथ में है और सब कुछ उसी की रजा से होता है। सिवाय अल्लाह के कोई नहीं जानता कि किसी शख्स के साथ भविष्य में क्या होने वाला है।

हम एक हफ्ते तक अल्लाह के घर काबा में ठहरे। मैंने अल्लाह का उसके इस बेहद करम के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया अदा किया। उसके बाद हम पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की मस्जिद (मस्जिद ए नबवी) के लिए मदीना चले गए। वहां से हम फ्रांस के लिए रवाना हो गए। वहां डॉक्टर्स मुझे देखकर भ्रमित हो गए और उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ।

उन्होंने उत्सुकता से मुझसे पूछा-आप वही महिला हैं?
मैंने फख्र के साथ कहा- हां, मैं वही हूं और यह रहे मेरे शौहर। हम अपने पालनहार की तरफ लौट आए हैं। और अब हम सिवाय एक अल्लाह के किसी और से नहीं डरते। उसी ने मुझे यह नई जिंदगी दी है। डॉक्टर्स ने मुझे बताया कि मेरा केस उनके लिए बड़ा मुश्किल था।

फिर डॉक्टर्स ने कहा कि वे मेरी फिर से जांच करना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने जांच के बाद कुछ भी नहीं पाया। पहले मुझे बदन में सूजन की वजह से सांस लेने में परेशानी होती थी लेकिन जब मैंने काबा पहुंचकर अल्लाह से शिफा की दुआ की तो मेरी यह परेशानी जाती रही।
मैंने प्यारे नबी (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) और उनके साथियों की जीवनियां पढी। यह सब पढ़कर मैं जोर जोर से रो पड़ती-

मैंने अपनी अब तक की जिंदगी यूं ही गुजार दी? मैं अब तक अल्लाह और उसके प्यारे रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से दूर क्यों रही? यह सब सोच कर कई-कई बार रो पड़ती – मेरे मौला तू मुझे , मेरे शौहर और सारे मुसलमानों को माफ कर दे और मुझे अपनी अच्छी बंदी के रूप में कबूल कर।

लैला अल हेल्व (मोरक्को)

Zamzam, Aab-e-Zam Zam

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आब ए ज़म ज़म के पानी के वैज्ञानिक चमत्कार !! Part 1 https://ummat-e-nabi.com/zamzam-part-1/ https://ummat-e-nabi.com/zamzam-part-1/#respond Tue, 31 Oct 2023 13:44:09 +0000 https://ummat-e-nabi.com/zamzam-part-1/ 1“शताब्दियों पहले बीबी हाजरा (रज़ी अल्लाहू अन्हा) अपने नवजात बच्चे इस्माइल (अलैही सलाम) की प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश के लिए सफा और मरवा पहाडिय़ों के बीच दौड़ […]

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“शताब्दियों पहले बीबी हाजरा (रज़ी अल्लाहू अन्हा) अपने नवजात बच्चे इस्माइल (अलैही सलाम) की प्यास बुझाने के लिए पानी की तलाश के लिए सफा और मरवा पहाडिय़ों के बीच दौड़ लगाती है। इसी दौरान मासूम इस्माइल (अलैही सलाम) अपनी एडिय़ों को रेत पर रगड़ते हैं। अल्लाह के करम से उस जगह पानी निकलने लगता है। फिर यह जगह कुएं का रूप ले लेती है जो जाना जाता है जमजम का पानी।

रिसर्च- तारिक हुसैन (रियाद)

हम आपको रूबरू करवा रहे हैं उस इंजीनियर शख्स से जिसने करीब चालीस साल पहले खुद आब ए जमजम का निरीक्षण किया था।

जमजम पानी इंजीनियर तारिक हुसैन (रियाद)

जमजम पानी का सैंपल यूरोपियन लेबोरेट्री में भेजा गया । जांच में जो बातें आई उससे साबित हुआ कि जमजम पानी इंसान के लिए रब की बेहतरीन नियामत है। आम पानी से अलग इसमें इंसानों के लिए बड़े-बड़े फायदे छिपे हैं। इंजीनियर तारिक हुसैन की जुबानी हज का मौका आने पर मुझे करिश्माई पानी जमजम की याद ताजा हो जाती है।

चलिए मै आपको देता हूं मेरे द्वारा किए गए इसके अध्ययन से जुड़ी जानकारी। 1971 की बात है। मिस्र के एक डॉक्टर ने यूरोपियन प्रेस को लिखा कि मक्का का जमजम पानी लोगों के पीने योग्य नहीं है। मैं तुरंत समझा गया था कि मिस्र के इस डॉक्टर का प्रेस को दिया यह बयान मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रह से ग्रसित है। दरअसल इसके इस बयान का आधार था कि काबा समुद्रतल से नीचे है और यह मक्का शहर के बीचोंबीच स्थित है। इस वजह से मक्का शहर का गंदा पानी नालों से इस कुएं में आकर जमा होता रहता है।

यह खबर सऊदी शासक किंग फैसल तक पहुंची। उनको यह बहुत ज्यादा अखरी और उन्होंने मिस्र के इस डॉक्टर के इस प्रोपेगण्डे को गलत साबित करने का फैसला किया। उन्होंने तुरंत सऊदिया के कृषि और जलसंसाधन मंत्रालय को इस मामले की जांच करने और जमजम पानी का एक सैंपल चैक करने के लिए यूरोपियन लेबोरेट्री में भी भेजे जाने का आदेश दिया।

मंत्रालय ने जेद्दा स्थित पावर डिजॉलेशन प्लांट्स को यह जिम्मेदारी सौंपी। मैं यहां केमिकल इंजीनियर के रूप में कार्यरत था और मेरा काम समुद्र के पानी को पीने काबिल बनाना था। मुझे जमजम पानी को चैक करने की जिम्मेदारी सौपी गई। मुझे याद है उस वक्त मुझे जमजम के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। ना यह कि इस कुएं में किस तरह का पानी है।

मैं मक्का पहुंचा और मैंने काबा के अधिकारियों को वहां आने का अपना मकसद बताया। उन्होंने मेरी मदद के लिए एक आदमी को लगा दिया। जब हम वहां पहुंचे तो मैंने देखा यह तो पानी का एक छोटा कुण्ड सा था। छोटे पोखर के समान। 18 बाई 14 का यह कुआं हर साल लाखों गैलन पानी हाजियों को देता है। और यह सिलसिला तब से ही चालू है जब से यह अस्तित्व में आया। यानी कई शताब्दियों पहले हजरत इब्राहीम के वक्त से ही।

मैंने अपनी खोजबीन शुरू की और कुएं के विस्तार को समझने की कोशिश की। मैंने अपने साथ वाले बंदे को कुएं की गहराई मापने को कहा। वह शावर ले गया और पानी में उतरा। वह पानी में सीधा खड़ा हो गया। मैंने देखा पानी का स्तर उसके कंधों से थोड़ा ही ऊपर था। उस शख्स की ऊंचाई लगभग पांच फीट आठ इंच थी।

उस शख्स ने सीधा खड़ा रहते हुए उस कुएं में एक कोने से दूसरे कोने की तरफ खोजबीन की कि आखिर इसमें पानी किस तरफ से आ रहा है। पानी की धारा कहां है जहां से पानी निकल रहा है। (उसे पानी में डूबकी लगाने की इजाजत नहीं थी।) उसने बताया कि वह नहीं खोज पाया कि पानी किस जगह से निकलता है।

पानी आने की जगह ना मिलने पर मैंने दूसरा तरीका सोचा। हमने उस कुएं से पानी निकालने के लिए बड़े पंप लगा दिए ताकि वहां से तेजी से पानी निकल सके और पानी के स्रोत का पता लग सके। मुझे हैरत हुई कि ऐसा करने पर भी हमें इस कुएं में पानी आने की जगह का पता नहीं चल पाया। लेकिन हमारे पास सिर्फ यही एकमात्र तरीका था जिससे यह जाना जा सकता था कि आखिर इस पानी का प्रवेश किधर से है। इसलिए मैंने पंप से पानी निकालने के तरीके को फिर से दोहराया और मैंने उस शख्स को निर्देश दिया कि वह पानी में खड़े रहकर गौर से उस जगह को पहचानने की कोशिश करे। अच्छी तरह ध्यान दें कि कौनसी जगह हलचल सी दिखाई दे रही है।

इस बार कुछ समय बाद ही उसने हाथ उठाया और खुशी से झूम उठा और बोल पड़ा-अलहम्दु लिल्लाह मुझे कुएं में पानी आने की जगह का पता चल गया। मेरे पैरों के नीचे ही यह जगह है जहां से पानी निकल रहा है। पंप से पानी निकालने के दौरान ही उसने कुएं के चारों तरफ चक्कर लगाए और उसने देखा कि ऐसा ही कुएं में दूसरी जगह भी हो रहा है। यानी कुएं में हर हिस्से से पानी के निकलने का क्रम जारी है।

दरअसल कुएं में पानी की आवक हर पॉइंट से समान रूप से थी और इसी वजह से जमजम के कुएं के पानी का स्तर लगातार एक सा रहता है। और इस तरह मैंने अपना काम पूरा किया और यूरोपियन लेबोरेट्री में जांच के लिए भेजने के लिए पानी का सैंपल ले आया।

काबा से रवाना होने से पहले मैंने वहां के अधिकारियों से मक्का के आसपास के कुओं के बारे में जानकारी ली। मुझे बताया गया कि इनमें से ज्यादातर कुएं सूख चुके हैं। मैं जेद्दा स्थित अपने ऑफिस पहुंचा और बॉस को अपनी यह रिपोर्ट सौंपी। बॉस ने बड़ी दिलचस्पी के साथ रिपोर्ट को देखा लेकिन बेतुकी बात कह डाली कि जमजम का यह कुआं अंदर से रेड सी से जुड़ा हो सकता है। मुझे उनकी इस बात पर हैरत हुई कि ऐसे कैसे हो सकता है? मक्का इस समंदर से करीब 75 किलोमीटर दूर है और मक्का शहर के बाहर स्थित कुएं करीब- करीब सूख चुके हैं।

!! यूरोपियन लेबोरेट्री ने आबे जमजम के नमूने की जांच की और हमारी लेब में भी इस पानी की जांच की गई। दोनो जांचों के नतीजे तकरीबन समान थे। !!

!! जमजम पानी में कैल्शियम और मैग्नेशियम !!

जमजम के पानी और मक्का शहर के अन्य पानी में केल्शियम और मैग्रेशियम साल्ट्स की मात्रा का फर्क था। जमजम में ये दोनों तत्व ज्यादा थे। शायद यही वजह थी कि जमजम का पानी यहां आने वाले कमजोर हाजी को भी उर्जस्वित और तरोताजा बनाए रखता है।

!! जमजम पानी में फ्लोराइड !!

महत्वपूर्ण बात यह थी कि जमजम के पानी में पाया जाने वाला फ्लोराइड अपना महत्वपूर्ण प्रभावी असर रखता है। यह फ्लोराइड कीटाणुनाशक होता है। सबसे अहम बात यह है कि यूरोपियन लेबोरेट्री ने अपनी जांच के बाद बताया कि यह पानी पीने के लिए एकदम उपयुक्त है।

और इस तरह मिस्र के डॉक्टर का जमजम के बारे में फैलाया गया प्रोपेगण्डा गलत साबित हुआ। इस रिपोर्ट की जानकारी जब शाह फैसल को दी गई तो वे बेहद खुश हुए और उन्होंने यूरोपियन प्रेस को यह जांच रिपोर्ट भिजवाने के आदेश दिए।

जमजम पानी की रासायनिक संरचना के अध्ययन से देखने को मिला कि यह तो ईश्वर का अनुपम उपहार है। सच्चाई यह है कि आप जितना अधिक इस पानी को जांचते हैं उतनी नई और महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं और आपके ईमान में बढ़ोतरी होती जाती है।

!! आइए मैं आपको जमजम के पानी की चंद खूबियों के बारे में बताता हूं- !!

  • १. कभी नहीं सूखा – जमजम का यह कुआं कभी भी नहीं सूखा। यही नहीं इस कुएं ने जरूरत के मुताबिक पानी की आपूति की है। जब-जब जितने पानी की जरूरत हुई, यहां पानी उपलब्ध हुआ।
  • २. एक सी साल्ट संरचना – इस पानी के साल्ट की संरचना हमेशा एक जैसी रही है। इसका स्वाद भी जबसे यह अस्तित्व में आया तब से एक सा ही है।
  • ३. सभी के लिए फायदेमंद – यह पानी सभी को सूट करने वाला और फायदेमंद साबित हुआ है। इसने अपनी वैश्विक अहमियत को साबित किया है। दुनियाभर से हज और उमरा के लिए मक्का आने वाले लोग इसको पीते हैं और इनको इस पानी को लेकर कोई शिकायत नहीं रही। बल्कि ये इस पानी को बड़े चाव से पीते हैं और खुद को अधिक ऊर्जावान और तरोताजा महसूस करते हैं।
  • ४. यूनिवर्सल टेस्ट – अक्सर देखा गया है कि अलग-अलग जगह के पानी का स्वाद अलग-अलग होता है लेकिन जमजम पानी का स्वाद यूनिवर्सल है। हर पीने वाले को इस पानी का स्वाद अलग सा महसूस नहीं होता है।
  • ५. कोई जैविक विकास नहीं– इस पानी को कभी रसायन डालकर शुद्ध करने की जरूरत नहीं होती जैसा कि अन्य पेयजल के मामले में यह तरीका अपनाया जाता है। यह भी देखा गया है कि आमतौर पर कुओं में कई जीव और वनस्पति पनप जाते हैं। कुओं में शैवाल हो जाते हैं जिससे कुएं के पानी में स्वाद और गंध की समस्या पैदा हो जाती है। लेकिन जमजम के कुए में किसी तरह का जैविक विकास का कोई चिह्न भी नहीं मिला।

वीडियो में देखे ज़मज़म का कुआँ – Zamzam Well

Agle Post आब ए ज़म ज़म का पानी !! Part 2 Me Ek Khatun Ka Aabe Zamzam Ke Mutalik Ek Ibratnak Qissa Bayan Karenge.. (Zamzam , Zam-zam , Aab-e-zam zam)

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Quran Jadeed Science aur Muslim Scientist by Adv. Faiz Syed https://ummat-e-nabi.com/quran-jadeed-science-aur-muslim-scientist-by-adv-faiz-syed/ https://ummat-e-nabi.com/quran-jadeed-science-aur-muslim-scientist-by-adv-faiz-syed/#respond Fri, 21 Jul 2023 21:17:59 +0000 https://ummat-e-nabi.com/quran-jadeed-science-aur-muslim-scientist-by-adv-faiz-syed/ Quran Jadeed Science aur Muslim ScientistQuran Jadeed Science aur Muslim Scientist The Quran and Modern Science, quranic verses on science, quran and science discoveries, science in the quran, Big Bang in Quran, quranic verses about […]

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Quran Jadeed Science aur Muslim Scientist

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मेडिकल साइंस के सबसे पहले जनक – इब्न अली सीना https://ummat-e-nabi.com/avicenna/ https://ummat-e-nabi.com/avicenna/#respond Fri, 14 Jul 2023 18:56:01 +0000 https://ummat-e-nabi.com/avicenna/ ibn sina muslim scientistइब्न सीना इब्न सीना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना है। इनकी गणना इस्लाम के प्रमुख डाक्टर और दर्शिनिकों में होती है […]

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इब्न सीना

इब्न सीना का पूरा नाम अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना है।

इनकी गणना इस्लाम के प्रमुख डाक्टर और दर्शिनिकों में होती है पश्चिम में इन्हें अवेसेन्ना (Avicenna) के नाम से जाना जाता है ये इस्लाम के बड़े विचारकों में से थे ,इब्न सीना ने 10 साल की उम्र में ही कुरआन हिफ्ज़ कर लिया था।

बुखारा के सुलतान नूह इब्न मंसूर बीमार हो गये किसी हकीम की कोई दवाई कारगर शाबित न हुई 18 साल की उम्र में इब्न सीना ने उस बीमारी का इलाज़ किया जिस से तमाम नामवर हकीम तंग आ चुके थे।

इब्न सीना की दवाई से सुल्तान इब्न मंसूर स्वस्थ हो गये ,सुल्तान ने खुश हो कर इब्न सीना को पुरस्कार रूप में एक पुस्तकालय खुलवा कर दिया अबू अली सीना की स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी उन्होंने जल्द ही पूरा पुस्तकालय छान मारा और जरूरी जानकारी एकत्र कर ली फिर 21 साल की उम्र में अपनी पहली किताब लिखी।

अबू अली सीना ने 21 बड़ी और २४ छोटी किताबें लिखीं लेकिन कुछ का मानना है कि उन्होंने 99 किताबों की रचना की। 

उनकी गणित पर लिखी 6 पुस्तकें मौजूद हैं जिनमे “रिसाला अल-जराविया ,मुख्तसर अक्लिद्स,अला रत्मातैकी,मुख़्तसर इल्म-उल-हिय ,मुख्तसर मुजस्ता ,रिसाला फी बयान अला कयाम अल-अर्ज़ फी वास्तिससमा (जमीन की आसमान के बीच रहने की स्थिति का बयान ) शामिल हैं।

इनकी किताब किताब अल कानून” चिकित्सा की एक मशहूर किताब है जिनका अनुवाद अन्य भाषाओँ में भी हो चुका है उनकी ये किताब 19वीं सदी के अंत तक यूरोप की यूनिवर्सिटीयों में पढाई जाती रही।

अबू अली सीना की वैज्ञानिक सेवाओं को देखते हुए यूरोप में उनके नाम से डाक टिकट जारी किये गये हैं।

और पढ़े :

  1. मुसलमानों के साइंसी कारनामे
  2. कागज़ के नोट है इस्लामी सिस्टम देन
  3. औद्योगिककरन के जनक कहलाते है अल-जज़री
  4. मॉडर्न सर्जरी इब्न ज़ुहर की देन
  5. इब्न-अल-हेथम थे कैमेरा के सबसे पहले अविष्कारक
  6. रसायनशास्त्र के सबसे पहले जनक थे जाबिर बिन हियान
  7. मुस्लिम महिला ने क़ायम की थी दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी
  8. हवा में उड़ान भरनेवाला दुनिया का सबसे पहला इन्सान (अब्बास इब्न फिरनास)
  9. साइंस और टेक्नोलॉजी है मुसलमानो की देंन। 

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रोज़ा तोड़ने वाली चीज़ें | Roza todne waali cheeze in hindi https://ummat-e-nabi.com/roza-kin-cheezo-se-tutta-aur-nahi-tutta/ https://ummat-e-nabi.com/roza-kin-cheezo-se-tutta-aur-nahi-tutta/#respond Fri, 31 Mar 2023 02:10:22 +0000 https://ummat-e-nabi.com/?p=30840 Roza todne waali cheeze in Hindiजानिए: रोजा किन-किन चीजों से टूटता है और वो कौन कौन सी चीज़े है जिनकी वजह से रोज़ा नहीं टूटता...

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वो 18 बातें जिस से रोज़ा टूटता और नहीं टूटता

इस पोस्ट में हम देख्नेगे के रोजा किन-किन चीजों से टूटता है और वो कौन कौन सी चीज़े है जिनकी वजह से रोज़ा नहीं टूटता।

इस पोस्ट में हम देख्नेगे के रोजा किन-किन चीजों से टूटता है और वो कौन कौन सी चीज़े है जिनकी वजह से रोज़ा नहीं टूटता।

Anesthetic injection

01. एनेस्थेटिक इंजेक्शन से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Anesthetic injection se Roza Nahi Tut’ta
• Being given medicine via injection does not break the fast


Applying heena

02. मेहंदी लगाने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Mehandi lagane se Roza Nahi Tut’ta

• Applying henna does not break the fast


bleeding form the mouth and nose

03. मुँह और नाक से खून बहने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Mooh aur Naak se Khoon Behne se Roza Nahi Tut’ta

• Bleeding from a person does not affect the fast


blood test

04. ब्लड टेस्ट करवाने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Blood Test Karwane se Roza Nahi Tut’ta

• Blood Test does not affect the fast


eye drops

05. आँखों में ऑय ड्रॉप्स डालने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Aankho me Eye Drops Dalne se Roza Nahi Tut’ta

• Eye Drops does not break the fast


hugging kissing

06. शौहर और बीवी का एक दूजे को गले लगाने और चूमने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• बशर्ते के अहसासे क़ुरबत हमबिस्तरी का बायींस न बने

• Shohar aur Biwi ka Ek Duje ko Gale lagane aur Chumne se Roza Nahi Tut’ta (Basharte ke Ahsase Qurbat Humbistari ka Bayins na bane)

• Spouse hugging and kissing does not break the fast


Inhaler

07. इनहेलर सूंघने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Inhaler sunghne se Roza Nahi Tut’ta

• Using inhaler does not break the fast


nose drops

08. नाक में दवाई डालने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Naak me Dawayi Dalne se Roza Nahi Tut’ta

• Nose drops does not break the fast


nutritional injections oral drugs

09. न्युट्रिशनल इंजेक्शन या फिर मुँह से लेने वाली दवाई से रोज़ा टूट जाता है

• Nutritional Injection ya fir Mooh se lene wali dawayi se Roza Toot jata hai.

• Nutritional injection and oral drugs breakes the fast


sexual intercourse break the fast

10. संभोग करने से रोज़ा टूट जाता है

• Humbistari se Roza Toot jata hai.

