इस्लाम में चचेरी, ममेरी और फुफेरी बहन से शादी करने की इजाज़त क्यों है?

⛔ सवाल : इस्लाम में चचेरी, ममेरी और फुफेरी बहन से शादी करने की इजाज़त क्यों है?

🟢 जवाब :-
इस्लाम की पवित्र पुस्तक क़ुरआन में उन रिश्तों का जिक्र किया गया है, जिनसे एक मुसलमान शादी कर सकता है। क़ुरआन में वर्णन है:

ऐ नबी! हमने तुम्हारे लिये हलाल कर दी है ….. तुम्हारी वे चचेरी और फुफेरी और ममेरी और मौसेरी बहनें जिन्होंने तुम्हारे साथ हिजरत की है…।

📚 सुरह अहज़ाब 33:50

हिजरत: मक्का से मदीना का सफर

📔 इसी प्रकार का वर्णन क़ुरआन की सुरह निसा की आयत 23 में भी मिलता है।

🚫 इसी बात को कुछ कम अक्ल लोग और मीडिया इस तरह बता रहा है जैसे मुसलमानों में अपनी सगी बहन से शादी करने का चलन हो। और न्यूज़ चैनल वाले अपनी वेबसाइट पर इस न्यूज़ को बार बार इसलिए लिख रहे हैं ताकि देश के मुसलमानों को निशाना बनाया जा सके।

✅ इस्लाम ने करीबी रिश्तेदारी में शादी करने की इजाज़त कुछ खास रिश्तों में ही दी है । जिसके बारे में उक्त आयत में बताया गया है।

🛑 इस्लाम ने जो नियम दिया है उसमें दो-