• Sexual intercourse breakes the fast


smelling applying perfume

11. खुशबु लगाने और सूंघने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Khushbu Lagane aur Sunghne se Roza Nahi Tut’ta

• Smelling and applying Perfume does not break the fast


Swimming or Diving

12. तैराकी और डाइविंग से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Paani me Tairane se Roza Nahi Tut’ta

• Swimming and Diving does not break the fast


testing food

13. खाना बनाते हुए चखने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Khana banate hue Chakhne se Roza Nahi Tut’ta

• Tasting Food does not break the fast


Toothpaste mouthwash

14. टूथपेस्ट करने या मुंह धोने से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Toothpaste karne ya Mouthwash se Roza Nahi Tut’ta

• Toothpaste and Mouth washing does not break the fast


vomiting

15. खुद-बा-खुद उलटी आ जाये तो रोज़ा नहीं टूट’ता

• Khud-ba-khud Ulti Aa jaye to Roza Nahi Tut’ta

• Vomiting does not break the fast


vomiting deliberately

16. जानभूझकर उलटी करने से रोज़ा टूट जाता है

• Janbhujkar Ulti Karne se Roza Toot Jata hai

• Vomiting Deliberately breakes the fast


wet dream

17. स्वप्नदोष से रोज़ा नहीं टूट’ता

• Ahtlam se Roza Nahi Tut’ta

• Wet Dream does not break the fast


Maturbation brek the fast

18. हस्तमैथुन से रोज़ा टूट जाता है

• Mustazani se Roza Toot jata hai

• Masturbation breakes the fast


और भी देखे :

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Medical Benefit of Fasting https://ummat-e-nabi.com/medical-benefits-of-fasting/ https://ummat-e-nabi.com/medical-benefits-of-fasting/#respond Wed, 29 Mar 2023 07:27:19 +0000 https://ummat-e-nabi.com/medical-benefits-of-fasting/ BOOSTS IMMUNITY OF THE BODY1. BOOSTS IMMUNITY OF THE BODY 2. CORRECTS HIGH BLOOD PRESSURE 3. Fasting helps in REMOVING THE TOXINS 4. HELPS CREATE MORE T-CELLS 5. Helps in The Treatment of Rheumatoid arthritis 6. Helps Treat Pancreatitis 7. INCREASES RESISTANCE […]

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1. BOOSTS IMMUNITY OF THE BODY

BOOSTS+IMMUNITY+OF+THE+BODY

2. CORRECTS HIGH BLOOD PRESSURE

CORRECTS+HIGH+BLOOD+PRESSURE

3. Fasting helps in REMOVING THE TOXINS

Fasting+helps+in+REMOVING+THE+TOXINS

4. HELPS CREATE MORE T-CELLS

HELPS+CREATE+MORE+T CELLS

5. Helps in The Treatment of Rheumatoid arthritis

Helps+in+The+Treatment+of+Rheumatoid+arthritis

6. Helps Treat Pancreatitis

Helps+Treat+Pancreatitis

7. INCREASES RESISTANCE TO OXIDATION STRESS

INCREASES+RESISTANCE+TO+OXIDATION+STRESS

8. LOWERS BLOOD SUGAR LEVEL & STABILIZES INSULIN LEVEL

LOWERS+BLOOD+SUGAR+LEVEL+%26+STABILIZES+INSULIN+LEVEL

9. ORGANISES HEART BEAT AND RELAXES IT

ORGANISES+HEART+BEAT+AND+RELAXES+IT

10. PROMOTES DETOXIFICATION

PROMOTES+DETOXIFICATION

11. PROMOTES WEIGHT LOSS

PROMOTES+WEIGHT+LOSS

12. PROTECTS THE BRAIN AND IMPROVES BRAIN FUNCTION

PROTECTS+THE+BRAIN+AND+IMPROVES+BRAIN+FUNCTION

13. REDUCES CHANCES OF DEVELOPING KIDNEY STONES

REDUCES+CHANCES+OF+DEVELOPING+KIDNEY+STONES

14. REDUCES LDL CHOLESTEROL (BAD CHOLESTEROL)

REDUCES+LDL+CHOLESTEROL+%28BAD+CHOLESTEROL%29

15. REDUCES PRESSURE ON THE LIVER

REDUCES+PRESSURE+ON+THE+LIVER

16. RESOLVES INFLAMMATORY RESPONSE (DECREASES INFLAMMATION)

RESOLVES+INFLAMMATORY+RESPONSE+%28DECREASES+INFLAMMATION%29

17. RESTS DIGESTIVE SYSTEM

RESTS+DIGESTIVE+SYSTEM

18. SLOWS DOWN AGING AND INCREASES THE LIFE SPAN OF A HUMAN BEING BY BOOSTING THE GROWTH HORMONE

SLOWS+DOWN+AGING+AND+INCREASES+THE+LIFE+SPAN+OF+A+HUMAN+BEING+BY+BOOSTING+THE+GROWTH+HORMONE

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ज़कात क्या है ? और किसको देनी चाहिये ? https://ummat-e-nabi.com/zakaat-kya-aur-kisko-de/ https://ummat-e-nabi.com/zakaat-kya-aur-kisko-de/#comments Thu, 28 Apr 2022 12:48:25 +0000 https://ummat-e-nabi.com/zakaat-kya-aur-kisko-de/ ज़कातज़कात क्या है ? और किसको देनी चाहिये ? रमज़ान के अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। तो ज़कात क्या है ? कुरआन […]

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ज़कात क्या है ? और किसको देनी चाहिये ?

रमज़ान के अशरे में सब मुसलमान अपनी साल भर की कमाई की ज़कात निकालते है। तो ज़कात क्या है ?

कुरआन मजीद में अल्लाह ने फ़र्माया है :

“ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है।”

ज़कात कितनी निकालनी चाहिये इसके लिए आप इस ऑडियो को सुने –
♫ Ramzan Ke Masail – Zakat , Fitr , Sadqa

और ज़कात किसे देनी चाहिए इसपर हम इस पोस्ट में मुख़्तसर सा बयांन करने की कोशिश कर रहे है.

ज़कात क्या है ?

अल्लाह के लिये माल का एक हिस्सा जो शरियत ने तय किया उसका मुसलमान फकीर (जरूरतमंद) को मालिक बना देना शरीयत में ज़कात कहलाता है’

ज़कात किसको दी जाये ?

ज़कात निकालने के बाद सबसे बडा जो मसला आता है वो है कि ज़कात किसको दी जाये ?
ज़कात देते वक्त इस चीज़ का ख्याल रखें की ज़कात उसको ही मिलनी चाहिये जिसको उसकी सबसे ज़्यादा ज़रुरत हो…वो शख्स जिसकी आमदनी कम हो और उसका खर्चा ज़्यादा हो। अल्लाह ने इसके लिये कुछ पैमाने और औहदे तय किये है जिसके हिसाब से आपको अपनी ज़कात देनी चाहिये। इनके अलावा और जगहें भी बतायी गयी है जहां आप ज़कात के पैसे का इस्तेमाल कर सकते हैं।

सबसे पहले ज़कात का हकदार है : “फ़कीर“:

फ़कीर कौन है? – फ़कीर वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 21,000/- रुपये सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से भी कम है तो इस शख्स की आप ज़कात 11,000/- रुपये से मदद कर सकते है।

दुसरा नंबर आता है “मिस्कीन” का:

“मिस्कीन” कौन है? मिस्कीन वो शख्स है जो फ़कीर से थोडा अमीर है। ये वो शख्स है मानो जिसकी आमदनी 10,000/- रुपये सालाना है और उसका खर्च 15,000/- सालाना है यानि वो शख्स जिसकी आमदनी अपने कुल खर्च से आधी से ज़्यादा है तो आप इस शख्स की आप ज़कात के 5,000/- रुपये से उसकी मदद कर सकते है।

तीसरा नंबर आता है “तारिके कल्ब” का:

“तारिके कल्ब” कौन है? “तारिके कल्ब” उन लोगों को कहते है जो ज़कात की वसुली करते है और उसको बांटते है। ये लोग आमतौर पर उन देशों में होते है जहां इस्लामिक हुकुमत या कानुन लागु होता है। हिन्दुस्तानं में भी ऐसे तारिके कल्ब है जो मदरसों और स्कु्लों वगैरह के लिये ज़कात इकट्ठा करते है। इन लोगो की तनख्खाह ज़कात के जमा किये गये पैसे से दी जा सकती है।

चौथे नंबर आता है “गर्दन को छुडानें में“:

पहले के वक्त में गुलाम और बांदिया रखी जाती थी जो बहुत बडा गुनाह था। अल्लाह की नज़र में हर इंसान का दर्ज़ा बराबर है इसलिये मुसलमानों को हुक्म दिया गया की अपनी ज़कात का इस्तेमाल ऎसे गुलामो छुडाने में करो। उनको खरीदों और उनको आज़ाद कर दों। आज के दौर में गुलाम तो नही होते लेकिन आप लोग अब भी इस काम को अंजाम दे सकते है।

अगर कोई मुसलमान पर किसी ऐसे इंसान का कर्ज़ है जो जिस्मानी और दिमागी तौर पर काफ़ी परेशान करता है, या जेलों में जो बेकसूर और मासूम मुसलमान बाज़ शर्रपसंदों के फितनो के सबब फंसे हुए है आप ऐसे मुसलमानो की भी ज़कात के पैसे से मदद कर सकते है और उनकी गर्दन को उनपर होने वाले जुल्मो से छुडा सकते हैं।

पांचवा नंबर आता है “कर्ज़दारों” का:

आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल मुसलमानों के कर्ज़ चुकाने में भी कर सकते है। जैसे कोई मुसलमान कर्ज़दार है वो उस कर्ज़ को चुकाने की हालत में नही है तो आप उसको कर्ज़ चुकाने के लिये ज़कात का पैसा दे सकते है और अगर आपको लगता है की ये इंसान आपसे पैसा लेने के बाद अपना कर्ज़ नही चुकायेगा बल्कि उस पैसे को अपने ऊपर इस्तेमाल कर लेगा तो आप उस इंसान के पास जायें जिससे उसने कर्ज़ लिया है और खुद अपने हाथ से कर्ज़ की रकम की अदायगी करें।

छ्ठां नंबर आता है “अल्लाह की राह में“:

“अल्लाह की राह” का नाम आते ही लोग उसे “जिहाद” से जोड लेते है। यहां अल्लाह की राह से मुराद (मतलब) सिर्फ़ जिहाद से नही है। अल्लाह की राह में “जिहाद” के अलावा भी बहुत सी चीज़ें है जैसे : बहुत-सी ऐसी जगहें है जहां के मुसलमान शिर्क और बिदआत में मसरुफ़ है और कुरआन, हदीस के इल्म से दुर है तो ऐसी जगह आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है।
अगर आप किसी ऐसे बच्चे को जानते है जो पढना चाहता है लेकिन पैसे की कमी की वजह से नही पढ सकता, और आपको लगता है की ये बच्चा सोसाईटी और मुआशरे के लिये फ़ायदेमंद साबित होगा तो आप उस बच्चे की पढाई और परवरिश ज़कात के पैसे से कर सकते है।

और आखिर में “मुसाफ़िर की मदद“:

मान लीजिये आपके पास काफ़ी पैसा है और आप कहीं सफ़र पर जाते है लेकिन अपने शहर से बाहर जाने के बाद आपकी जेब कट जाती है और आपके पास इतने पैसे भी नही हों के आप अपने घर लौट सकें तो एक मुसलमान का फ़र्ज़ बनता है की वो आपकी मदद अपने ज़कात के पैसे से करे और अपने घर तक आने का किराया वगैरह दें।

ये सारे वो जाइज़ तरीके है जिस तरह से आप अपनी ज़कात का इस्तेमाल कर सकते है। अल्लाह आप सभी को अपनी कमाई से ज़कात निकालकर उसको पाक करने की तौफ़ीक दें ! और अल्लाह तआला हम सबको कुरआन और हदीस को पढकर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अमल करने की तौफ़िक अता फ़रमाये।
आमीन ..

Zakaat, Zakat Kya aur Kisko Dey ?

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शबे क़द्र और इस की रात का महत्वः (शबे क़द्र की फ़ज़ीलत हिंदी में) https://ummat-e-nabi.com/shab-e-qadr-in-hindi/ https://ummat-e-nabi.com/shab-e-qadr-in-hindi/#respond Thu, 28 Apr 2022 12:05:33 +0000 https://ummat-e-nabi.com/shab-e-qadr-in-hindi/ shab e barat hindi me | शबे क़द्र और इस की रात का महत्वः (शबे क़द्र की फ़ज़ीलत हिंदी में)शबे क़द्र का अर्थ: रमज़ान महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जो हज़ार महीने की रात से बेहतर है। जिसे शबे क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का […]

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शबे क़द्र का अर्थ:

रमज़ान महीने में एक रात ऐसी भी आती है, जो हज़ार महीने की रात से बेहतर है। जिसे शबे क़द्र कहा जाता है। शबे क़द्र का अर्थ होता हैः “सर्वश्रेष्ट रात“, ऊंचे स्थान वाली रात”, लोगों के नसीब लिखी जानी वाली रात।

शबे क़द्र बहुत ही महत्वपूर्ण रात है, जिस के एक रात की इबादत हज़ार महीनों (83 वर्ष 4 महीने) की इबादतों से बेहतर और अच्छा है। इसी लिए इस रात की फज़ीलत क़ुरआन मजीद और प्रिय रसूल मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की हदीसों से प्रमाणित है।

♪ Shabe Qadr ki Fazilat Audio me

क़द्र वाली रात का महत्वः

(1) इस पवित्र रात में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम को लोह़ महफूज़ से आकाश दुनिया पर उतारा फिर 23 वर्ष की अवधि में आवयश्कता के अनुसार मुहम्नद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर उतारा गया। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद है।

❝ हमने इस (क़ुरआन) को क़द्र वाली रात में अवतरित किया है।” [क़ुरआन: सुराः क़द्र 97:1]

(2) यह रात अल्लाह तआला के पास बहुत उच्च स्थान रखती है। इसी लिए अल्लाह तआला ने प्रश्न के तरीके से इस रात की महत्वपूर्णता बयान फरमाया है और फिर अल्लाह तआला ने स्वयं ही इस रात की फज़ीलत को बयान फरमाया कि यह एक रात हज़ार महीनों की रात से उत्तम है।

❝ और तुम क्या जानो कि क़द्र की रात क्या है ?, क़द्र की रात हज़ार महीनों की रात से ज़्यादा उत्तम है।” [क़ुरआन: सुराः क़द्र 97:3]

(3) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से अनगीनत फरिश्ते और जिब्रईल (अलैहि सलाम) आकाश से उतरते है। अल्लाह तआला की रहमतें, अल्लाह की क्षमा ले कर उतरते हैं। इस से भी इस रात की महत्वपूर्णता मालूम होती है। जैसा कि अल्लाह तआला का इर्शाद हैः

फ़रिश्ते और रूह (जिब्रईल अलैहि सलाम) उस में अपने रब्ब की आज्ञा से हर आदेश लेकर उतरते हैं।” [क़ुरआन: सुराः क़द्र 97:4]

(4) यह रात बहुत सलामती वाली है। इस रात में अल्लाह की इबादत में ग्रस्त व्यक्ति परेशानियों, ईश्वरीय संकट से सुरक्षित रहते हैं। इस रात की महत्वपूर्ण, विशेषता के बारे में अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में बयान फरमाया हैः

❝ यह रात पूरी की पूरी सलामती है उषाकाल के उदय होने तक।” [क़ुरआन: सुराः क़द्र 97:5]

(5) यह रात बहुत ही पवित्र तथा बरकत वाली हैः इस लिए इस रात में अल्लाह की इबादत की जाए, ज़्यादा से ज़्यादा अल्लाह से दुआ की जाए, अल्लाह का फरमान हैः

❝ हमने इस (क़ुरआन) को बरकत वाली रात में अवतरित किया है।” [क़ुरआन: सुराः क़द्र 97:1]

(6) इस रात में अल्लाह तआला के आदेश से लोगों के नसीबों (भाग्य) को एक वर्ष के लिए दोबारा लिखा जाता है। इस वर्ष किन लोगों को अल्लाह तआला की रहमतें मिलेंगी ? यह वर्ष अल्लाह की क्षमा का लाभ कौन लोग उठाएंगे ?, इस वर्ष कौन लोग अभागी होंगे ?, किस को इस वर्ष संतान जन्म लेगा और किस की मृत्यु होगी ? तो जो व्यक्ति इस रात को इबादतों में बिताएगा, अल्लाह से दुआ और प्रार्थनाओं में गुज़ारेगा, बेशक उस के लिए यह रात बहुत महत्वपूर्ण होगी । जैसा कि अल्लाह तआला का इरशाद हैः

❝ यह वह रात है जिस में हर मामले का तत्तवदर्शितायुक्त निर्णय हमारे आदेश से प्रचलित किया जाता है।” [सुरा अद् दुखानः 44:4-5]

(7) यह रात पापों, गुनाहों, गलतियों से मुक्ति और छुटकारे की रात है। मानव अपनी अप्राधों से मुक्ति के लिए अल्लाह से माफी मांगे, अल्लाह बहुत ज़्यादा माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। खास कर इस रात में लम्बी लम्बी नमाज़े पढ़ा जाए, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए, अल्लाह तआला बहुत माफ करने वाला, क्षमा करने वाला है। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का कथन हैः

हदीस: “जो व्यक्ति शबे क़द्र में अल्लाह पर विश्वास तथा पुण्य की आशा करते हुए रातों को क़ियाम करेगा, उसके पिछ्ले सम्पूर्ण पाप क्षमा कर दिये जाएंगे।” (बुखारी तथा मुस्लिम)


यह महान क़द्र की रात कौन सी है?

यह अल्लाह की ओर से एक प्रदान रात है जिस की महानता के बारे में कुछ बातें बयान की जा चुकी हैं। इसी शबे क़द्र को तलाश ने का आदेश प्रिय रसूल(सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपने कथन से दिया है। “जैसा कि आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती है –

हदीस: रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः ” कद्र वाली रात को रमज़ान महीने के अन्तिम दस ताक रातों में तलाशों ” (बुखारी तथा मुस्लिम)

प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शबे क़द्र को अन्तिम दस ताक वाली (21, 23, 25,27, 29) रातों में तलाशने का आदेश दिया है। शबे क़द्र के बारे में जितनी भी हदीस की रिवायतें आइ हैं। सब सही बुखारी, सही मुस्लिम और सही सनद से वर्णन हैं। इस लिए हदीस के विद्ववानों ने कहा है कि सब हदीसों को पढ़ने के बाद मालूम होता है कि शबे क़द्र हर वर्ष विभिन्न रातों में आती हैं।

कभी 21 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 23 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 25 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 27 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती, तो कभी 29 रमज़ान की रात क़द्र वाली रात होती और यही बात सही मालूम होता है। इस लिए हम इन पाँच बेजोड़ वाली रातों में शबे क़द्र को तलाशें और बेशुमार अज्रो सवाब के ह़क़्दार बन जाए।


शबे क़द्र की निशानीः

प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इस रात की कुछ निशानी बयान फरमाया है। जिस के माध्यम से इस महत्वपूर्ण रात को पहचाना जा सकता है।

(1) यह रात बहुत रोशनी वाली होगी, आकाश प्रकाशित होगा, इस रात में न तो बहुत गरमी होगी और न ही सर्दी होगी बल्कि वातावरण अच्छा होगा, उचित होगा। जैसा कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने निशानी बतायी है, जिसे सहाबी वासिला बिन अस्क़अ वर्णन करते है कि –

हदीस:  अल्लाह के रसूल (ﷺ) ने फरमायाः “शबे क़द्र रोशनी वाली रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और वातावरण संतुलित होता है और सितारे को शैतान के पीछे नही भेजा जाता।” (तब्रानी)

(2) यह रात बहुत संतुलित वाली रात होगी। वातावरण बहुत अच्छा होगा, न ही गर्मी और न ही ठंडी होगी। हदीस रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) इसी बात को स्पष्ट करती है –

हदीस: “शबे क़द्र वातावरण संतुलित रात होती है, न ज़्यादा गर्मी और न ज़्यादा ठंढ़ी और उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है तो लालपन धिमा होता है।” (सही- इब्नि खुज़ेमा तथा मुस्नद त़यालसी)

(3) शबे क़द्र के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी धिमी होती है, सुर्य के रोशनी में किरण न होता है । जैसा कि उबइ बिन कअब वर्णन करते हैं कि –

हदीस: रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) ने फरमायाः “उस रात के सुबह का सुर्य जब निकलता है, तो रोशनी में किरण नही होता है।” (सही मुस्लिम)


शबे क़द्र की रात में कैसी इबादत करे ?

हक़ीक़त तो यह है कि इन्सान इन रातों की निशानियों का परिचय कर पाए या न कर पाए बस वह अल्लाह की इबादतों, ज़िक्रो-अज़्कार, दुआ और क़ुरआन की तिलावत, क़ुरआन पर गम्भीरता से विचार किरे । इख्लास के साथ, केवल अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए अच्छे तरीक़े से अल्लाह की इबादत करे, प्रिय रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की इताअत करे, और अपनी क्षमता के अनुसार अल्लाह की खूब इबादत करे और शबे क़द्र में यह दुआ अधिक से अधिक करे, अधिक से अधिक अल्लाह से अपने पापों, गलतियों पर माफी मांगा जाए। जैसा कि –

शबे कद्र की दुआ:

हदीस: आइशा (रज़ियल्लाहु अन्हा) वर्णन करती हैं कि, मैं ने रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) से प्रश्न किया कि यदि मैं क़द्र की रात को पा लूँ तो क्या दुआ करू, तो आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमायाः “अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व, फअफु अन्नी।” अर्थः ‘ऐ अल्लाह! निःसन्देह तू माफ करने वाला है, माफ करने को पसन्द फरमाता, तू मेरे गुनाहों को माफ कर दे।” (सुनन इब्ने माजाह ७३१)

अल्लाह हमें और आप को इस महीने में ज्यादा से ज़्यादा भलाइ के काम, लोगों के कल्याण के काम, अल्लाह की इबादत तथा अराधना की शक्ति प्रदान करे और हमारे गुनाहों, पापों, गलतियों को अपने दया तथा कृपा से क्षमा करे। आमीन………

SHAB E QADR IN ROMAN

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मुसलमानों के साइंसी कारनामे (Muslim Scientist who change the world) https://ummat-e-nabi.com/muslim_scientists/ https://ummat-e-nabi.com/muslim_scientists/#respond Fri, 12 Nov 2021 16:42:10 +0000 https://ummat-e-nabi.com/muslim_scientists/ मुसलमानों के साइंसी कारनामे (Muslim Scientist who change the world)मुसलमानों के साइंसी कारनामे Muslim Scientist who change the world मुसलमानों के लिए ज्ञान के क्या मायने हैं उसे कुरआन ने अपनी पहली ही आयत में स्पष्ट कर दिया था […]

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Muslim Scientist Ke Inventions Aur Karname By Adv. Faiz Syed

मुसलमानों के साइंसी कारनामे

Muslim Scientist who change the world

मुसलमानों के लिए ज्ञान के क्या मायने हैं उसे कुरआन ने अपनी पहली ही आयत में स्पष्ट कर दिया था अतीत में मुसलमानों ने इसी आयत करीमा का पालन करते हुए वह स्थान प्राप्त कर लिया था जिस के बारे में आज कोई विचार नही कर सकता।

मुसलमान ज्ञान के हर क्षेत्र में आगे थे चाहे उसका सम्बन्ध धार्मिक ज्ञान से हो या आधुनिक ज्ञान से , धार्मिक ज्ञान में वे मुफक्किर-ए-इस्लाम और वलीउल्लाह थे तो आधुनिक ज्ञान में उनकी गणना दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों में होती थी यही कारण था कि अल्लाह ने धार्मिक और आधुनिक ज्ञान के कारण उन्हें बुलंदियों पर बिठा दिया था।

मुसलमानों ने विज्ञान के हर क्षेत्र में अपनी खिदमतों को अंजाम दिया है और विज्ञान को मजबूती प्रदान की है खुद कुरआन में 1000 आयत ऐसी है जिन का सम्बन्ध वैज्ञानिक संस्था से है , विज्ञान का कोई क्षेत्र ऐसा नही जिसमे मुसलमानों ने अपनी खिदमतों को अंजाम न दिया हो अगर रसायन (Chemistry) का इतिहास उठा कर देखो तो पता चलता है कि हम रसायन शास्त्री (Chemist) थे गणित (Mathematics) का इतिहास उठा कर देखो तो पता चलता है कि हम गणितज्ञ (Mathematician) थे , जीव बताती है कि हमे जीवविज्ञान में उच्च स्थान प्राप्त था लेकिन इन सबकी वज़ह मुसलमानों का इस्लाम से कुराआन से अल्लाह से जुड़ा होना था कोई साइंसदान हाफिज था तो कोई किसी मदरसे का कुल शोधकर्ता।

  • तब हम तादाद में कम थे लेकिन ज्ञान के हुनर-ओ-फन में हमारा कोई सानी(competitor) नही था , हमारे ज्ञान व कला को देख कर विरोधी तक हमारी प्रशंसा करने के लिए मजबूर हो जाते थे , आज हम करोड़ो में हैं लेकिन ये फन हमारे हाथों से निकलता जा रहा है क्यूंकि हमारा सम्बन्ध अल्लाह और उसके रसूल से हटता जा रहा है।

मुस्लिम वैज्ञानिकों की विज्ञान में अंजाम दी गयी सेवाओं का एक हिस्सा आपकी सेवा में-

१. अल तूसी (खगोलशास्त्र)

इनका पूरा नाम अल अल्लामा अबू जाफर मुहम्मद बिन मुहम्मद बिन हसन अल तूसी है ये सातवीं सदी हिजरी के शुरू में तूस में पैदा हुए इनकी गणना इस्लाम धर्म के बड़े साइंसदानो में होती है इन्होने बहुत सारी किताबे लिखीं जिनमे सब से अहम “शक्ल उल किताअ” है, यह पहली किताब थी जिसने त्रिकोणमिति को खगोलशास्त्र से अलग किया।

अल तूसी ने अपनी रसदगाह में खगोलीय टेबल बनाया जिस से यूरोप ने भरपूर फायदा उठाया अल तूसी ने बहुत से खगोलीय समस्याओ को हल किया और बत्लूम्स से ज्यादा आसान खगोलीय मानचित्र बनाया उन्ही की मेहनत और परिश्रम ने कूपर निकस को सूरज को सौर मण्डल का केंद्र करार देने में मदद दी इससे पहले पृथ्वी को ब्रह्मांड का केंद्र माना जाता था।

इन्होने आज के आधुनिक खगोल का मार्ग प्रशस्त किया इसके साथ उन्होंने ज्यामिति के द्रष्टिकोण में नये तथ्य शामिल किये।

मशहूर इतिहासकार शार्टन लिखता है “तूसी इस्लाम के सब से महान वैज्ञानिक और सबसे बड़े गणितज्ञ थे इसी मशहूर वैज्ञानिक ने त्रिकोणमिति की बुनियाद डाली और उससे सम्बंधित कई कारण भी बतलाये , खगोल विज्ञान की पुस्तकों में “अलतजकिरा अलनासरिया ” जिसे “तजकिरा फी इल्म नसख” के नाम से भी जाना जात है खगोल शास्त्र की एक मशहूर किताब है जिसमें इन्होने ब्रह्मांड प्रणाली में हरकत की महत्वता , चाँद का परिसंचरण (Rotation) और उसका हिसाब , धरती पर खगोलीय प्रभाव, कोह, रेगिस्तान , समुन्द्र, हवाएं और सौर प्रणाली के सभी विवरण स्पष्ट कर दिए, तूसी ने सूर्य और चंद्रमा की दूरी को भी स्पष्ट किया और ये भी बताया कि रात और दिन कैसे होते हैं।

२. जाबिर बिन हियान (रसायन शास्त्री)

जाबिर बिन हियान जिन्हें इतिहास का पहला रसायनशास्त्री कहा जाता है उसे पश्चिमी देश में गेबर (geber) के नाम से जाना जाता है, इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है ,इनका जन्म 733 ईस्वी में तूस में हुई थी ,जाबिर बिन हियान ने ही एसिड की खोज की इन्होने एक ऐसा एसिड भी बनाया जिससे सोने को भी पिघलाना मुमकिन था जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति ,पशु और ,खनिज में विभाजित किया।

इसी मुस्लिम साइंसदान ने रासायनिक यौगिकों जैसे – कार्बोनेट, आर्सेनिक, सल्फाइड की खोज की नमक के तेजाब, नाइट्रिक एसिड, शोरे के तेजाब, और फास्फोरस से जाबिर बिन हियान ने ही दुनिया को परिचित कराया ,जाबिर बिन हियान ने मोम जामा और खिजाब बनाने का तरीका खोजा और यह भी बताया कि वार्निश के द्वारा लोहे को जंग से बचाया जा सकता है।

जाबिर बिन हियान ने 200 से अधिक पुस्तकें रचना में लायीं जिनमें किताब अल रहमा ,किताब-उल-तज्मिया , जैबक अल शर्की , किताब-उल-म्वाजीन अल सगीर को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है जिनका अनुवाद विभिन्न भाषाओँ में हो चुका है।

३. अल जज़री –

अल जजरी अपने समय के महान वैज्ञानिक थे ,इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इन्होने अपार सेवाएँ प्रदान की ,इस महान वैज्ञानिक ने अपने समय में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में इन्कलाब बरपा कर दिया था इनका सबसे बड़ा कारनामा ऑटोमोबाइल इंजन की गति का मूल स्पष्ट करना था और आज उन्हीं के सिद्धांत पर रेल के इंजन और अन्य मोबाइलों का आविष्कार संभव हो सका ,अल-जजरी ने ही सबसे पहले दुनिया को रोबोट का मंसूबा अता किया, इन्होने ही पानी निकालने वाली मशीन का आविष्कार किया और कई घड़ियों की भी खोज की जिनमे हाथी घड़ी,कैसल घड़ी,मोमबत्ती घड़ी,और पानी घड़ी भी शामिल हैं |

४. इब्न अल हैशम –

इब्न अल हैशम का पूरा नाम अबू अली अल हसन बिन अल हैशम है ये ईराक के एतिहासिक शहर बसरा में 965 ई में पैदा हुए , इन्हें भौतिक विज्ञान , गणित, इंजीनियरिंग और खगोल विज्ञान में महारत हासिल थी , इब्न अल हैशम अपने दौर में नील नदी के किनारे बाँध बनाने चाहते थे ताकि मिश्र के लोगों को साल भर पानी मिल सके लेकिन अपर्याप्त संसाधन के कारण उन्हें इस योजना को छोड़ना पड़ा , लेकिन बाद में उन्हीं की इस योजना पर उसी जगह एक बाँध बना जिसे आज असवान बाँध के नाम से जाना जाता है |

अतीत में माना जाता था कि आँख से प्रकाश निकल कर वस्तुओं पर पड़ता है जिससे वह वस्तु हमें दिखाई देती है लेकिन इब्न अल हैशम ने अफलातून और कई वैज्ञानिकों के इस दावे को गलत शाबित कर दिया और बताया कि जब प्रकाश हमारी आँख में प्रवेश करता है तब हमे दिखाई देता है इस बात को शाबित करने के लिए इब्न अल हैशम को गणित का सहारा लेना पड़ा , इब्न अल हैशम ने प्रकाश के प्रतिबिम्ब और लचक की प्रकिया और किरण के निरक्षण से कहा कि जमीन की अन्तरिक्ष की उंचाई एक सौ किलोमीटर है इनकी किताब “किताब अल मनाज़िर” प्रतिश्रवण के क्षेत्र में एक उच्च स्थान रखती है,उनकी प्रकाश के बारे में की गयी खोजें आधुनिक विज्ञान का आधार बनी , इब्न-अल-हैशम ने आँख पर एक सम्पूर्ण रिसर्च की और आँख के हर हिस्से को पूरे विवरण के साथ अभिव्यक्ति किया |

जिसमें आज की आधुनिक साइंस भी कोई बदलाव नही कर सकी है, इन्होने आँख का धोखा या भ्रम को खोजा जिसमे एक विशेष परिस्थिति में आदमी को दूर की चीजें पास और पास की दूर दिखाई देती हैं , प्रकाश पर इब्न अल हैशम ने एक परिक्षण किया जिसके आधार पर अन्य वैज्ञानिकों ने फोटो कैमरे का आविष्कार किया उनका कहना था कि “अगर किसी अंधेरे कमरे में दीवार के ऊपर वाले हिस्से से एक बारीक छेंद के द्वारा धूप की रौशनी गुजारी जाये तो उसके उल्ट अगर पर्दा लगा दिया जाये तो उस पर जिन जिन वस्तुओं का प्रतिबिम्ब पड़ेगा वह उल्टा होगा ” उन्होंने इसी आधार पर पिन होल कैमरे का आविष्कार किया।

इब्न अल हैशम ने जिस काम को अंजाम दिया उसी के आधार पर बाद में गैलीलियो, कापरनिकस और न्यूटन जैसे वैज्ञानिकों ने काम किया, इब्न अल हैशम से प्रभावित होकर गैलीलियो ने दूरबीन का आविष्कार किया – इब्न अल हैशम की वैज्ञानिक सेवाओं ने पिछले प्रमुख वज्ञानिकों के चिराग बुझा दिए।

इन्होने इतिहास में पहली बार लेंस की आवर्धक पावर की खोज की , इब्न अल हैशम ने ही यूनानी दृष्टि सिद्धांत (Nature of Vision) को अस्वीकार करके दुनिया को आधुनिक दृष्टि दृष्टिकोण से परिचित कराया।

जो चीजें इब्न अल हैशम ने खोजी पश्चिमी देशों ने हमेशा उन पर पर्दा डालने की कोशिस की , इब्न अल हैशम ने 237 किताबें लिखीं, यही कारण है कि अबी उसैबा ने कहा कि वो कशीर उत तसनीफ (अत्यधिक पुस्तक लिखने वाले) थे।

५. अबुलकासिस (सर्जरी का संस्थापक)

अबू कासिम बिन खल्फ बिन अल अब्बास अल जहरवी 936 में पैदा हुए मगरिब (पश्चिम) में इन्हें अबुलकासिस (Abulcasis) के नाम से जाना जाता है, इनकी पुस्तक “किताब अल तसरीफ” चिकित्सा के क्षेत्र की महान पुस्तक है जिसमें चिकित्सा विज्ञान के सभी कलाओं का उल्लेख किया गया है अल जहरवी ने ही सर्जरी की खोज की और इतिहास में पहली बार सर्जरी का प्रयोग कर दुनिया को इस नये फन से वाकिफ कराया।

६. अल-किंदी

इनका पूरा नाम याकूब इब्न इशहाक अल-किंदी है।  इनके पिता कूफा के गवर्नर थे इन्होने प्रारंभिक शिक्षा कूफ़ा ही में प्राप्त बाद में बगदाद चले गये, इनकी गणना इस्लाम के सर्वोच्च हुकमा और दार्शनिकों में होती है।  इन्हें गणित , चिकित्सा और खगोल विज्ञान में महारत हासिल थी।

अलकिंदी ने ही इस्लामी दुनिया को हकीम अरस्तू के ख्यालों से परिचित कराया और गणित, चिकित्सा विज्ञान, दर्शन, और भूगोल पर 241 उत्कृष्ट पुस्तकें लिखी जिनमें उनकी पुस्तक “बैत-उल-हिक्मा” (House of Wisdom) को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है।

७. अल-बैरूनी

अबू रेहान अल बैरूनी का पूरा नाम अबू रेहान मुहम्मद इब्न अहमद अल बैरूनी है,.. ये 9 सितंम्बर 973 ई को ख्वारिज्म के एक गाँव बैरून में पैदा हुए, ये बहुत बड़े शोधकर्ता और वैज्ञानिक थे।

अल बैरूनी ने गणित , इतिहास के साथ भूगोल में ऐसी पुस्तकें लिखीं हैं जिन्हें आज तक पढ़ा जाता है, उनकी पुस्तक “किताब-अल-हिंद” को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है, इस पुस्तक में अल बैरूनी ने हिन्दुओं के धार्मिक विश्वासों और इतिहास के साथ भारतीय भौगोलिक स्थिति बड़ी ही तहकीक से लिखें हैं।

बैरूनी ने कई साल हिन्दुस्तान में रह कर संस्कृत भाषा सीखी और हिन्दुओं के ज्ञान में ऐसी महारत हासिल की कि ब्राह्मण भी आश्चर्य करने लगे।

अल बैरूनी की लिखी पुस्तक “कानून मसूद” खगोल विज्ञान और गणित की बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक है इस पुस्तक मन ऐसे साक्ष्य पेश किये गये हैं जो और कहीं नहीं मिलते। स्वरूप विज्ञान और गणित में अल बैरूनी को महारत हासिल थी, इन्होने भौतिकी, इतिहास, गणित के साथ-साथ धर्म, रसायन , और भूगोल पर 150 से अधिक पुस्तकें लिखी।

बैरूनी ने ही सब से पहले पृथ्वी को मापा था , अल बैरूनी ने आज से 1000 साल पहले महमूद गज़नवी के दौर में मौजूदा पाकिस्तान आने वाले उत्तरी पंजाब के शहर पिंड दादन खान से 22 किलोमीटर दूर स्थित नंदना में रुके , इसी प्रवास के दौरान इन्होने पृथ्वी की त्रिज्या को ज्ञात किया जो आज भी सिर्फ एक प्रतिशत के कम अंतर के साथ दुरुस्त है। सभी वैज्ञानिक इस बात से हैरत में हैं कि अल – बैरूनी ने आज से 1000 साल पहले जमीन की माप इतनी सटीकता के साथ कैसे कर ली?

अल-बैरूनी ने ही बताया कि पृथ्वी अपनी अक्ष (Axis) पर घूम रही है और ये भी स्पष्ट किया फव्वारों का पानी नीचे से ऊपर कैसे जाता है।

८. इब्न सीना

इब्न सीना का पूरा नाम “अली अल हुसैन बिन अब्दुल्लाह बिन अल-हसन बिन अली बिन सीना” है। इनकी गणना इस्लाम के प्रमुख डाक्टर और दर्शिनिकों में होती है पश्चिम में इन्हें अवेसेन्ना (Avicenna) के नाम से जाना जाता है ये इस्लाम के बड़े विचारकों में से थे , इब्न सीना ने 10 साल की उम्र में ही कुरआन हिफ्ज़ कर लिया था।

बुखारा के सुलतान नूह इब्न मंसूर बीमार हो गये। किसी हकीम की कोई दवाई कारगर शाबित न हुई, 18 साल की उम्र में इब्न सीना ने उस बीमारी का इलाज़ किया जिस से तमाम नामवर हकीम तंग आ चुके थे। इब्न सीना की दवाई से सुल्तान-इब्न-मंसूर स्वस्थ हो गये , सुल्तान ने खुश हो कर इब्न सीना को पुरस्कार रूप में एक पुस्तकालय खुलवा कर दिया।

अबू अली सीना की स्मरण शक्ति बहुत तेज़ थी उन्होंने जल्द ही पूरा पुस्तकालय छान मारा और जरूरी जानकारी एकत्र कर ली, फिर 21 साल की उम्र में अपनी पहली किताब लिखी |

अबू अली सीना ने २१ बड़ी और २४ छोटी किताबें लिखीं लेकिन कुछ का मानना है कि उन्होंने 99 किताबों की रचना की। उनकी गणित पर लिखी 6 पुस्तकें मौजूद हैं जिनमे “रिसाला अल-जराविया , मुख्तसर अक्लिद्स, अला रत्मातैकी, मुख़्तसर इल्म-उल-हिय, मुख्तसर मुजस्ता , रिसाला फी बयान अला कयाम अल-अर्ज़ फी वास्तिससमा (जमीन की आसमान के बीच रहने की स्थिति का बयान )” शामिल हैं।

इनकी किताब “किताब अल कानून (canon of medicine)” चिकित्सा की एक मशहूर किताब है जिनका अनुवाद अन्य भाषाओँ में भी हो चुका है। उनकी ये किताब 19वीं सदी के अंत तक यूरोप की यूनिवर्सिटीयों में पढाई जाती रही। अबू अली सीना की वैज्ञानिक सेवाओं को देखते हुए यूरोप में उनके नाम से डाक टिकट जारी किये गये हैं। 

आज हमें स्कूल और कॉलेजों में बताया जाता है कि “मुसलमानों ने जब कुस्तुन्तुनिया को अपने कब्जे में लिया तो वहां साइंस के और ज्ञान विज्ञान के तमाम स्त्रोत मौजूद थे लेकिन मुसलमानों के लिए इन सब की कोई अहमियत न थी इस लिए मुसलमानों ने उनको तबाह बर्बाद कर डाला” इस झूठे इतिहास को पढ़ा कर मुल्क हिन्दुस्तान और दुनिया के तमाम मुल्क के शिक्षा प्राप्त कर रहे विद्यार्थीयों कि मानसिकता को बदला जाता है और हकीकत को पैरों तले कुचल दिया जाता है।

और मुसलमान भी इसी झूठे इतिहास को पढ़ता रहता है क्यूंकि उसे असलियत का पता नही होता उसे ये इल्म नही होता कि हमने बहर-ए-जुल्मात में घोड़े दौडाएं हैं हमने समन्दरों के सीने चाक किये हैं हम ही ने परिंदों की तरह इंसान को परवाज़ करना सिखाया है, हम ही ने साइंस को महफूज़ किया है।

बड़ी अजीब बात है कि मुसलमानों ने अपना इतिहास भुला दिया, उसे वह हुनर तो छोड़ो वह नाम ही याद नही जिनकी वज़ह से आधुनिक विज्ञान ने इतनी प्रगति की है , मुसलमान अतीत में एक सफल इंजिनियर भी रहे, एक चिकित्सक भी रहे, एक उच्च सर्जन भी रहे हैं, कभी इब्न-उल-हैशम बन कर प्रतिश्रवण के सिंहासन पर काबिज हो गये तो कभी जाबिर बिन हियान के रूप में रसायन विज्ञान का बाबा आदम बन कर सामने आये।

https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Muslim_scientists
1001 Inventions
#GoldenAge
#GoldenIslamicAge

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उंगलियों के पोरों पर कीटनाशक प्रोटीन: जानिये १४०० सालो से क्या कहता है इस्लाम https://ummat-e-nabi.com/ungliyo-ke-poro-me-kitaknashak/ https://ummat-e-nabi.com/ungliyo-ke-poro-me-kitaknashak/#respond Sat, 09 Oct 2021 14:39:25 +0000 https://ummat-e-nabi.com/ungliyo-ke-poro-me-kitaknashak/ उंगलियों के पोरों पर कीटनाशक प्रोटीन Antidote in fingers♥ हदीस: हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अनहुमा) से रिवायत है कि, अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया: “जब तुम में से कोई खाना खाए तो वह […]

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♥ हदीस: हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ियल्लाहु अनहुमा) से रिवायत है कि,
अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:

“जब तुम में से कोई खाना खाए तो वह अपना हाथ न पोछें यहां तक कि उसे (उंगलियां) चाट ले या चटाले।”

📕 सही मुस्लिम, अल-अश्रिबःबाब इस्तिह्बाब लअक़िल असाबिअ, हदीस न0 2031

• वैज्ञानिक तथ्य: खाने के बाद उंगलियां चाटने का आदेश पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने चौदह सदियाँ पहले दिया। इसमें क्या हिकमत है इसकी पुष्टि चिकित्सा वैज्ञानिक इस दौर में कर रहे हैं।

एक खबर देखें:

  • “जर्मनी के चिकित्सा विशेषज्ञों ने शोध के बाद यह निकाला है कि मनुष्य की उंगलियों के पोरों पर विशेष प्रकार के प्रोटीन उसे दस्त, उल्टी और हैज़े जैसी बीमारियों से बचाती है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार वह जीवाणु जिन्हें “ई कोलाई” कहते हैं, जब उंगलियों के पोरों पर आते हैं तो पोरों पर प्रोटीन स्वास्थ्य को हानी पहुंचाने वाले जीवाणु को समाप्त कर देती है।
  • इस तरह यह जीवाणु मानव शरीर पर रहकर हानिकारक नहीं बनते। खासकर इंसान को पसीना आता है तो कीटनाशक प्रोटीन गतिशील हो जाती है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह प्रोटीन न होती तो बच्चों में हैज़े, दस्त और उल्टी की बीमारियां अधिक होती।” (दैनिक नवाये वक़्त 30 जून 2005)

पश्चिमी लोग खाने के बाद उंगलियां चाटने के कार्य को घृणित करार देकर इस पर अक्षर पालन करते हैं, लेकिन अब विज्ञान इस बात की पुष्टि कर रही है कि यह तो बहुत स्वस्थ है क्योंकि उंगलियां मुंह के अंदर नहीं जातीं और यूं मुंह के लुआब से दूषित नहीं होतीं।

तथा उंगलियों के पोरों पर प्रोटीन से हानिकारक जीवाणु भी मारे जाते हैं. इसके विपरीत चम्मच या काँटे से खाना खाएं तो वह बार बार मुंह के लुआब से दूषित होता रहता है और यह भी घृणित प्रक्रिया है।

जब अल्लाह ने उंगलियों के पोरों पर कीटनाशक प्रोटीन पैदा की है तो हाथ से खाना और खाने के बाद उंगलियां चाटना दोनों स्वस्थ के कारण है।

नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की उपरोक्त हदीस में इन्हीं दो बातों पर अमल की हिदायत की गई है, यानी –

(1) खाना दाएं हाथ से खाया जाए, (2) हाथ पोंछने से पहले उंगलियां चाट ली जाएं।

दाहिने हाथ से खाने और उसके बाद उंगलियां चाटने के इस इस्लामी परंपरा बल्कि सुन्नत को अरबों ने अब तक जीवित रखा हुआ है जिसे अतीत में यूरोप वाले गैर स्वास्थ्य प्रक्रिया ठहराने रहे, मगर अब उन्हीं के चिकित्सा शोधकर्ताओं की जाँच कह रही है कि यह कभी हानिकारक नहीं बल्कि ठीक स्वस्थ और उपयोगी है।

© Ummat-e-Nabi.com

Khana Hath Ungli , Chaat Le, Antidote in Fingers, Ungliyo ke Poro me Kitakanashak Proteins

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रसायनशास्त्र के सबसे पहले जनक थे जाबिर बिन हियान https://ummat-e-nabi.com/father-of-chemistry/ https://ummat-e-nabi.com/father-of-chemistry/#respond Mon, 08 Jul 2019 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/father-of-chemistry/ father of chemestryजाबिर बिन हियान जिन्हें इतिहास का पहला रसायनशास्त्री कहा जाता है उसे पश्चिमी देश में गेबर (geber) के नाम से जाना जाता है। इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता […]

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जाबिर बिन हियान जिन्हें इतिहास का पहला रसायनशास्त्री कहा जाता है उसे पश्चिमी देश में गेबर (geber) के नाम से जाना जाता है।

इन्हें रसायन विज्ञान का संस्थापक माना जाता है , इनका जन्म 733 ईस्वी में तूस में हुई थी , जाबिर बिन हियान ने ही एसिड की खोज की इन्होने एक ऐसा एसिड भी बनाया जिससे सोने को भी पिघलाना मुमकिन था जाबिर बिन हियान पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पदार्थ को तीन भागों वनस्पति , पशु और , खनिज में विभाजित किया ।

इसी मुस्लिम साइंसदान ने रासायनिक यौगिकों जैसे – कार्बोनेट, आर्सेनिक, सल्फाइड की खोज की नमक के तेजाब, नाइट्रिक एसिड, शोरे के तेजाब, और फास्फोरस से जाबिर बिन हियान ने ही दुनिया को परिचित कराया।

जाबिर बिन हियान ने मोम जामा और खिजाब बनाने का तरीका खोजा और यह भी बताया कि वार्निश के द्वारा लोहे को जंग से बचाया जा सकता है |

जाबिर बिन हियान ने 200 से अधिक पुस्तकें रचना में लायीं जिनमें किताब अल रहमा, किताब-उल-तज्मिया, जैबक अल शर्की, किताब-उल-म्वाजीन अल सगीर को बहुत लोकप्रियता प्राप्त है जिनका अनुवाद विभिन्न भाषाओँ में हो चुका है।

और पढ़े :

  1. मुसलमानों के साइंसी कारनामे
  2. कागज़ के नोट है इस्लामी सिस्टम देन
  3. औद्योगिककरन के जनक कहलाते है अल-जज़री
  4. मॉडर्न सर्जरी इब्न ज़ुहर की देन
  5. इब्न-अल-हेथम थे कैमेरा के सबसे पहले अविष्कारक
  6. मेडिकल साइंस के सबसे पहले जनक – इब्न अली सीना
  7. मुस्लिम महिला ने क़ायम की थी दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी
  8. हवा में उड़ान भरनेवाला दुनिया का सबसे पहला इन्सान (अब्बास इब्न फिरनास)
  9. साइंस और टेक्नोलॉजी है मुसलमानो की देंन। 

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Insani Jism me 360 Joints ka Saboot ! 1400 saalo se hai Sunnat me Moujud https://ummat-e-nabi.com/360-haddiyon-ka-zikr/ https://ummat-e-nabi.com/360-haddiyon-ka-zikr/#respond Sat, 09 Mar 2019 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/360-haddiyon-ka-zikr/ 360 joints In human body as per Hadith✦ Hadith : Ummahatul Momineen Ayesha (R.A.) se riwayat hai ke, Rasool’Allah (ﷺ) ne farmaya: ❝Har Insan ki takhleeq me 360 Jod (Joints of Bones) banaye gaye hain, so jis […]

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✦ Hadith : Ummahatul Momineen Ayesha (R.A.) se riwayat hai ke, Rasool’Allah (ﷺ) ne farmaya:

❝Har Insan ki takhleeq me 360 Jod (Joints of Bones) banaye gaye hain, so jis ne Allahu Akbar kaha, Alhamdulillah kaha, La’ilaha Illa’llah kaha, SubhanAllah kaha, Astagfirullah kaha, Raaste se Patthar ya Kanta ya Haddi hata di, Acchi Baat ka Hukm diya yaa Buri Baat se roka tou ye Teen so Saath (360) jodon (Joints) ki ginti ke barabar (Shukr ada karne ki tarah) hai aur goya wo shakhs uss din apne aap ko Jahannum se aazad karwa kar chal phir raha hai.❞

Islam ki hakkaniyat ka inkar karnewalo ke liye ye baat apne aap me ek tajjub ka mouju raha hai ke 1400 saal pahle jab Science is haal me bhi naa thi ke insani jism ko scan kar sakey. Lekin us dour me Allah ne Apne Nabi (Salallaho Alaihi Wasallam) ke jarye Insani jism ke 360 joints ke bare me wo baat bayan kar di, jo aaj science tasleem kar rahi hai.

♥ Alhmdulillh ! aaj Medical Science me ek Mustaqil Shoba Anatomy Wujood me aa chuka hai jisne Insani jodo ki kul tadad 360 tasleem kar di. tafseeli jankari ke liye aap yaha diye hue calculations ka muta’ala karey.

Distribution of Human Body Joints

  • Part of the Body Number of Joints
  • Skull = 86
  • Throat and Neck = 6
  • Thorax = 66
  • Spine and Pelvis = 76
  • Hands, Arms and Fingers = 64
  • Legs, Feet and Toes = 62
  • (86+6+66+76+64+62 = 360)

Ref: Book – The Journey of Faith inside the Human Body by Dr. Hamid

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Makkhi ke Parr Me Bimaari Aur Shifa: Islam aur Science https://ummat-e-nabi.com/makkhi-ke-parr-me-bimaari-aur-aur-shifa/ https://ummat-e-nabi.com/makkhi-ke-parr-me-bimaari-aur-aur-shifa/#respond Mon, 18 Jul 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/makkhi-ke-parr-me-bimaari-aur-aur-shifa/ Antidote in the Wing∗ Sawaal: Piney Aur Khane Ki Cheez Me Makhhi Gir Jaye Tou Kya Karna Chahiye ? » Jawaab: Abu Dawood Ne Hazrate Abu Huraira (RaziAllahu Anhu) Se Riwayat Ki Hai […]

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Sawaal: Piney Aur Khane Ki Cheez Me Makhhi Gir Jaye Tou Kya Karna Chahiye ?
» Jawaab: Abu Dawood Ne Hazrate Abu Huraira (RaziAllahu Anhu) Se Riwayat Ki Hai Ki,
Rasool’Allah (Sallallahu Alaihay Wasallam) Ne Farmaya:
“Jab Khaane Me Makhkhi Gir Jaye Tou Uss Ko Gota (Dubana) Do
– Kyun Ki Uss Ke Ek Parr(wings) Me Bimaari Hai Aur Doosre Me Shifa Hai.
– Aur Usi Parr Se Apne Ko Bachati Hai Jis Me Bimaari Hai
(Wahi Par Khane Me Pehle Dalti Hai Jisme Bimaari Hai
– Lihaza Puri Ko Gota (Duba) Do.”
(Sunan Abu Dawood; Hadith no.3844, Jild-3, Page No.511) – @[156344474474186:]

» SCIENTIFIC VIEW: Britain Ke Mashoor Medical Magazine (DOCTORIAN EXPERIENCES) No 1057 Taba Saal 1927, Me Makkhi Ke Mutaallik Nayi Tahqeeq Yun Bayan Ki Gayi Hai –
“Makkhi Jab Khetiyon Aur Sabziyon Par Baithti hai Toh Apne Saath Mukhtalib Bimaariyon Ke Jaraaseem Utha Leti Hai,
– Lekin Kuch Arsa Baad Ye Jaraaseem Marr Jaate Hai Aur Unki Jagah Makki Ke Peit Me “Baktar Falog” Naami Ek Maadah Paida Ho Jaata Hai Jo Zehareele Jaraaseem Ko Khatm Karne Ki Khaasiyat Rakhta Hai,..
– Agar Tum Kisi Namkeen Paani Me Makki Ke Pait Ka Maadah Daalo Toh Tumhe Wah “Takbar Faloj” Mil Sakta Hai, Jo Mukhtalif Bimariyan Failaane Waale Chaar Qism Ke Jaraaseem Ka Muhlak Hai,..
– Iske Elawa Makkhi Ke Pait Ka Ye Madah Badal Kar ‘Takbar Faloj’ Ke Baad Ek Aisa Madah Ban Jaayega Jo 4 Mazeed Qism Ke Jaraaseem Ko Khatm Karne Ke Liye Mufeed Hoga”…

♥ Alahmdulillah !!! Allah Ke Nabi(Sallallahu Alaihay Wasallam) ne Aaj Se 1400 Saal Pahle Hi Wajeh Farma Diya Ke –
“Hakikatan Makkhi Ke Ek Parr me Bimaari hoti Hai aur Dusre Parr me Shifaa Yaani Uss Bimaari ka Antidote hota hai.
– Lihaja Maloom Ho Jaye Ke Khaane Pine Ki Kisi Cheez Me Makkhi Gir Jaye tou Uss Makkhi Ko Uss Me Puri Taraha Se Dubo Kar Bahar Nikaal Do.. Taaki Uske Pahle Parr Se Aayi Bimaari ka Antidote Uske Dusre Parr Se Uss Cheez me Ghool-Mill Jaye,.. Aur Wo Khaane-Pine Ki Cheez Uss Bimaari ke Sharr Se Mehfuz Ho Jaye ,..

• WAJAHAT: *Makkhi Ko Dubana Uss Surat Me Mumkin Hoga Jab Ki Khane Ya Piney Ki Cheez Patli(Liquid) Ho ,..
– Jaise Ki Paani, Sharbat , Daal, Saalan Wagaira.
– Agar Liquid Na Ho Tou Aap Uss Thodi Jagah Se Us Cheez Ko Kinare Dal De Take Chinti Wagaira Khale.

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मॉडर्न सर्जरी है “इब्न ज़ुहर” की देन https://ummat-e-nabi.com/avenzoar/ https://ummat-e-nabi.com/avenzoar/#respond Thu, 14 Jul 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/avenzoar/ ibn zohrअवेन्ज़ोअर (Avenzoar) (1094–1162): जो लोग मेडिसिन से ताल्लुक रखते है वो ज़रूर इस नाम को जानते होंगे। इनका असल नाम “इब्न ज़ुहर” था। यह वो थे जिन्होंने बहुत सारे ऐसे […]

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अवेन्ज़ोअर (Avenzoar) (1094–1162): जो लोग मेडिसिन से ताल्लुक रखते है वो ज़रूर इस नाम को जानते होंगे। इनका असल नाम “इब्न ज़ुहर” था। यह वो थे जिन्होंने बहुत सारे ऐसे आलात(इक्यूपमेंट) ईजाद किये जिसके ज़रिये सर्जरी की जाती है,.. मॉडर्न सर्जरी !!!

बहुत सारे आलात फिर चाहे वो ब्लेड की शक्लें हो , मुख़तलिफ़ किस्म के औज़ार हो ये इन्ही की देन है।  और वो औज़ार जो इन्होने ईजाद किये आज भी मौजूद है ऐसे घरो के अंदर जहाँ लोग जमा करते है मुख्तलिफ पुरानी चीज़, ऐसे म्यूजियम में आज भी जमा है जो इस दौर में इस्तेमाल हो रहे है!
– हु-बा-हु वैसे ही थे वो जैसे उन्होंने बनाये,
– चाहे फिर वो दांतो के इलाज के लिए औज़ार हो, पेट चीरने का मुआमला हो और ऑपरेशन करने का मुआमला हो,..
– चाहे फिर आँखों के अंदर से मोतिया बिन्द (आई केट्रैक्ट) निकालने का मुआमला हो !! मुसलमान इस फन में माहिर थे ….

यहाँ तक के मुसलमान ७०० साल यूरोप के पहले से “आई केट्रैक्ट” होलो निड्ल के जरये आसानी से निकाल लेते थे और युरोप ने ये प्रक्टिस १४०० साल के बाद शुरू की वो भी डरते-डरते की कहीं इंसान अँधा न हो जाए।

लेकिन मुसलमान ७ वी सदी तक मोतिया बिन्द निकाल लेते थे आसानी से इतने महारत रखते थे इस फील्ड और इस फन में।

यह मुसलमानो की देन है क्यूंकि उनके रब ने हुक्म दिया की “इक़रा बिस्मे रब्ब-अल-लज़ी ख़लाक़ा (पढ़ अपने रब के नाम से जिस ने पैदा किया)”

– तो बस अपने रब का नाम लेकर पढ़ लिया और हर उलूम के अंदर महारत हासिल कर ली,
– जो-जो नाफ़े और हलाल इल्म था सब हासिल कर लिया …

और पढ़े :

  1. मुसलमानों के साइंसी कारनामे
  2. कागज़ के नोट है इस्लामी सिस्टम देन
  3. औद्योगिककरन के जनक कहलाते है अल-जज़री
  4. रसायनशास्त्र के सबसे पहले जनक थे जाबिर बिन हियान
  5. इब्न-अल-हेथम थे कैमेरा के सबसे पहले अविष्कारक
  6. मेडिकल साइंस के सबसे पहले जनक – इब्न अली सीना
  7. मुस्लिम महिला ने क़ायम की थी दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी
  8. हवा में उड़ान भरनेवाला दुनिया का सबसे पहला इन्सान (अब्बास इब्न फिरनास)
  9. साइंस और टेक्नोलॉजी है मुसलमानो की देंन। 

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औद्योगिककरन के बानी कहलाते है – अल-जज़री https://ummat-e-nabi.com/al-jazari-father-of-robotics/ https://ummat-e-nabi.com/al-jazari-father-of-robotics/#respond Thu, 14 Jul 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/al-jazari-father-of-robotics/ al jazariदुनिया में इंडस्ट्रियल ऐज जो आया उसके लिए सबसे पहले बुनियादी चीज़ थी वो मशीनरी, और मशीनरी के लिए सबसे अहम् चीज़ थी वो था “क्रैनशाफ़्ट”। क्रैनशाफ़्ट के बगैर मशीनरी […]

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दुनिया में इंडस्ट्रियल ऐज जो आया उसके लिए सबसे पहले बुनियादी चीज़ थी वो मशीनरी, और मशीनरी के लिए सबसे अहम् चीज़ थी वो था “क्रैनशाफ़्ट”।

क्रैनशाफ़्ट के बगैर मशीनरी का कोई तसव्वुर नहीं, क्यूकी क्रैनशाफ़्ट के जरये गोल घुमने वाली चीजों से सीधी ताकत पैदा की जाती है. जिसे इंग्लिश में कहते है रोटरी मोशन को लिनिएर मोशन में तब्दील करने वाली चीज़.. और जिसके बानी(इन्वेन्टर) है अल-जज़री।

अल-जजरी(११३६-१२०६) ये पहले साइंटिस्ट थे जिन्होंने क्रैनशाफ़्ट की इजाद की थी पानी को ऊपर चढाने के लिए पहला पंप बनाया था ताकि नदियों का पानी नीचे से खीचकर ऊपर की तरफ खेतो तक फोह्चाया जाये ,.

और इनकी यही इजाद यूरोप के तबदीली (European Renaissance) के लिए रीढ़ की हड्डी बनी। यानी जो युरोप १००० साल तक डार्क ऐज में था उन्हें साइंस की दुनिया में लाने वाले मुसलमान ही थे, और युरोप में जो मशीनी ऐज (Industrialization) आया उसकी सबसे अहम् वजह थी अल-जजरी का बनाया हुआ यह क्रैनशाफ़्ट।

इनकी इसी थ्योरी पर इंजन और दीगर मशीनरी की इजादात हुई। आज जितनी भी गाड़िया चल रही है. जितने भी लिनिअर मोशन की मशीने आप और हम देख रहे है, इस्तेमाल कर रहे है ये एक मुसलमान साइंटिस्ट की देन थी इंसानियत के लिए जिसका फायदा क़यामत तक उठाया जायेगा और उनके नामा-ऐ-अमाल में सवाब पोहचता रहेगा।

इसी तरह अल–जजरी ने ही दुनिया का सबसे पहला रोबोट बनया था , जिन्हें तेल और पानी के जरये हरकते दिया करते थे , जिसकी वजह से इन्हें फादर ऑफ़ रोबोटिक्स भी कहा जाता है और कई घड़ियों भी इजाद की जिनमे हाथी घड़ी, कैसल घड़ी, मोमबत्ती घड़ी, और पानी की घड़ी भी शामिल हैं।

और पढ़े :

  1. मुसलमानों के साइंसी कारनामे
  2. कागज़ के नोट है इस्लामी सिस्टम देन
  3. रसायनशास्त्र के सबसे पहले जनक थे जाबिर बिन हियान
  4. मॉडर्न सर्जरी इब्न ज़ुहर की देन
  5. इब्न-अल-हेथम थे कैमेरा के सबसे पहले अविष्कारक
  6. मेडिकल साइंस के सबसे पहले जनक – इब्न अली सीना
  7. मुस्लिम महिला ने क़ायम की थी दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी
  8. हवा में उड़ान भरनेवाला दुनिया का सबसे पहला इन्सान (अब्बास इब्न फिरनास)
  9. साइंस और टेक्नोलॉजी है मुसलमानो की देंन। 

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प्रो. डॉ. कीथ मूर जो कि वर्तमान समय मे विश्व मे एम्ब्रियोलॉजी अर्थात् भ्रूण शास्त्र के सबसे बड़े ज्ञाता माने जाते हैं, और टोरंटो विश्वविद्यालय (कनाडा) के डिपार्टमेण्ट आफ एनाटॉमी एण्ड सेल बॉयोलॉजी मे विभागाध्यक्ष रह चुके हैं, इन्होंने जब शोध कार्य के लिए कुरान की कुछ पवित्र आयतों का अध्ययन किया तो कुरान को ईश्वरीय ग्रंथ मानने पर मजबूर हो गए.

1980 मे प्रोफेसर कीथ मूर को सऊदी अरब की किंग अब्दुल अजीज युनिवर्सिटी मे शरीर विज्ञान और भ्रूण शास्त्र पर व्याख्यान देने के लिए निमंत्रित किया गया , जब प्रोफेसर मूर सऊदी मे थे तो उन्हे किंग अब्दुल अजीज युनिवर्सिटी की एम्ब्रियोलॉजी कमेटी मे भी शामिल किया गया.

इसी समय प्रोफेसर मूर से कहा गया कि वे क़ुरआन में भ्रूण शास्त्र से संबंधित आयतों और भ्रूण शास्त्र से सम्बन्धित हदीसों पर भी अध्ययन कर के उनपर अपने विचार बताएं । प्रोफेसर मूर ने सातवीं शताब्दी ईसवी मे लिपिबद्ध की गई कुरान और हदीस की भ्रूण शास्त्र से सम्बन्धित आयतों आदि का अध्ययन किया तो आश्चर्यचकित रह गए….. क्योंकि उन्हें भ्रूण शास्त्र के संबंध में क़ुरआन में वर्णन ठीक आधुनिक खोज़ों के अनुरूप मिला….

3 Weeks Pregnant - Pregnancy Symptoms Week 3कुछ आयतों के बारे में प्रोफेसर मूर ने कहा कि अभी वे इन आयतों के विषय मे ग़लत या सही का निर्णय नहीं सुना सकते क्यों कि अभी वे खुद इस बारे मे इतना नहीं जानते, इसमें क़ुरआन की सर्वप्रथम अवतरित हुई सूरह(96) “अल-अलक़” की आयत भी शामिल थी जिसका अनुवाद ये है-
“पढ़िए अपने रब्ब के नाम से, जिसने (दुनिया को) पैदा किया, और जिसने इंसान को जमे हुए खून से बनाया ॥”

इस आयत में अरबी भाषा में एक शब्द का उपयोग किया गया है “अलक़” …. इस शब्द का एक अर्थ होता है..”जमा हुआ रक्त” और इसी शब्द “अलक़” का एक और अर्थ होता है “जोंक जैसा”
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को उस समय तक भी यह मालूम नहीं था कि क्या माता के गर्भ में आरंभ में भ्रूण की सूरत जोंक की तरह होती है….। इसलिए डॉ. मूर उस समय तक कहने मे अक्षम थे कि ये आयत कितनी सही अथवा गलत है …. लेकिन कुरान की ये आयत पढ़कर, और पूर्व मे भ्रूण विज्ञान पर कुरान की आयतों के सटीक पाए जाने के कारण प्रोफेसर मूर ने इस आयत पर भी खोज करने की ठान ली.

प्रोफेसर डॉ. मूर ने अपने कई प्रयोग इस बारे में किए और गहन अध्ययन के पश्चात उन्होंने कहा कि –
“हां पवित्र कुरान की आयत सत्य कहती है, और वास्तव मे ही माता के गर्भ में आरंभ में भ्रूण जोंक की आकृति में ही होता है …”
15 Weeks Pregnant Human Embryology and the Holy Quranयही नहीं, कुरान और हदीस का अध्ययन करने के बाद डॉ मूर ने भ्रूण शास्त्र के संबंध में अन्य 80 प्रश्नों के उत्तर भी दिए जो उन्होंने कुरान और हदीस में वर्णित वाक्य और आयतों से जाने थे, इन प्रश्नों के उत्तरो के बारे मे बताते हुए प्रोफेसर मूर ने कहा था कि “अगर आज से 30 वर्ष पहले मुझसे यह प्रश्न पूछे जाते तो मैं इनमें आधे भी उत्तर नहीं दे सकता था, क्यों कि तब तक विज्ञान ने इस क्षैत्र में इतनी प्रगति नहीं की थी…..”

– क्या ये विस्मय की बात नही है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान जिन प्रश्नों के उत्तर महज़ 30 साल पहले ही खोज पाया है, उन्ही प्रश्नो के उत्तर हमारे प्यारे नबी (सलल्लाहो अलैहि वसल्लम) हमे अब से कई सौ साल पहले दे गए हैं …

1981 में सऊदी मेडिकल कांफ्रेंस में डॉ. मूर ने घोषणा की कि उन्हें कुरान की भ्रूण शास्त्र की इन आयतों को देख कर इस बात का पूरा विश्वास हो गया है कि हज़रत मुहम्मद (सलल्लाहो अलैहि वसल्लम) ईश्वर के पैग़म्बर ही थे । क्योंकि सदियों पूर्व जब विज्ञान खुद भ्रूण अवस्था में हो इतनी सटीक और सच्ची बातें केवल ईश्वर ही कह सकता है …

बेशक आज से चौदह सौ साल पहले ऐसे अत्याधुनिक विज्ञान की बातों का ज्ञान किसी साधारण मनुष्य के पास हो ही नहीं सकता था, ऐसी बातें केवल और केवल ईश्वर की अनुकम्पा से ही कोई जान सकता था.

डॉ. मूर ने अपनी पुस्तक के 1982 के संस्करण में सभी बातों को शामिल किया है, ये पुस्तक कई भाषाओं में उपलब्ध है और प्रथम वर्ष के चिकित्साशास्त्र के विद्यार्थियों को पढ़ाई जाती है.

इस पुस्तक “द डेवलपिन्ग ह्यूमन” को किसी एक व्यक्ति द्वारा चिकित्सा शास्त्र के क्षैत्र में लिखी गई श्रेष्ठ पुस्तक का अवार्ड भी मिल चुका है ….

Pregnant Human Embryology and the Holy Quranवास्तव मे प्रोफेसर डॉ कीथ मूर की प्रसिद्धि मे एक बहुत बड़ी और बहुत महत्वपूर्ण भूमिका पवित्र कुरान और नबी (सलल्लाहो अलैहि वसल्लम) की ज्ञानपरक हदीसों की भी रही है … नास्तिकता का ढोल पीटने वाले अज्ञानी लोग भले ही कुरान की आयत और हदीसों को विज्ञान विरुद्ध कहकर लाख उनकी हंसी उड़ा लें, लेकिन जब भी कुरान और हदीस की इन्हीं बातों पर किसी ज्ञानवान व्यक्ति की नजर पड़ी है, तब तब विज्ञान के क्षेत्र मे नए कीर्तिमान स्थापित हुए हैं ….

*बेशक ये निशानियां हैं, उस सर्वशक्तिमान ईश्वर(अल्लाह) की ओर से अक्ल वालों के लिए … ताकि वे अपने रब्ब को जान जाएं

 

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इब्न-अल-हेथम थे कैमेरा के सबसे पहले अविष्कारक https://ummat-e-nabi.com/ibn-al-haytham/ https://ummat-e-nabi.com/ibn-al-haytham/#respond Mon, 07 Mar 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/ibn-al-haytham/ Al hasanइब्न अल हैथम [965ई -1040ई] इराक के रहने वाले यह वो शख्स है जिन्हे हम कह सकते है “फादर ऑफ़ मॉडर्न ऑप्टिक्स”। – ऑप्टिक्स यानी चश्मे जो हम लगा रहे […]

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इब्न अल हैथम [965ई -1040ई]

इराक के रहने वाले यह वो शख्स है जिन्हे हम कह सकते है “फादर ऑफ़ मॉडर्न ऑप्टिक्स”।
– ऑप्टिक्स यानी चश्मे जो हम लगा रहे है, कैमरे जो चल रहे है, तमाम चीज़ों के ये बानी (फाउंडर) कहलाते है!
– इसलिए के यह पहले थे जिन्होंने सबसे पहला कैमरा बनाया था “पिन-होल कैमरा”

इन्होने यह इजाद किया के रौशनी सीधी चलती है, टेढ़ा-मेढ़ा नहीं चलती, ये इन्काशाफ़त इन्होने ही किया, की रौशनी जब सीधा चलती है और जब एक छोटे सुराख़ की तरफ जाती है तो उसमे जा कर वो उलटी होती है
– मतलब अगर रौशनी किसी सुराख़ में से जाएगी तो उधर अक्स उल्टा बनाएगी और इन्होने इनकी इसी थ्योरी पर पहली बार “पिनहोल कैमरा’ बनाया।

ये एक चादर लेकर एक कमरा बनाते थे जो अँधेरे में होता था पूरा और इसमें एक बारीक़ सुराख़ करते थे
– उस सुराख़ से जब रौशनी आती तो सामने की चीज़ों का अक्स दीवार पर उल्टा पड़ता एक इमेज बनती,
– फोटो बनती सामने जिसे “रिफ्लेक्शन ओन दा ऑप्टिक्स” कहा जाता है,
– तो इसी इन्काशाफ़त के तहत आँखे कैसे देखती है ये भी फार्मूला ढूंढ निकाला।

और उसी थ्योरी से इन्होने “ऑप्टिक्स” ईजाद किया जिसका आज हम सब बेहिसाब फायदा उठा रहे है।
– जैसे की चश्मे हम सब लगते है ना !! इब्न-अल-हेथम को सवाब पहुंचता होगा क्यूंकि इन्होने ही इजाद किया था इस चीज़ को!
– की आँख कैसे काम करती और अगर कमज़ोर हो जाए तो कैसे इन्हे शीशे के ज़रये हिसाब में लाया जाए।

इसी तरह कैमरे की इजाद भी इन्होने की और कैमरा लफ्ज़ खुद अरबी ज़ुबान से आता है
– “अल-कमरा” जिसका माना होता है अँधेरे में एक छोटा सा कमरा।
– तो ये मुसलमानो की इजादाद है जिन चीज़ों को देख कर आज हम सिर्फ आहे भर सकते है।
– यह हमारे ही बाप-दादाओं की विरासत है जीसे इंसानो ने ले कर फायदा उठाया इन्काशाफ़त किये उसपर तजुर्बात किये।

और ये पहले शख्स थे “इब्न अल-हेथम” जिसने यह कहा की:
– “हर बार कोई बात कह दे तो सुनना ज़रूरी थोड़ी है! बल्की हम खुद तजुर्बात करेंगे”
– और तजुर्बात वो करते रहे और चैलेंज किया इन्होने पूरी “ग्रीक साइंस” को जो तजुर्बात नहीं करती थी ..

ग्रीक साइंस ये कहती थी की आँखों में से एक रौशनी निकलती है, जो चीज़ो को जा कर लगती है, जिससे हम देख पाते है, इसपर इब्न-अल-हेथम ने कहा की: “बेबुनियादी बात है ये” क्यूंकि अगर आँखों से रौशनी निकलती है और हम देख सकते है चीज़ों को तो रात को हम क्यों नहीं देख पाते?

दरहक़ीक़त रौशनी होती है जो चीज़ो से टकरा कर हमारी आँखों में जाती है ! ना की हमारे आँखों में से रौशनी निकलती है ,..
और नए-नए फ़लसफ़ात दिए, नयी-नयी सोच दी, हज़ार से ज्यादा नए-नए इजादाद दिए जिनसे इंसानियत को कई फायदे पहुँच रहे है आज भी।

इब्न अल हैथम के इसी जस्बे को देखकर सन २०१५ को उनेस्को ने “दी लाइट इयर” नाम से मनाया और इसका पनेनुएर इन्होने इब्न अल हैथम को दिया जिसमे वो मुख्तलिफ दुनिया में जा-जाकर इब्न-अल-हैथम ने क्या किया इंसानियत के लिए वो बताया।

और पढ़े :

  1. मुसलमानों के साइंसी कारनामे
  2. कागज़ के नोट है इस्लामी सिस्टम देन
  3. औद्योगिककरन के जनक कहलाते है अल-जज़री
  4. मॉडर्न सर्जरी इब्न ज़ुहर की देन
  5. रसायनशास्त्र के सबसे पहले जनक थे जाबिर बिन हियान
  6. मेडिकल साइंस के सबसे पहले जनक – इब्न अली सीना
  7. मुस्लिम महिला ने क़ायम की थी दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी
  8. हवा में उड़ान भरनेवाला दुनिया का सबसे पहला इन्सान (अब्बास इब्न फिरनास)
  9. साइंस और टेक्नोलॉजी है मुसलमानो की देंन। 

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पेड़ पौंधो में जीवन होने के प्रमाण – १४०० साल से केहता है कुरान https://ummat-e-nabi.com/tree-of-life-quran/ https://ummat-e-nabi.com/tree-of-life-quran/#respond Fri, 12 Feb 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/tree-of-life-quran/ Tree of life Quranईश्वर(अल्लाह) द्वारा रची गई इस अद्भुत सृष्टि मे एक अद्भुत रचना है, वनस्पति जगत …. – पेड़ पौधों को हम अपनी आंखो से जीवित प्राणियों की तरह छोटे से बड़ा […]

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ईश्वर(अल्लाह) द्वारा रची गई इस अद्भुत सृष्टि मे एक अद्भुत रचना है, वनस्पति जगत ….
– पेड़ पौधों को हम अपनी आंखो से जीवित प्राणियों की तरह छोटे से बड़ा होते, बढ़ते बनते देखते हैं ….
– पेड़ों को खुद हम अपने हाथ से भोजन खिलाते और पानी पिलाते हैं यानी उन्हें खाद और पानी देते हैं ….

*एक और लक्षण होता है प्राणियों मे जीवन का और वो है उनकी बुद्धि … ये बुद्धि हम प्रत्यक्ष से पशुओं मे देखते हैं .. लेकिन यदि ध्यान दिया जाए तो इन पशुओं से भी कहीं अधिक बुद्धि अनेकों पेड़ पौधों मे भी प्रत्यक्ष रूप से दिखती है ,…

*छोटे कीटो से लेकर चूहे और छिपकलियों तक को मूर्ख बनाकर उनका शिकार कर लेने वाले कीटभक्षी और मांसभक्षी पौधों के बारे मे भी आपने पढ़ा होगा और सम्भवत: टीवी पर देखा भी होगा … और बड़े बड़े जानवरों को मूर्ख बना देने वाला पौधा तो अक्सर हमारे घरों मे ही मौजूद होता है ….
– छुईमुई का पौधा गाय, भैंस और बकरी जैसे जानवरों को मूर्ख बना देता है इन पशुओं के सून्घते ही ये पौधा अपनी पत्तियों को सिकोड़ लेता है जानवर समझते हैं ये पौधा सूखा है और इसमें खाने को कुछ नही और आगे बढ़ जाते हैं … बताईए किसमे ज्यादा बुद्धि है… इस पौधे मे या उन जानवरों मे ?

– पेड़ों मे जीवित प्राणियों वाले ये सारे खुले खुले लक्षण देखकर भी कोई उन्हे निर्जीव समझे… तो दोष उस व्यक्ति की बुद्धि का है, पेड़ स्पष्ट तौर पर सजीव होते हैं ।

*और जो चीज स्पष्ट तौर पर नहीं दिखती थी वह भी 1400 वर्ष पहले पवित्र कुरान मे बता दी गई कि पेड़ वंश बढ़ाने के लिए आपस मे यौन क्रिया करते हैं ,..
कुरान की सूरह ताहा की आयत नम्बर 53 मे वर्णन किया की:
‘‘और ऊपर से पानी बरसाया और फिर उसके द्वारा अलग-अलग प्रकार की पैदावार (जोड़ा ) निकाला” – (कुरान २०:५३)
– यानी अल्लाह ने पेड़ पौधों को उनके “अज़वाज” अर्थात् विपरीत लिंगी साथियों के साथ बनाया यानि नर एवं मादा पेड़ बनाए ,..

आज सभी जानते हैं कि वंश बढ़ाना जीवन और जीवित प्राणियों का ही लक्षण है …
– लेकिन पेड़ भी नर एवं मादा होते हैं और उनका वंश भी यौन क्रिया द्वारा ही वे आगे बढ़ाते हैं ये बात आधुनिक विज्ञान को अट्ठारहवीं शताब्दी मे पता चली….
– जबकि पवित्र कुरान मे इस बात का जिक्र आज से चौदह सौ साल पहले ही कर दिया गया था !

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पवित्र क़ुरआन और शरीर रचना विज्ञान https://ummat-e-nabi.com/physiology-in-holy-quran/ https://ummat-e-nabi.com/physiology-in-holy-quran/#respond Sat, 09 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/physiology-in-holy-quran/ physiologyरक्त प्रवाह (Blood circulations) और दूध: – पवित्र क़ुरआन का अवतरण रक्त प्रवाह की व्याख्या करने वाले प्रारम्भिक मुसलमान वैज्ञानिक “इब्न-अन-नफ़ीस” से 600 वर्ष पहले और इस खोज को पश्चिम […]

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रक्त प्रवाह (Blood circulations) और दूध:
– पवित्र क़ुरआन का अवतरण रक्त प्रवाह की व्याख्या करने वाले प्रारम्भिक मुसलमान वैज्ञानिक “इब्न-अन-नफ़ीस” से 600 वर्ष पहले और इस खोज को पश्चिम में परिचित करवाने वाले विलियम हॉरवे से 1000 वर्ष पहले हुआ था।
– तक़रीबन 1300 वर्ष पहले यह मालूम हो चुका था कि आंतों के अंदर ऐसा क्या कुछ होता है जो पाचन व्यवस्था में अंजाम पाने वाली क्रिया द्वारा शारीरिक अंगों के विकास की गारंटी उपलब्ध कराता है।

– पवित्र क़ुरआन की एक पवित्र आयत जो दुग्ध तत्वांशों के स्रोत की पुष्टि करती है, इस कल्पना के अनुकूल है। उपरोक्त संकल्पना के संदर्भ से पवित्र क़ुरआनी आयतों को समझने के लिये यह जान लेना महत्वपूर्ण है कि आंतों में रसायनिक प्रतिक्रयाए (Reactions) घटित होती रहती हैं और आंतों द्वारा ही पाचन क्रिया से गु़ज़र कर आहार से प्राप्त द्रव्य एक जटिल व्यवस्था से होते हुए रक्त प्रवाह क्रिया में शामिल होते हैं।
– कभी वह द्रव्य जिगर से होकर गुज़रते हैं जो रसायनिक तरकीब पर निर्भर होते हैं। ख़ून उन तत्वों (द्रव्यों) को तमाम अंगों तक पहुंचाता है जिनमें दूध उत्पन्न करने वाली छातियों की कोशिकाएं भी शामिल हैं।

*साधारण शब्दों में यह कहा जा सकता है कि आंतों में अवस्थित आहार के कुछ द्रव्य आंतों की दीवार से प्रवेश करते हुए रक्त की नलियों (Vessels) में प्रवेश कर जाते हैं और फिर रक्त के माध्यम से यह रक्त प्रवाह द्वारा कई अंगों तक जा पहुंचते हैं शारीरिक रचना की यह संकल्पना सम्पूर्ण रूप से हमारी समझ में आ जाएगी यदि हम पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखत आयातों को समझने की कोशिश करेंगे

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और तुम्हारे लिये मवेशियों में भी एक सबक़ (सीख) मौजूद है उनके पेट से गोबर और खून के बीच हम एक चीज़ तुम्हें पिलाते हैं यानि खालिस दूध जो पीने वालों के लिये बहुत स्वास्थ्य वर्द्धक है” – (सूरः 16 आयत 66)

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और यथार्थ यह है कि तुम्हारे लिये मवेशियों में भी एक सबक़ है। उनके पेटों में जो कुछ है उसी में से एक चीज़ (यानि दूध) हम तुम्हे पिलाते हैं और तुम्हारे लिये उनमें बहुत से लाभ भी हैं, उनको तुम खाते हो” – (सूर 23 आयत 21)

*1400 वर्ष पूर्व, पवित्र क़ुरआन द्वारा दी हुई यह व्याख्या जो गाय के दूध की उत्पत्ति के संदर्भ से है आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक शरीर रचना विज्ञान से परिपूर्ण है जिसने इस वास्तविकता को इस्लाम के आगमन के बहुत बाद अब खोज निकाला है।

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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पवित्र क़ुरआन और अंतरिक्ष विज्ञान (Holy-Quran & Space Science)… https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-space-science/ https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-space-science/#respond Tue, 05 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-space-science/ Holy Quran Space Science– जब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, […]

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– जब से इस पृथ्वी ग्रह पर मानवजाति का जन्म हुआ है, तब से मनुष्य ने हमेशा यह समझने की कोशिश की है कि प्राकृतिक व्यवस्था कैसे काम करती है, रचनाओं और प्राणियों के ताने-बाने में इसका अपना क्या स्थान है और यह कि आखि़र खु़द जीवन की अपनी उपयोगिता और उद्देश्य क्या है ? सच्चाई की इसी तलाश में, जो सदियों की मुद्दत और धीर – गम्भीर संस्कृतियों पर फैली हुई है संगठित धर्मो ने मानवीय जीवन शैली की संरचना की है और एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में ऐतिहासिक धारे का निर्धारण भी किया है ।

– कुछ धर्मो की बुनियाद लिखित पंक्तियों व आदेशों पर आधारित है जिन के बारे में उनके अनुयायियों का दावा है कि वह खुदाई या ईश्वरीय साधनों से मिलने वाली शिक्षा का सारतत्व है जब कि अन्य धर्म की निर्भरता केवल मानवीय अनुभवों पर रही है ।

*क़ुरआन पाक, जो इस्लामी आस्था का केंद्रीय स्रोत है एक ऐसी किताब है जिसे इस्लाम के अनुयायी मुसलमान, पूरे तौर पर खु़दाई या आसमानी साधनों से आया हुआ मानते हैं।
– इसके अलावा क़ुरआन -ए पाक के बारे में मुसलमानों का यह विश्वास, कि इसमें रहती दुनिया तक मानवजाति के लिये निर्देश मौजूद है, चूंकि क़ुरआन का पैग़ाम हर ज़माने, हर दौर के लोगों के लिये है, अत: इसे हर युगीन समानता के अनुसार होना चाहिये, तो क्या क़ुरआन इस कसौटी पर पूरा उतरता है ? आईये इसके विश्लेषण पर गौर करते है |

# सृष्टि की संरचना:
‘‘बिग बैंग ‘‘अंतरिक्ष विज्ञान के विशेषज्ञों ने सृष्टि की व्याख्या एक ऐसे सूचक(phenomenon) के माध्यम से करते हैं और जिसे व्यापक रूप ‘‘से बिग बैंग‘‘(big bang) के रूप में स्वीकार किया जाता है।
– बिग बैंग के प्रमाण में पिछले कई दशकों की अवधि में शोध एवं प्रयोगों के माध्यम से अंतरिक्ष विशेषज्ञों की इकटठा की हुई जानकारियां मौजूद है |
– ‘बिग बैंग‘ दृष्टिकोण के अनुसार प्रारम्भ में यह सम्पूर्ण सृष्ठि प्राथमिक रसायन (primary nebula) के रूप में थी फिर एक महान विस्फ़ोट यानि बिग बैंग (Secondary Separation) हुआ जिस का नतीजा आकाशगंगा के रूप में उभरा, फिर वह आकाश गंगा विभाजित हुआ और उसके टुकड़े सितारों, ग्र्रहों, सूर्य, चंद्रमा आदि के अस्तित्व में परिवर्तित हो गए कायनात, प्रारम्भ में इतनी पृथक और अछूती थी कि संयोग (chance) के आधार पर उसके अस्तित्व में आने की ‘‘सम्भावना: (probability) शून्य थी ।
पवित्र क़ुरआन सृष्टि की संरचना के संदर्भ से निम्नलिखित आयतों में बताता है:
♥ अल-कुरान: ‘‘क्या वह लोग जिन्होंने (नबी स.अ.व. की पुष्टि) से इन्कार कर दिया है ध्यान नहीं करते कि यह सब आकाश और धरती परस्पर मिले हुए थे फिर हम ने उन्हें अलग किया‘‘ – (क़ुरआन: सुर: 21, आयत 30 )

– इस क़ुरआनी वचन और ‘‘बिग बैंग‘‘ के बीच आश्चर्यजनक समानता से इनकार सम्भव ही नहीं! यह कैसे सम्भव है कि एक किताब जो आज से 1400 वर्ष पहले अरब के रेगिस्तानों में व्यक्त हुई अपने अन्दर ऐसे असाधारण वैज्ञानिक यथार्थ समाए हुए है?
* * * * * *

# आकाशगंगा की उत्पत्ति से पूर्व प्रारम्भिक वायुगत रसायन:
– वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि सृष्टि में आकाशगंगाओं के निर्माण से पहले भी सृष्टि का सारा द्रव्य एक प्रारम्भिक वायुगत रसायन (Gas) की अवस्था में था,
– संक्षिप्त यह कि आकाशगंगा निर्माण से पहले वायुगत रसायन अथवा व्यापक बादलों के रूप में मौजूद था जिसे आकाशगंगा के रूप में नीचे आना था. सृष्टि के इस प्रारम्भिक द्रव्य के विश्लेषण में गैस से अधिक उपयुक्त शब्द ‘‘धुंआ‘‘ है।

*निम्नांकित आयतें क़ुरआन में सृष्टि की इस अवस्था को धुंआ शब्द से रेखांकित किया है।
♥ अल-कुरान: ‘‘फिर वे आसमान की ओर ध्यान आकर्षित हुए जो उस समय सिर्फ़ धुआं था उस (अल्लाह) ने आसमान और ज़मीन से कहा: अस्तित्व में आजाओ चाहे तुम चाहो या न चाहो‘‘ दोनों ने कहा: हम आ गये फ़र्मांबरदारों (आज्ञाकारी लोगों) की तरह‘‘ – (सूर: 41 , आयत 11)

– एक बार फिर, यह यथार्थ भी ‘‘बिग बैंग‘‘ के अनुकूल है जिसके बारे में हज़रत मुहम्मद मुस्तफा़ (स.अ.व.) की पैग़मबरी से पहले किसी को कुछ ज्ञान नहीं था (बिग बैंग दृष्टिकोण बीसवीं सदी यानी पैग़मबर काल के 1300 वर्ष बाद की पैदावार है )
– अगर इस युग में कोई भी इसका जानकार नहीं था तो फिर इस ज्ञान का स्रोत क्या हो सकता है?
* * * * * *

# धरती की अवस्था: गोल या चपटी ?
– प्राराम्भिक ज़मानों में लोग विश्वस्त थे कि ज़मीन चपटी है, यही कारण था कि सदियों तक मनुष्य केवल इसलिए सुदूर यात्रा करने से भयाक्रांति करता रहा कि कहीं वह ज़मीन के किनारों से किसी नीची खाई में न गिर पडे़!
– सर फ्रांस डेरिक वह पहला व्यक्ति था जिसने 1597 ई0 में धरती के गिर्द ( समुद्र मार्ग से ) चक्कर लगाया और व्यवहारिक रूप से यह सिद्ध किया कि ज़मीन गोल (वृत्ताकार ) है। यह बिंदु दिमाग़ में रखते हुए ज़रा निम्नलिखित क़ुरआनी आयत पर विचार करें जो दिन और रात के अवागमन से सम्बंधित है:
♥ अल-कुरान: ‘‘क्या तुम देखते नहीं हो कि अल्लाह रात को दिन में पिरोता हुआ ले आता है और दिन को रात में..‘‘ – (सूर: 31 आयत 29 )

– यहां स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि अल्लाह तआला ने क्रमवार रात के दिन में ढलने और दिन के रात में ढलने (परिवर्तित होने )की चर्चा की है ,
– यह केवल तभी सम्भव हो सकता है जब धरती की संरचना गोल (वृत्ताकार ) हो।
– अगर धरती चपटी होती तो दिन का रात में या रात का दिन में बदलना बिल्कुल अचानक होता ।

*निम्न में एक और आयत देखिये जिसमें धरती के गोल बनावट की ओर इशारा किया गया है:
♥ अल-कुरान: “उसने आसमानों और ज़मीन को बरहक़ (यथार्थ रूप से )उत्पन्न किया है , वही दिन पर रात और रात पर दिन को लपेटता है।,. – (सूर:39 आयत 5)

– यहां प्रयोग किये गये अरबी शब्द ‘‘कव्वर‘‘ का अर्थ है किसी एक वस्तु को दूसरे पर लपेटना या Overlap करना या (एक वस्तु को दूसरी वस्तु पर) चक्कर देकर ( तार की तरह ) बांधना।
– दिन और रात को एक दूसरे पर लपेटना या एक दूसरे पर चक्कर देना तभी सम्भव है जब ज़मीन की बनावट गोल हो ।

– ज़मीन किसी गेंद की भांति बिलकुल ही गोल नहीं बल्कि नारंगी की तरह (Geo-Spherical) है यानि ध्रुव (Poles) पर से थोडी सी चपटी है।

*निम्न आयत में ज़मीन के बनावट की व्याख्या यूं की गई हैः
♥ अल-कुरान: ‘‘और फिर ज़मीन को उसने बिछाया..‘‘ – (अल क़ुरआन: सूर 79 आयत 30)

– यहां अरबी शब्द ‘‘दहाहा‘‘ प्रयुक्त है, जिसका आशय ‘‘शुतुरमुर्ग़‘‘ के अंडे के रूप, में धरती की वृत्ताकार बनावट की उपमा ही हो सकता है।
– इस प्रकार यह माणित हुआ कि पवित्र क़ुरआन में ज़मीन के बनावट की सटीक परिभाषा बता दी गई है,
– यद्यपि पवित्र कुरआन के अवतरण काल में आम विचार यही था कि ज़मीन चपटी है।
* * * * * *

# चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है:
प्राचीन संस्कृतियों में यह माना जाता था कि चांद अपना प्रकाश स्वयं व्यक्त करता है। विज्ञान ने हमें बताया कि चांद का प्रकाश प्रतिबिंबित प्रकाश है फिर भी यह वास्तविकता आज से चौदह सौ वर्ष पहले पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में बता दी गई है।

♥ अल-कुरान: “बड़ा पवित्र है वह जिसने आसमान में बुर्ज ( दुर्ग ) बनाए और उसमें एक चिराग़ और चमकता हुआ चांद आलोकित किया । – (सूर: 25; आयत 61)

*पवित्र क़ुरआन में सूरज के लिये अरबी शब्द ‘‘शम्स‘‘ प्रयुक्त हुआ है। अलबत्ता सूरज को ‘सिराज‘ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है मशाल (Torch) जबकि अन्य अवसरों पर उसे ‘वहाज‘ अर्थात् जलता हुआ चिराग या प्रज्वलित दीपक कहा गया है। इसका अर्थ ‘‘प्रदीप्त‘ तेज और महानता‘‘ है।
– सूरज के लिये उपरोक्त तीनों स्पष्टीकरण उपयुक्त हैं क्योंकि उसके अंदर प्रज्वलन Combustion का ज़बरदस्त कर्म निरंतर जारी रहने के कारण तीव्र ऊष्मा और रौशनी निकलती रहती है।

*चांद के लिये पवित्र क़ुरआन में अरबी शब्द “क़मर” प्रयुक्त किया गया है और इसे बतौर‘ मुनीर प्रकाशमान बताया गया है ऐसा शरीर जो ‘नूर‘ (ज्योति) प्रदान करता हो। – अर्थात, प्रतिबिंबित रौशनी देता हो।
– एक बार पुन: पवित्र क़ुरआन द्वारा चांद के बारे में बताए गये तथ्य पर नज़र डालते हैं, क्योंकि निसंदेह चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है बल्कि वह सूरज के प्रकाश से प्रतिबिंबित होता है और हमें जलता हुआ दिखाई देता है।
– पवित्र क़ुरआन में एक बार भी चांद के लिये‘, सिराज वहाज, या दीपक जैसें शब्दों का उपयोग नहीं हुआ है और न ही सूरज को , नूर या मुनीर‘,, कहा गया है।
– इस से स्पष्ट होता है कि पवित्र क़ुरआन में सूरज और चांद की रोशनी के बीच बहुत स्पष्ट अंतर रखा गया है, जो पवित्र क़ुरआन की आयत के अध्ययन से साफ़ समझ में आता है।

*निम्नलिखित आयात में सूरज और चांद की रोशनी के बीच अंतर इस तरह स्पष्ट किया गया है:
♥ अल-कुरान: “वही है जिस ने सूरज को उजालेदार बनाया और चांद को चमक दी ।,, – (सूरः 10,, आयत-5)
♥ अल-कुरान: “क्या देखते नहीं हो कि अल्लाह ने किस प्रकार सात आसमान एक के ऊपर एक बनाए और उनमें चांद को नूर ( ज्योति ) और सूरज को चिराग़ (दीपक) बनाया । – (सूर:71 आयत 15 से 16 )

– इन पवित्र आयतों के अध्य्यन से प्रमाणित होता है कि महान पवित्र क़ुरआन और आधुनिक विज्ञान में धूप और चाँदनी की वास्तविकता के बारे में सम्पूर्ण सहमति है ।
* * * * * *

# सूरज घूमता है:
– एक लम्बी अवधि तक यूरोपीय दार्शिनिकों और वैज्ञानिकों का विश्वास रहा है कि धरती सृष्टि के केंद्र में चुप खड़ी है और सूरज सहित सृष्टि की प्रत्येक वस्तु उसकी परिक्रमा कर रही है। इसे धरती का केंद्रीय दृष्टिकोण‘ भूकेन्द्रीय सिद्धांत Geo-Centric-Theory भी कहा जाता है जो बतलीमूस- काल, दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर 16 वीं सदी ई. तक सर्वमान्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण रहा है,..

– पुन: 1512 ई0 में निकोलस कॉपरनिकस ने ‘‘अंतरिक्ष में ग्रहों की गति के सौर-..केंद्रित ग्रह- गति सिद्धांत Heliocentric Theory of Planetary Motion का प्रतिपादन किया जिसमें कहा गया था कि सूरज सौरमण्डल के केंद्र में यथावत है और अन्य तमाम ग्रह उसकी परिक्रमा कर रहे है:
– 1609 ई0 में एक जर्मन वैज्ञानिक जोहानस कैप्लर ने Astronomia Nova (खगोलीय तंत्र) नामक एक किताब प्रकाशित कराई।
– जिसमें विद्वान लेखक ने, न केवल यह सिद्ध किया कि सौरमण्डल के ग्रह दीर्ध वृत्तीय: Elliptical अण्डाकार धुरी पर सूरज की परिक्रमा करते हैं बल्कि उसमें यह प्रमाणिकता भी अविष्कृत है कि सारे ग्रह अपनी धुरियों (Axis) पर अस्थाई गति से घूमते हैं।
– इस अविष्कृत ज्ञान के आधार पर यूरोपीय वैज्ञानिकों के लिये सौरमण्डल की अनेक व्यवस्थाओं की सटीक व्याख्या करना सम्भव हो गया।

– रात और दिन के परिवर्तन की निरंतरता के इन अविष्कारों के बाद यह समझा जाने लगा कि सूरज यथावत है और धरती की तरह अपनी धुरी पर परिक्रमा नहीं करता। मुझे याद है कि मेरे स्कूल के दिनों में भूगोल की कई किताबों में इसी ग़लतफ़हमी का प्रचार किया गया था। अब ज़रा पवित्र क़ुरआन की निम्न आयतों को ध्यान से देखें:

♥ अल-कुरान: “और वह अल्लाह ही है, जिसने रात और दिन की रचना की और सूर्य और चांद को उत्पन्न किया, सब एक. एक फ़लक (आकाश) में तैर रहे हैं।“ – (सूर: 21 आयत 33 )

*ध्यान दीजिए कि उपरोक्त आयत में अरबी शब्द ‘‘यस्बहून‘‘ प्रयुक्त किया गया है जो सब्हा से उत्पन्न है जिसके साथ एक ऐसी हरकत की वैचारिक संकल्पना जुडी़ हुई है जो किसी शरीर की सक्रियता से उत्पन्न हुई हो।
– अगर आप धरती पर किसी व्यक्ति के लिये इस शब्द का उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह लुढक रहा है बल्कि इसका आशय होगा कि अमुक व्यक्ति दौड़ रहा है अथवा चल रहा है
– अगर यह शब्द पानी में किसी व्यक्ति के लिये उपयोग किया जाए तो इसका अर्थ यह नहीं होगा कि वह पानी पर तैर रहा है बल्कि इसका अर्थ होगा कि, अमुक व्यक्ति पानी में तैराकी (swimming) कर रहा है।

*इस प्रकार जब इस शब्द ’यसबह’ का किसी आकाशीय शरीर (नक्षत्र) सूर्य के लिये उपयोग करेंगे तो इसका अर्थ केवल यही नहीं होगा कि वह शरीर अंतरिक्ष में गतिशील है बल्कि इसका वास्तविक अर्थ कोई ऐसा साकार शरीर होगा जो अंतरिक्ष में गति करने के साथ साथ अपने धु्रव पर भी घूम रहा हो।
– आज स्कूली पाठयक्रमों में अपनी जानकारी ठीक करते हुए यह वास्तविक्ता शामिल कर ली गई है कि सूर्य की ध्रुवीकृत परिक्रमा की जांच किसी ऐसे यंत्र से की जानी चाहिये जो सूर्य की परछाई को फैला कर दिखा सके इसी प्रकार अंधेपन के ख़तरे से दो चार हुए बिना सूर्य की परछाई का शोध सम्भव नहीं।
– यह देखा गया है कि सूर्य के धरातल पर धब्बे हैं जो अपना एक चक्कर लगभग 25 दिन में पूरा कर लेते है । मतलब यह की सूर्य को अपने ध्रुव के चारों ओर एक चक्कर पूरा करने में लगभग 25 दिन लग जाते है। इसके अलावा सूर्य अपनी कुल गति 240 किलो मीटर प्रति सेकेण्ड की रफ़तार से अंतिरक्ष की यात्रा कर रहा है। इस प्रकार सूरज समान गति से हमारे देशज मार्ग आकाशगंगा की परिक्रमा बीस करोड़ वर्ष में पूरी करता है।

♥ अल-कुरान: “न सूर्य के बस में है कि वह चांद को जाकर पकड़े और न ‘रात’, ‘दिन पर वर्चस्व ले जा सकती है , यह सब एक एक आकाश में तैर रहे हैं। – (सूर: 36 आयत 40 ) – @[156344474474186:]

– यह पवित्र आयत एक ऐसे आधारभूत यथार्थ की तरफ़ इशारा करती है जिसे आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान ने बीती सदियों में खोज निकाला है यानि चांद और सूरज की मौलिक ‘‘परिक्रमा Orbits का अस्तित्व अंतिरक्ष में सक्रिय यात्रा करते रहना है।

‘वह निश्चित स्थल Fixed Place जिसकी ओर सूरज अपनी सम्पूर्ण मण्डलीय व्यवस्था सहित यात्रा पर है। आधुनिक अंतरिक्ष विज्ञान द्वारा सही-सही पहचान ली गई है।’

– इसे सौर ,कथा solar epics का नाम दिया गया है। पूरी सौर व्यवस्था वास्तव में अंतरिक्ष के उस स्थल की ओर गतिशील है जो हरक्यूलिस नामक ग्रह Elphalerie area में अवस्थित है और उसका वास्तविक स्थल हमें ज्ञात हो चुका है।

– चांद अपनी धुरी पर उतनी ही अवधि में अपना चक्कर पूरा करता जितने समय में वह धरती की एक परिक्रमा पूरी करता है। चांद को अपनी एक ध्रुवीय परिक्रमा पूरी करने में 29.5 दिन लग जाते हैं ।
– पवित्र क़ुरआन की आयत में वैज्ञानिक वास्तविकताओं की पुष्टि पर आश्चर्य किये बिना कोई चारा नहीं है। क्या हमारे विवेक में यह सवाल नहीं उठता कि आखिर ‘‘क़ुरआन में प्रस्तुत ज्ञान का स्रोत और ज्ञान का वास्तविक आधार क्या है?‘‘
* * * * * *

# सूरज बुझ जाएगा ?
– सूरज का प्रकाश एक रसायनिक क्रिया का मुहताज है जो उसके धरातल पर विगत पांच अरब वर्षों से जारी है भविष्य में किसी अवसर पर यह कृत रूक जाएगा और तब सूरज पूर्णतया बुझ जाएगा जिसके कारण धरती पर जीवन की समाप्ति हो जाए पवित्र क़ुरआन सूरज के अस्तित्व की पुष्टि इस प्रकार करता है:
♥ अल-कुरान: ‘‘और सूरज वह अपने ठिकाने की तरफ़ चला जा रहा है यह ब्रहम्ज्ञान के स्रोत महाज्ञानी का बांधा हुआ गणित है‘‘ – (सुर: 36 ; आयत 38 )

*विशेष: इसी प्रकार की बातें पवित्र क़ुरआन के सूर: 13 आयत 2,,सूर: 35, आयत 13, सूर: 39 आयत 5 एवं 21 में भी बताई गई हैं:
– यहां अरबी शब्द‘‘ मुस्तकिर: ठिकाना का प्रयुक्त हुआ है जिस का अर्थ है पूर्व से संस्थापित ‘समय‘ या ‘स्थल‘ यानी इस आयत में अल्लाह तआला कहता है कि सूरज पूर्वतः निश्चित स्थ्ल की ओर जा रहा है ऐसा पूर्व निश्चित समय के अनुसार ही करेगा अर्थात् यह कि सूरज भी समाप्त हो जाएगा या बुझ जाएगा।
* * * * * *

# सृष्टि का फैलाव:
1925 ई0 में अमरीका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक एडोन हबल Adone Hubble ने इस संदर्भ में एक प्रामाणिक खोज उपलब्ध कराया था कि सभी आकाशगंगा एक दूसरे से दूर हट रहे हैं अर्थात सृष्टि फैल रही है सृष्टि व्यापक हो रही है।
– यह एक वैज्ञानिक यथार्थ है इस बारे में पवित्र क़ुरआन में सृष्टि की संरचना के संदर्भ से अल्लाह फ़रमाता है:
♥ अल-कुरान: ‘‘आसमान को हम ने अपने ज़ोर से बनाया है और हम इसकी कुदरत: प्रभुत्व रखे है (या इसे फैलाव दे रहे हैं) – (सूर: 51 आयत 47 )

*अरबी शब्द वासिऊन का सही अनुवाद इसे फैला रहे हैं बनता है तो यह आयत सृष्टि के ऐसे निर्माण की ओर संकेत करती है जिसका फैलाव निरंतर जारी है ।
– वर्तमान युग का प्रसिद्ध अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्टीफ़न हॉकिगं अपने शोधपत्र: समय का संक्षिप्त इतिहास: A Brief History of Time में लिखता हैः
यह ‘‘खोज ! कि सृष्टि फैल रही है बीसवी सदी के महान बौद्धिक और चिंतन क्रांतियों में से एक है,,
– अब ध्यान दीजिये कि पवित्र क़ुरआन नें सृष्टि के फैलाव की कथा उसी समय बता दी थी जब मनुष्य ने दूरबीन तक का अविष्कार नहीं किया था।
– इसके बावजूद संदिग्ध विवेक रखने वाले कुछ लोग, यह कह सकते हैं कि पवित्र क़ुरआन में आंतरिक्ष यथार्थ का मौजूद होना आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि अरबवासी इस ज्ञान के प्रारम्भिक विशेषज्ञ थे।

*अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के प्राधिकरण की सीमा तक तो उनका विचार ठीक है लेकिन इस बिंदु को समझने में वे नाकाम हो चुके हैं कि अंतरिक्ष विज्ञान में अरबों के उत्थान से भी सदियों पहले ही पवित्र क़ुरआन का अवतरण हो चुका था इसके अतिरिक्त ऊपर वर्णित बहुत से वैज्ञानिक यथार्थ जैसे बिग बैंग से सृष्टि के प्रारम्भन आदि की जानकारी से तो अरब उस समय भी अनभिज्ञ ही थे जब वह विज्ञान और तकनीक के विकास और उन्नति की सर्वोत्तम ऊंचाई पर थे ,..
– अत: पवित्र क़ुरआन में वर्णित वैज्ञानिक यथार्थ को अरबवासियों की विशेषज्ञता नहीं मान जा सकता।
– दरअस्ल इसके प्रतिकूल सच्चाई यह है कि अरबों ने अंतरिक्ष विज्ञान में इसलिये उन्नति की क्योंकि अंतरिक्ष और सृष्टि के निर्माण विषयक जानकारियां पवित्र क़ुरआन में आसानी से उप्लब्ध हो गए थे। इस विषय को पवित्र क़ुरआन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया गया है।

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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पवित्र क़ुरआन और परमाणु: (Holy Quran & Atoms) https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-atoms/ https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-atoms/#respond Mon, 04 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-atoms/ Holy Quran Atoms*तमाम संस्कृतियों में मानवीय शक्ति वचन और रचनात्मक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी (काव्य रचना) सर्वोरि है। विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़माना गु़ज़रा है […]

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*तमाम संस्कृतियों में मानवीय शक्ति वचन और रचनात्मक क्षमताओं की अभिव्यक्ति के प्रमुख साधनों में साहित्य और शायरी (काव्य रचना) सर्वोरि है। विश्व इतिहास में ऐसा भी ज़माना गु़ज़रा है जब समाज में साहित्य और काव्य को वही स्थान प्राप्त था जो आज विज्ञान और तकनीक को प्राप्त है।

– गै़र-मुस्लिम भाषा-वैज्ञानिकों की सहमति है कि अरबी साहित्य का श्रेष्ठ सर्वोत्तम नमूना पवित्र क़ुरआन है यानी इस ज़मीन पर अरबी सहित्य का सर्वोत्कृष्ठ उदाहरण क़ुरआन -ए पाक ही है। मानव जाति को पवित्र क़ुरआन की चुनौति है कि इन क़ुरआनी आयतों (वाक्यों ) के समान कुछ बनाकर दिखाए उसकी चुनौती है :

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और अगर तुम्हें इस मामलेमें संदेह हो कि यह किताब जो हम ने अपने बंदों पर उतारी है, यह हमारी है या नहीं तो इसकी तरह एक ही सूरत (क़ुरआनी आयत) बना लाओ, अपने सारे साथियों को बुला लो एक अल्लाह को छोड़ कर शेष जिस जिस की चाहो सहायता ले लो, अगर तुम सच्चे हो तो यह काम कर दिखाओ, लेकिन अगर तुमने ऐसा नहीं किया और यकी़नन कभी नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन बनेंगे इंसान और पत्थर। जो तैयार की गई है मुनकरीन हक़ (सत्य को नकारने वालों)के लिये।” – (सूर: 2, आयत 23 से 24 ) – @[156344474474186:]

– पवित्र क़ुरआन स्पष्ट शब्दों में सम्पूर्ण मानवजाति को चुनौती दे रहा है कि वह ऐसी ही एक सूरः बना कर तो दिखाए जैसी कि क़ुरआन में कई स्थानों पर दर्ज है । सिर्फ एक ही ऐसी सुरः बनाने की चुनौति जो अपने भाषा सौन्दर्य मृदुभषिता, अर्थ की व्यापकता औ चिंतन की गहराई में पवित्र क़ुरआन की बराबरी कर सके, आज तक पूरी नहीं की जा सकी ।

– प्रसिद्ध भौतिकवादी दर्शनशास्त्री और नोबल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिक अल्बर्ट आइन्स्टाइन के अनुसार ‘‘धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है और धर्म के बिना विज्ञान अंधा है ‘‘इसलिये अब हम पवित्र क़ुरआन का अध्ययन करते हुए यह जानने का प्रयत्न करते हैं कि आधुनिक विज्ञान और पवित्र क़ुरआन में परस्पर अनुकूलता है या प्रतिकूलता ? ..

– यहां याद रखना ज़रूरी है कि पवित्र क़ुरआन कोई वैज्ञानिक किताब नहीं है बल्कि यह ‘‘निशानियों‘‘ (Signs) की, यानि आयात की किताब है। पवित्र क़ुरआन में छह हज़ार से अधिक ‘‘निशानियां‘‘ (आयतें / वाक्य) हैं, जिनमें एक हज़ार से अधिक वाक्य विशिष्ट रूप से विज्ञान एवं वैज्ञानिक विषयों पर बहस करती हैं । हम जानते हैं कि कई अवसरों पर विज्ञान‘‘ यू टर्न ‘‘लेता है यानि विगत – विचार के प्रतिकूल बात कहने लगता है ।

– एक ऐसी किताब जिसके अल्लाह द्वारा अवतरित होने का दावा किया जा रहा है उसी आधार पर एक चमत्कारी जादूगर की दावेदारी भी है तो उसकी पुष्टि verification भी होनी चाहिये। मुसलमानों का विश्वास है कि पवित्र क़ुरआन अल्लाह द्वारा उतारी हुई और सच्ची किताब है जो अपने आप में एक चमत्कार है, और जिसे समस्त मानव जाति के कल्याण के लिये उतारा गया है। आइये हम इस आस्था और विश्वास की प्रमाणिकता का बौद्धिक विश्लेषण करते हैं ।

# परमाणु भी विभाजित किये जा सकते हैं:

*प्राचीन काल में परमाणुवाद:
Atom-ism के दृष्टिकोण शीर्षक से एक सिद्ध दृष्टिकोण को व्यापक धरातल पर स्वीकार किया जाता था यह दृष्टिकोण आज से 2300 वर्ष पहले यूनानी दर्शनशास्न्नी विमाक्रातिस Vimacratis ने पेश किया था |
– विमाक्रातिस और उसके वैचारिक अनुयायी की संकल्पना थी कि, द्रव्य की न्यूनतम इकाई परमाणु है प्राचीन अरब वासी भी इसी संकल्पना के समर्थक थे।
– अरबी शब्द, ‘‘ज़र्रा: अणु का मतलब वही था जिसे यूनानी ‘ऐटम‘(Atoms) कहते थे।
– निकटतम इतिहास में विज्ञान ने यह खोज की है कि “परमाणु” को भी विभाजित करना सम्भव है,
– परमाणु के विभाजन योग्य होने की कल्पना भी बीसवीं सदी की वैज्ञानिक सक्रियता में शामिल है।

*चौदह शताब्दि पहले अरबों के लिये भी यह कल्पना असाधारण होती।
– उनके समक्ष ज़र्रा अथवा ‘अणु‘ की ऐसी सीमा थी जिसके आगे और विभाजन सम्भव नहीं था लेकिन पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयत में अल्लाह ने परमाणु सीमा को अंतिम सीमा मानने से इन्कार कर दिया है।

♥ अल-क़ुरआन: “मुनकरीन (सत्य के विरोधी) कहते हैं: क्या बात है कि क़यामत हम पर नहीं आ रही हैं?
हे प्रेषित कहो इनसे ! क़सम है मेरे अंतर्यामी परवरदिगार (परमात्मा) की वह तुम पर आकर रहेगी उस से अणु से बराबर कोई वस्तु न तो आसमानों में छुपी हुई है न धरती पर: न अणु से बड़ी और न उस से छोटी ! यह सबकुछ एक सदृश दफ़तर में दर्ज है। – (सूर: 34 आयत 3)

*विशेष: इस प्रकार का संदेश पवित्र क़ुरआन की सूर: 10 आयत 61 में भी वर्णित है।
– यह पवित्र आयत हमें अल्लाह तआला के आलिमुल गै़ब अंतर्यामी होने यानि प्रत्येक अदृश्य और सदृश्य वस्तु के संदर्भ से महाज्ञानी होने के बारे में बताती है फिर यह आगे बढ़ती है और कहती है कि –
– अल्लाह तआला हर चीज़ का ज्ञान रखते हैं चाहे वह परमाणु से छोटी या बड़ी वस्तु ही क्यों न हो।
– तो प्रमाणित हुआ कि यह पवित्र आयत स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है कि, परमाणु से संक्षिप्त वस्तु भी अस्तित्व में है और यह एक ऐसा यथार्थ है जिसे अभी हाल ही में आधुनिक वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है।

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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नर और मादा पौधे (Holy-Quran & Botany) …. https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-botany/ https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-botany/#respond Sun, 03 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/holy-quran-botany/ Holy Quran Botany*पवित्र क़ुरआन और वनस्पति विज्ञान: – प्राचीन काल के मानवों को यह ज्ञान नहीं था कि पौधों में भी जीव जन्तुओं की तरह नर (पुरूष) मादा (महिला) तत्व होते हैं। […]

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*पवित्र क़ुरआन और वनस्पति विज्ञान:
– प्राचीन काल के मानवों को यह ज्ञान नहीं था कि पौधों में भी जीव जन्तुओं की तरह नर (पुरूष) मादा (महिला) तत्व होते हैं। अलबत्ता आधुनिक वनस्पति विज्ञान यह बताता है कि पौधे की प्रत्येक प्रजाति में नर एवं मादा लिंग होते हैं। यहां तक कि वह पौधे जो उभय लिंगी (unisexual) होते हैं उनमें भी नर और मादा की विशिष्टताएं शामिल होती हैं ।

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और ऊपर से पानी बरसाया और फिर उसके द्वारा अलग-अलग प्रकार की पैदावार (जोड़ा ) निकाला” – (सूर 20: आयत 53)

# फलों में नर और मादा का अंतर:
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘उसी ने हर प्रकार के फलों के जोड़े पैदा किये हैं।” – (सूर: 20 ; आयत-53)

– उच्च स्तरीय पौधों (Superior Plants) मे नस्लीय उत्पत्ति की आखिरी पैदावार और उनके फल (Fruits) होते हैं।
– फल से पहले फूल बनते हैं जिसमें नर और मादा, अंगों (organs) यानि पुंकेसर (Stamens) और डिम्ब (Ovules) होते है
– जब कोई pollen ज़रदाना पराग यानि प्रजनक वीर्य कोंपलों से होता हुआ फूल की अवस्था तक पहुंचता है तभी वह फल में परिवर्तित होने के योग्य होता है यहां तक कि फल पक जाए और नयी नस्ल को जन्म देने वाले बीज बनने की अवस्था प्राप्त कर ले ।
– इसलिये सारे फल इस बात का प्रमाण हैं कि पौधों में भी नर और मादा जीव होते हैं ।

*फूल की नस्ल भी वनस्पति है। वनस्पति भी एक जीव है और इस सच्चाई को पवित्र क़ुरआन बहुत पहले बयान कर चुका है:
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और हर वस्तु के हम ने जोडे़ बनाए हैं शायद कि तुम इससे सबक़ लो।” – (सूर: 51 ; आयत-49) – @[156344474474186:]

– पौधों के कुछ प्रकार अनुत्पादक (Non-Fertilized) फूलों से भी फल बन सकते हैं जिन्हें (Parthenocarpic Fruit) पौरूष-विहीन फल कहते हैं।
– ऐसे फलों मे केले, अनन्नास, इंजीर, नारंगी, और अंगूर आदि की कई नस्लें हैं। यद्यपि उन पौधों में प्रजनन-चरित्र (sexual characterstics) मौजूद होता है।

# प्रत्येक वस्तु को जोडों में बनाया गया है:
– इस पवित्र आयत में प्रत्येक ‘वनस्पति‘ के जोडों में बनाए जाने की प्रमाणिकता बयान की गई है। मानवीय जीवों पाश्विक जीवों वानस्पतेय जीवों और फलों के अलावा बहुत सम्भव है कि यह पवित्र आयत उस बिजली की ओर भी संकेत कर रही हो जिस में नकारात्मक ऊर्जा (Negative Charge) वाले इलेक्ट्रॉनों और सकारात्मक ऊर्जा (Positive Charge) वाले केंद्रों पर आधारित होते हैं इनके अलावा भी अन्य जोड़े हो सकते हैं।

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘पाक है वह ज़ात (अल्लाह ) जिसने सारे प्राणियों के जोडे़ पैदा किये चाहे वह धरती के वनस्पतियों में से हो या स्वयं उनकी अपने जैविकीय नस्ल में से या उन वस्तुओं में से जिन्हें यह जानते तक नहीं।” – (सूर: 36 ; आयत-36)

– यहां अल्लाह फ़रमाता है कि हर चीज़ जोडों के रूप में पैदा की गई है जिनमें ऐसी वस्तुएं भी शामिल हैं जिन्हें आज का मानव नहीं जानता और हो सकता है कि आने वाले कल में उसकी खोज कर ले।

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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पशुओं और परिंदों का समाजी जीवन … https://ummat-e-nabi.com/social-life-of-birds-animals/ https://ummat-e-nabi.com/social-life-of-birds-animals/#respond Sat, 02 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/social-life-of-birds-animals/ Social Life of Animals and Birds*पवित्र क़ुरआन और जीव विज्ञान (Holy Quran & Biology) ♥ अल-क़ुरआन: “धरती पर चलने वाले किसी पशु और हवा में परों से उड़ने वाले किसी परिंदे को देख लो यह […]

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*पवित्र क़ुरआन और जीव विज्ञान (Holy Quran & Biology)

♥ अल-क़ुरआन: “धरती पर चलने वाले किसी पशु और हवा में परों से उड़ने वाले किसी परिंदे को देख लो यह सब तुम्हारे ही जैसी नस्लें हैं और हम ने उनका भाग्य लिखने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैः
फिर यह सब अपने रब की ओर समेटे जाते हैं।” – (सूर: 6 ; आयत-38 )

*शोध से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि पशु और परिंदे भी समुदायों (Communities) के रूप में रहते हैं। अर्थात उनमें भी एक सांगठनिक आचार व्यवस्था होती है। वह मिल जुल कर रहते और काम भी करते हैं।

# परिन्दों की उड़ान:
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘क्या उन लोगों ने कभी परिन्दों को नहीं देखा कि आकाश मण्डल में किस प्रकार सुरिक्षत रहते हैं अल्लाह के सिवा किसने उनको थाम रखा है? इसमें बहुत सी निशनियां हैं उन लोगों के लिये जो ईमान लाते है” – (सूर:16 ; आयत-79) – @[156344474474186:]

एक और आयत में परिन्दों पर कुछ इस अंदाज़ से बात की गई है:
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘यह लोग अपने ऊपर उड़ने वाले परिन्दों को पर फैलाते और सुकेड़ते नहीं देखते ? रहमान् के सिवा कोई नहीं जो उन्हें थामे हुए हो वही प्रत्येक वस्तु का निगहबान है” – (सूरह:79 ; आयत-19)

– अरबी शब्द ‘अमसक‘ का ‘शाब्दिक अर्थ‘ है, किसी के हाथ में हाथ देना, रोकना, थामना या किसी की कमर पकड़ लेना।
उपर्युक्त आयात में युमसिकुहुन्न‘ की अभिव्यक्ति है कि अल्लाह तआला अपनी प्रकृति और अपनी शक्ति से परिन्दों को हवा में थामे रखता है।
– इन पवित्र रब्बानी आयतों में इस सत्य पर जो़र दिया गया है कि परिन्दों की कार्य क्षमता पूर्णतया उन विधानों पर निर्भर है जिसकी रचना अल्लाह तआला ने की और जिन्हें हम प्राकृतिक नियमों के नाम से जानते हैं।

*आधुनिक विज्ञान से यह भी प्रमाणित हो चुका है कि कुछ परिन्दों में उड़ान की बेमिसाल और दोषमुक्त क्षमता का सम्बंध उस व्यापक और संगठित ‘‘योजनाबंदी‘‘(programming) से है जिसमें परिन्दों के दैहिक कार्य शामिल हैं। जैसे हज़ारों मील दूर तक स्थानान्तरण (transfer) करने वाले परिन्दों की प्रजनन प्रक्रिया (Genetic Codes) में उनकी यात्रा का सारा विवरण मौजूद है जो उन परिन्दों को उड़ान के योग्य बनाती है और यह कि वह अल्प आयु में भी लम्बी यात्रा के किसी अनुभव के बिना और किसी शिक्षक या रहनुमा के बिना ही हज़ारों मील की यात्रा तय कर लेते हैं और अन्जान रास्तों से उड़ान करते चले जाते हैं बात यात्रा की एक तरफ़ा समाप्ति पर ही ख़त्म नहीं होती बल्कि वे सब परिन्दे एक नियत तिथि और समय पर अपने अस्थाई घर से उड़ान भरते हैं और हज़ारों मील वापसी की यात्रा कर के एक बार फिर अपने घोंसलों तक बिल्कुल ठीक-ठीक जा पहुंचते हैं।

*प्रोफेसर हॅम्बर्गर ने अपनी किताब “पावर एण्ड फ़्रीजिलिटी” में ‘मटन बर्ड’ नामक एक परिन्दे का उदाहरण दिया है जो प्रशान्त महासागर के इलाक़ों में पाया जाता है स्थानान्तरण करने वाले ये पक्षी 24000 कि.मी. की दूरी 8 के आकार में अपनी परिक्रमा से पूरी करते हैं ये परिन्दे अपनी यात्रा हर महीने में पूरी करते है और प्रस्थान बिंदु तक अधिक से अधिक एक सप्ताह विलम्ब से वापिस पहुंच जाते हैं।
– ऐसी किसी यान्ना के लिये बहुत ही जटिल जानकारी का होना अनियार्य है जो उन परिन्दों की विवेक कोशिकाओं में सुरिक्षत होनी चाहिए ।
– यानी एक नीतीबद्धकार्यक्रम परिन्दे के मस्तिष्क में और उसे पूरा करने की शक्ति शरीर में उप्लब्ध होती है। अगर परिन्दे में कोई प्रोग्राम है तो क्या इससे यह ज्ञान नहीं मिलता कि इसे आकार देने वाला कोई प्रोग्रामर भी यक़ीनन है?
* * * * *

# शहद की मक्खी और उसकी योग्यता (Honeybee and her Ability):
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘और देखो तुम्हारे रब ने मधुमक्खी पर यह बात ‘‘वह्यः अल्लाह का आदेश‘‘ कर दी कि पहाड़ों में और वृक्षों और छप्परों पर चढ़ाई हुई लताओं में, अपने छत्ते बना और हर प्रकार के फलों का रस चूस और अपने रब द्वारा ‘‘हमवार: तैयार‘ राहों पर चलती रह।
उस मक्खी के अंदर से रंग बिरंगा एक शर्बत निकलता है जिस में ‘शिफ़ा (कल्याण) है लोगों के लिए यक़ीनन उसमें भी एक निशानी है उन लोगों के लिये जो विचार चिंतन करते है।‘‘ – (सूर:16 आयत: 68, 69)

* वॉनफ़र्श ने मधुमक्खियों की कार्य विधि और उनमें संपर्क व संप्रेषण (Communication) के शोध पर 1973 ई0 का नोबुल पुरस्कार प्राप्त किया है।
– यदि किसी मधुमक्खी को जब कोई नया बाग़ या फूल दिखाई देता है तो वह अपने छत्ते में वापिस जाती है और अपने संगठन की अन्य सभी मधुमक्खियों को उस स्थल की दिशा और वहां पहुंचाने वाले मार्ग के विस्तृत नक्शे से आगाह करती है।
– मधुमक्खी संदेशा पहुंचाने या संप्रेषण का यह काम एक विशेष प्रकार की शारिरिक गतिविधि से लेती है जिन्हें मधुमक्खी नृत्य (Bee Dance) कहा जाता है।
– जा़हिर है कि यह कोई साधारण नृत्य नहीं होता बल्कि इसका उद्देश्य मधु की कामगार मक्खियों (Worker Bees) को यह समझाना होता है कि फल किस दिशा में हैं और उस स्थल तक पहुंचने के लिये उन्हें किस तरह की उड़ान भरनी होगी यद्यपि मधुमक्खियों के बारे में सारी जानकारी हम ने आधुनिक तकनीकी छायांकन और दूसरे जटिल अनुसंधानों के माध्यम से ही प्राप्त की है लेकिन आगे देखिये कि उपरोक्त पवित्र् आयतों में पवित्र महाग्रंथ क़ुरआन ने कैसी स्पष्ट व्याख्या के साथ बताया है कि अल्लाह तआला ने मधुमक्खी को विशेष प्रकार की योग्यता, निपुणता और क्षमता प्रदान की है जिस से परिपूर्ण होकर वह अपने रब के बताए हुए रास्ते को तलाश कर लेती है और उस पर चल पड़ती है।
– एक और ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त पवित्र आयत में मधुमक्खी को मादा मकोड़े के रूप में रेखांकित किया गया है जो अपने भोजन की तलाश में निकलती है, अन्य शब्दों में सिपाही या कामगार मधुमक्खियां भी मादा होती हैं।

*एक दिलचस्प यथार्थ यह है कि शेक्सपियर के नाटक ‘हेनरी दि फ़ोर्थ, में कुछ पात्रमधुमक्खियों के बारे में बाते करते हुए कहते हैं कि शहद की मक्खियां सिपाही होती हैं और यह उनका राजा होता है।
– ज़ाहिर है कि शेक्सपियर के युग में लोगों का ज्ञान सीमित था वे समझते थे कि कामगार मक्खियां नर होती हैं और वे मधु के राजा मक्खी ‘नर‘ के प्रति उत्तरदायी होती हैं परंतु यह सच नहीं, शहद की कामगार मक्खियां मादा होती हैं और शहद की बादशाह मक्खी ‘राजा मक्खी‘ को नहीं ‘रानी मक्खी‘ को अपने कार्य निषपादन की रपट पेश करती हैं। अब इस बारे में क्या कहा जाए कि पिछले 300 वर्ष के दौरान होने वाले आधुनिक अनुसंधानों के आधार पर ही हम यह सब कुछ आपके सामने खोज कर ला पाए हैं ।
* * * * *

# मकड़ी का जाला (अस्थायी घर):
♥ अल-क़ुरआन: ‘‘जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़ कर दूसरे संरक्षक बना लिये हैं उनकी मिसाल मकड़ी जैसी है, जो अपना घर बनाती हैं और सब घरों में ज़्यादा ‘कमजो़र घर‘ मकड़ी का घर होता है । काश यह लोग ज्ञान रखते ।‘‘ – (सूरः 29 ; आयत-41)

– मकड़ी के जाले को नाज़ुक और कमज़ोर मकान के रूप में रेखांकित करने के अलावा, पवित्र क़ुरआन ने मकड़ी के घरेलू सम्बंधों के कमज़ोर नाज़ुक और अस्थाई होने पर जो़र दिया है।
– यह सहीं भी है क्योंके अधिकतर ऐसा होता है मकड़ी अपने, नर (male) को मार डालती है । यही उदाहरण ऐसे लोगों की कमज़ोरियों की ओर संकेत करते हुए भी दिया गया है जो दुनिया और आखि़रत (परलोक) में सुरक्षा व सफ़लता प्राप्ति के लिये अल्लाह को छोड़ कर दूसरों से आशा रखते हैं।
Social Life of Animals and Birds

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

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मधु (शहद) मानवजाति के लिये, शिफ़ा (रोग मुक्ति) https://ummat-e-nabi.com/quranmedical-science-honey/ https://ummat-e-nabi.com/quranmedical-science-honey/#respond Fri, 01 Jan 2016 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/quranmedical-science-honey/ QuranMedical Science honey*पवित्र क़ुरआन और चिकित्सा-विज्ञान (Holy Quran & Medical Science) .. *शहद की मक्खी कई प्रकार के फूलों और फलों का रस चूसती हैं और उसे अपने ही शरीर के अंदर […]

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*पवित्र क़ुरआन और चिकित्सा-विज्ञान (Holy Quran & Medical Science) ..

*शहद की मक्खी कई प्रकार के फूलों और फलों का रस चूसती हैं और उसे अपने ही शरीर के अंदर शहद में परिवर्तित करती हैं। इस शहद यानि मधु को वह अपने छत्ते के बने घरों (cells) में इकटठा करती हैं। आज से केवल कुछ सदी पहले ही मनुष्य को यह ज्ञात हुआ कि मधु वास्तव में मधुमक्खियों के पेट (belly) से निकलता है, किन्तु प्रस्तुत यथार्थ पवित्र क़ुरआन ने 1400 वर्ष पहले ही निम्न पवित्र आयत में बयान कर दी थीं:

♥ अल-क़ुरआन: ‘‘हर प्रकार के फलों का रस चूस, और अपने रब द्वारा तैयार किए हुए मार्ग पर चलती रहे। उस मक्खी के अंदर से एक रंग बिरंगा शरबत निकलता है जिसमें शिफा रोगमुक्ति है लोगों के लिये। यक़ीनन उसमें भी एक निशानी है उन लोगों के लिये जो चिंतन मनन करते हैं।”(सूर: 16, आयत 69)

– इसके अलावा हम(Science) ने हाल ही में यह खोज निकाला है कि मधु में शिफ़ा बख़्श ( रोगमुक्त करने वाली ) विशेषताएं पाई जाती हैं और यह मध्यम वर्गीय गंद त्याग (Mild Antiseptic) का काम भी करती है।
– दूसरे विश्व युद्व में रूसियों ने भी अपने घायल सैनिकों के घाव ढांपने के लिये मधु का उपयोग किया था।
– मधु की विशेषता है कि यह नमी को यथावत रखता है और कोशिकाओं cells पर घावों के निशान बाक़ी नहीं रहने देता है।
– मधु की ‘सघनता (density) के कारण कोई फफूंदी किटाणु न तो घाव में स्वयं विकसित होंगे और न ही घाव को बढ़ने देंगे ।

*सिस्टर किरॉल नामक के एक ईसाई राहिबा मठवासिनी (Nun) ने ब्रितानी चिकित्साल्यों में छाती और इल्जा़ईमर के रोगों में मुब्तला 22 चिकित्सा विहीन रोगियों का इलाज मधुमक्खी के छत्तों (Propolis) नामक द्रव्य से किया। यह द्रव्य मधुमक्खियां उत्पन्न करती हैं और उसे अपने छत्तों में किटाणुओं के विरूद्व सील बंद करने के लिये उपयोग में लाती हैं।

*यदि कोई व्यक्ति किसी पौधे से होने वाली एलर्जी से ग्रस्त हो जाए तो उसी पौधे से प्राप्त मधु उस व्यक्ति को दिया जा सकता है ताकि वह एलर्जी के विरूद्व रूकावट उत्पन्न करले। मधु विटामिन के़ और फ्रि़क्टोज़ (एक प्रकार की चीनी ) से भी परिपूर्ण होता है।

*पवित्र क़ुरआन में मधु , उसकी उत्पत्ति और विशेषताओं के बारे में जो ज्ञान दिया गया है उसे मानव समाज पवित्र क़ुरआन के अवतरण के सदियों बाद , अपने अनुसंधानों और प्रयोगों के आधार पर आज खोज सका है।

– Courtesy:
Taqwa Islamic School
Islamic Educational & Research Organization (IERO)

Honey Cure for Mankind

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Ilm Ki Ahmiyat: Part-15 https://ummat-e-nabi.com/ilm-ki-ahmiyat-part-15/ https://ummat-e-nabi.com/ilm-ki-ahmiyat-part-15/#respond Wed, 14 Jan 2015 18:30:00 +0000 https://ummat-e-nabi.com/ilm-ki-ahmiyat-part-15/ Ilm Ki Ahmiyat 15Ek Mashoor Aur Maruf Shakhsiyat “Ms. Carleton Fiorina” Jo Ke H.P. Ki CEO Thi, aur Iss Khatun Ne Ek Speech Di Thi Jo HP ki All Worldwide Company Managers Ki […]

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Ek Mashoor Aur Maruf Shakhsiyat “Ms. Carleton Fiorina” Jo Ke H.P. Ki CEO Thi, aur Iss Khatun Ne Ek Speech Di Thi Jo HP ki All Worldwide Company Managers Ki Meeting Thi, Usmey Yeh Khatun CEO Thi Uss Zamane me..
Yeh Speech Unhone di Hai 26 September 2001 Ko ,.. Yaani 11 Sept 2001 Ko World Trade Center Ka Wakiya Hua Tha Jispar Musalmano Par Ilzam Par Lagaye Ja Rahe They ,..

Unki Speech English Me Thi Hum Uska Tarjuma Yaha Batane Ki Koshish Karte Hai ,..
Yeh Speech Bohot Himmat Bohot Jasarat Ki Cheez Hai. Jaha Musalman Apne Aap Ko Musalman Kahne Se Yaha Sharma Rahe They Jo Wakiya Waha Hua, Ye Khatun Jo Isayi Hai Isne Twin Tower Ke Blast Ke 2 Haftey Baad Ek Takreer Me Dunya Se Ailan Kiya Aur Kaha Aur Usne Shuruwat Yun Ki –

✦ Tarjuma:

Ek Zamana Tha Ek Qoum Gujri Hai Jo Duniya me Sabse Behtareen Qoum Thi, (Abhi Usne Naam Nahi Liya)
» Yeh Wo Qoum Thi Jisne Ek Aisi Hukumat Qayam Ki Jo Ek Barre Aazam Se Dusre Barre Azam aur, Ek Pahadi Ilakey Se Dusre Ilakey Tak.,, Jangalaat aur Tamam Digar Zameenat Inke Paas Thi.

» Inke Hukumat Ke Andar Hazaro aur Lakho Log Rehte They Jo Mukhtalif Majaheeb ke Man’ne Wale They.

» Iski Zubaan Dunia ki Aalmi Zaban ban Gayi Thi aur Bohot Se Qoumo Ke Bich me Tallukat Qayam Karne Ki Vajah Ban Gayi Thi Iski Zubaan.

» Iske Andar Jo Fouje (Army) Thi Wo Kayi Mukhataleef Mumalikat se They,. aur Jo Hifazat Inhone di aisi Hifazat Duniya Me Is Se Pahle Nahi Dekhne Ko Mili Kahi.

» Aur Tijarat South America Se Lekar China tak aur Tamam Bich Ke Ilako Tak Faili Hui Thi.

» Yeh Jo Qoum Thi Jis Cheez Se Chalti Thi Wo Inke Khayalat They, Inke Inkheshafat They, Inke Inventions They.

» Inke Engineers ne Aisi Imaarate Banayi Jo Zameen Ke Kashish (Kuwwat) Ke Khilaf They. Yaani Badi Badi Imaarate Tameer Karte They.

» Inke Mathematicians Jo They Inhone Algebra aur Algorithm Jaise Subjects Ki Buniyad Daali Jo Aagey Chalkar Computer ke Banane aur Encryption Ki Technology Ijad Ho Saki.

» Inke Jo Tabib Doctors They Jo Insani Jismo ko Janchtey aur Naye-Naye Ilajat Nikaltey Unn Bimariyo aur Kamjoriyo Ke.

» Inke Jo Ilm-e-Falkiyat Rakhne Wale Log They Wo Gour Karte Zameen aur Aasman me aur Taaro ko Naam Detey aur Yahi Jarya Bani Aaj ke Dour Ke Satellite aur Digar Space Exploration Ka Jo Aaj Hum Inkashafat Kar Rahe Hai Uski Vajah Bani.

» Inke Jo Musaniff (Writers) They Wo Kitabe Likhtey They, Kahaniya Likhtey They, Kahaniya Jo Jasarat, Himmat, Taqat Quwwat Ki, Mohabbat Ki.

» Inke Jo Shayar they Wo Mohabbat ke Baarey me Shayriya Likhtey, Yeh Wo Zamana tha Jab Dusre Iske Kahne Ke Liye Bohot Jyada Khoufjada Hua Karte They.

» Jab Dusre Log Naye Inkashafat Ke Baarey me Sochana bhi Unke Liye Khouf Tha yeh Qoum Tou Soch Pe Jiya Karti Thi.

» Jab Duniya Iss Cheez Par Aa Chuki Thi Ke Pichley Qoumo Ka Ilm Mita Diya Jaye Iss Qoum ne Wo Ilm Baaki Rakha aur Logon Tak Pohchaya (Yaani Isayat ne Jab Soch Liya ke Jitna Pichla Greek Knowledge tha Wo Mita Diya Jaye tou Wo Ilm Musalmano ne Ba’Salamat Logon tak Pohchaya)

» Bohot Saari Cheeze Jo Aaj ki Hum Duniya me Dekh Rahe Hai, Istemal Kar Rahe Hai, Yeh Bohot Saari Cheeze Uss Qoum ki Deyn hai Jiske Baare me Mai Baat Kar Rahi Hu, Wo “Islamic World” Hai, Islami Qoum Hai, Musalman Hai,. Jisne 8 vi Sadi se Lekar, 16 vi Sadi tak Duniya Ko Mashal-e-Raah Dikhayi.

Aur Iske Andar Usmani Khalifa, aur Bagdad,. aur Shaam(Syriya) aur Kahera, Misr ki Libraries, Kutubkhane aur Acche Hukumraah Jaise ke “Suleiman The Magnificent” Bhi Moujdu They.

Aagey Wo Kahti Hai Ke – “Bohot Saari Cheeze Jo Humko Mili Hai Iss Qoum Se, Haala Ki Hum Jantey Hai, Fir Bhi Hum Inke Ahasanmand Nahi Hai”
Aur Aagey Wo Kehti Hai Ke – “Inki Yeh Deyn Aaj Humari Jindagi Ka Hissa Hai, Aur Technology Industries Aaj Wajud Me Nahi Hoti! Agar Musalman Scientist Na Hotey..

* * * * *

Kyunki Uska IT (Information Technology) Se Talluk Tha Wo HP Ki CEO Thi Usney Sirf Yeh Bataney Ke Liye Ke Aaj Hum Iss Company Ke Jarye Jiska Hum Fayda Utha Rahe Hai Yeh Kisi Ka Ahsan Hai Hum Par Jis Qoum Ne Hume Diya Hai, Wo Musalman They.

# Tou Andaza Lagayiye Kis Jasarat Se Usne 2 Hafte Baad Twin Tower Ke Blast Ke Baad Musalman Ka Naam Lena Buri Baat Samjhi Ja Rahi Thi Usi Mahoul Me America Me Iss Nonmuslim Khatun Ne Speech Di Aur Kaha Ke Yeh Qoum Tou Insaniyat Ke Fayde Ke Liye Aayi Hai.

✦ SABAQ:

Tou Log Hume Jantey Hai , Log Hume Pahchan Rahe Hai, Siway Iske Ke Hum So Rahe Hai, Jabki Log Tou Humko Jagana Chahtey Hai.. Yah Baat Yahi Tou Bata Rahi Hai ke Maazi(Past) Me Humare Aaba-o-Azdad Ne Bohot Saare Tajurbaat,.. Bohot Saare Inkhsafat, Bohot Saare Karnaame Kiye! Chahe Wo Deeni Uloom Me Ho Ya Duniyawi! Dono Me Maharat Hasil Kiye They.

* Aaj Musalmano Ko Jarurat Hai Ke Hum Datt Jaye Iss Cheez Par, Jo Talibe Ilm School Jatey Hai, Yeh Ilm Bhi Iss Niyat Se Hasil Kare Ke Iska Bhi Ajar Aur Sawab Miley ,..
* Aur Saath Me Waliden Jaha Duniyawi Ilm Sikhatey Hai, Dini Ilm Ko Bhi Utni Hi Balki Us’se Jayda Tarji Dey,..
Ke Meri Aulaad Jaha Jabardast Hafize Quraan Ho, Wahi Ek Jabardast Duniyawi Kisi Funn Ka Maahir Bhi Ho..

* Aaj Ummat Ko Aise Logon Ki Jarurat Hai Jo Deen Me Maharat Rakhtey Hai Wo Duniya Me Bhi Maharat Rakhe..
* Tou Hume Agar Duniya Me Rehna Hai Aur Deen Par Chalna Hai Tab Bhi Humko Yeh Duniyawi Ilm Jan’na Hai.. Isliye Ke Iske Bagair Jina Bhi Mushkil Hai Humara,, Sahi Ilm Tak Pohach Nahi Payenge , Kya Humare Khilaf Hai Aur Kya Haq Me Wo Samjh Nahi Payenge.. Aur Fir Mohtaaj Ho Jaynge , Kamtar Hoi Jayenge, Baddtar Ho Jaynge ,.. Aur Jo Halat Ho Rahi Hai Behrahaal Hum Sabhi Dekh Rahe Hai.. Yeh Ilm Ko Chorrne Ka Natija Hai Deeni Aur Duniyawi ,.. Jiski Wajah Se Aaj Humpar Qoume Tasallud Kar Rahi Hai, Chahe Jis Bhi Naam Se Ho ,..

* Ilm Nafa Hi Nafa Deta Hai,.. Ilm Ka Kabhi Koi Nuksan Nahi Hai Yaad Rakhiye ,..
Kharch Kijiye Iske Upar Agar Paisa Lagta Hai.. Khub Maal Iske Liye Lutayiye, Isliyeke Ye Jayaz Jagah Jaha Aap Apna Maal Luta Sakte Hai..
Jis Tarha Se Humare Aaba-O-Azdad They Ke Deen Aur Duniya Dono Me Wo Maharat Rakhte They, Aur Aise Aise Kaarnamo Ko Anjam Diya Karte They Jisko Dekhkar Aaj Duniya Ungiliya Daba Leti Hai Apne Daanto Me.. Ke Kya Wakay Me Musalman Aise They? Ke Kya Wakay Me Musalmano Ka Yeh Ilm Tha,.

* Tou Lihaja Humare Yeh Aslaf Humare Liye Namuna Hai,.. Humko Yeh Dono Ilm Ko Wapas Usi Jagah Lakar Usi Tareeke Se Hasil Karna Hai,. Fir Insha’allah!! Wohi Zamana , Wohi Khushiya, Wohi Tamam Cheeze Humari Jindagi Me Wapis Lout Kar Aaynegi Jo Humari Deyn Thi Insaniyat Ko ,..

* Beharhaal Ilm Ki Ahmiyat Ko Samjhey Isko Jaaney Aur Isko Khub Hasil Kare ,..
Isi Post Ke Sath Hum Iss Unwaan Topic Ko Pura Karenge ,..

♥ Aakhir Me Allah Rabbul Izzat Ser Dua Hai Ke
# Allah Ta’ala Hum Parhne Sun’ne Se Jyada Amal Ki Taufik Dey,…
# Hum Tamam Ko Apni Mukaddas Kitab Quraan Majid Ko Padhna Samjhna Aur Iss Par Amal Karna Sikhaye ,..
# Jab Tak Hume Zinda Rakhey Islam Aur Imaan Par Zinda Rakhye…
# Khatma Humara Imaan Par Ho …
!!! Wa Akhiru Dawana Anilhamdulillahe Rabbil A’lameen !!!

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✦ Al’khwarizmi (Inventor of Algorithm):

Koun Nahi Pahchanta Inhe.. Inke Naam Se “Algorithm”. Jo bhi Science Padha Ho, aur Bilkhusus Science Jo Technology Ka Ho .. Log Iss Naam Ko Behtar Jante Hai.. Yeh “Algorithm” Al’khwarizmi Ki Hi Deyn Hai..
Inhone Kaha Ke Kisi Bhi Pechida Masle Ko Hal Karne Ke Liye Steps Bandhna Chahiye,.. Uski Tarkib Yeh Hona Chahiye Steps Ki Shakl Me.. Aur Inhi Ki Steps Ko Inhi Ka Naam Diya Gaya.. Jise Hum “Algorithm” Naam Se Jante…

Al Khwarizmi
Al’khwarizmi (The Inventor of Algebra)

Aur Inhone “Algebra” Ki Buniyad Daali. Algebra Jo Subject Hota Hai Mathematics Ka Jo 4th Standard Se Shuru Hota Hai , Unhone Ek Kitab Likhi Jo Mushkil Cheeze Hoti Hai Samjhne Ke Liye Unhe Hal Karne Ke Liye.

* Misaal Ke Taur Par 3x + 3y = 6 ,.. Ab Ye Kaisa Hal Kiya Jaye.. Isiliye Ke Nichey Wala Equation Upar Wale Jaisa Nahi Hota .. Tou Inhone Kaha “Al Jabr Wal Muqabla” Yaani Jabardasti Laa Kar Uske Muqable Ko Khade Kardo ,
aur Fir Unn Dono Upar Wale aur Nichey Wale Ko 3 Se Jarab Dedo Yaani Dono Ko Jarab Dene Ke Baad Ek Cut Ho Jata Hai Sum Fir.

Tou Kaha “Al Jabr Wal Muqabla” Yaani Jabardasti Lao Khada Kardo Uske Muqable Me, Isi Falsafe Par Ek Kitab Likhi Aur Pura Uska Hal Diya, Jis’se Wo Pura Fun Algebra Kehlaya.. Jiska Mana Hota Hai Jabardasti Lakar Khada Kardo Muqable Me Isliye Ke Ab Pechida Masla Hal Karna Hai.

Tou Dekhiye Ye Musalmano Ki Deyn hai, aur Pata Nahi Aise Itni Saari Cheeze ke Humare Liye Ginwaana Mushkil Hai, Khud Aaj ki Jo English hai Uski Gawahi Deti hai Jo Musalmano Ke Ijadat(Invention) Hai, Unke Alfaz Batate hai , Jaise “Zeenat” Sitare Ko Kahte Hai Jo Arbi Lafz Hai.

Shugar Hai, Sukar Hai, Cotton Hai, Lemon Hai aur Anginat Aisi Cheeze Milengi Jo Musalmano Ki Deyn Hai Insaniyat Ke Liye.

Lekin Aaj Hum Tamam Ne Iss Cheez Ko Yeh Keh-Kar Chorr Diya Ke Yeh Tou Asli Uloom Hai. Jabki Yeh Scientist Badey-Badey Imam Bhi They Apne Qoum(Kabile, Maslak) Ke. aur Deen Ki Samjh Bhi Rakhte They aur Saath Me Badey-Badey Scientist bhi Hai.. Koi Fark Nahi Kiya Unhone Ilm Ke Andar.

* Europe Jaha Andhere Me Rehta Tha, Waha Musalmano Ke Shehro Me Street Lights Jalti Thi , Yeh Unke Inkashafat, Yeh Unke Iajadad They.


✦ Fir Aaj Hum Itney Pichey Kyu Reh Gaye ?

Yeh Sawal bhi Aata Hoga Na Jehan Me , Hum Uski Vajah Rakh Detey hai Aapke Samney , Isayiyat Ne, Christianity ne Europe ne Jab Dekha Ke Unka Rehnuma Jo Pope hai Agar Uski Baat Hum Maaney tou Inkashafat Nahi Kar Sakte! aur Bible(Injeel) Par Jabtak Chale tou Bible Hukm Nahi Deti Inkashafat Ka. Isliye Ke Bible Me Bohot si Scientific Galatiya Hai ,.. Jo Insano Ne Usme Raddo Badal Kiya Uski Vajah Se.

* Tou Unhone Ye Socha Ke Bible ko Jabtak Na Chorre Hum Duniya me Inkashafat Nahi Kar Sakte.. Aagey Nahi Badh Sakte.. Aur Fir Bible ko Renaissance ke Naam Par Alag Kar Diya Apne se.

* Jab Bible Ko Aur Pope Ko Hata Diya Apne Sir Se Tab Unhone Duniya Me Ijadad (Discoveries) Kar Sake, aur Baad Ke Musalmano Ko bhi Laga Ke Jabtak Hum bhi Quraano Hadees Ko Nahi Chorte Tab Tak Hum Bhi Iajdad Nahi Kar Payenge.. Lihaja Humne Bhi Qurano Hadees Ko Chorr Diya.

✦ Yaad Rakhiye! Unka aur Humara Usool Mukhatlif Hai.

Jab Tak Wo Apni Kitab Ko Thaamkar Rakhenge wo Duniya me Aage Nahi Badh Sakte, aur Jab Hum Apni Kitab Ko Chorrenge, Hum Duniya Me Aage Nahi Badh Sakte.

Tou Humko Bhi Laga Ke Modern Ban’na Hai, Technology me Aagey Badhna hai tou Quraan aur Hadees Ko Chorrna Hoga, Lihaza Humne Chorr Diya aur Jiss Din se Chorra Uss Din se Duniya me Zaleelo-Khwar Hue.

* Jabki Yaad Rakhiye Hum Jab-Tak Allah Ki Kitab aur Rasool’Allah(Sallallahu Alaihay Wasallam) Ki Sunnat Ko Thamey Rahenge Tab Tak Duniya me Aagey Badhenge Aur Jab Chorr Denge Tab Humara Zaleelo khwar Hona Lazim Hai, Aur Iski Misaale Bhari Padi Hai Tareekh Me.

Aur Jo Log Deen Jantey hai Wohi tou sahi Inkhshafat Karenge, Jo Log Apne Rab Ki Marifat Rakhenge, Allah Unhi Se Fir Kaam Bhi Leta Hai, tou Aaj Hum Duniyawi Uloom me Pichey Isliye hai Kyunki Humne Quraan-o-Hadees Ko Chorr Diya.

# Lihaja Hume Chahiye Ke Duniyawi IlM Bhi Khub Haasil Karey, aur Sharayi Ilm tou Haasil Karna Hi Hai ,..

♥ In’sha’Allah !! Agli Post me Hum Ek NonMuslim Mas’hoor Aur Maaruf Shakhsiyat Ke Bayan Ka Zikr Karenge Jo UnhoNe Aise Haalato me Diya Jab Ke Islam Ka Naam Leney Se Bhi Log KhoufJada Hua Karte They …

To Be Continue …

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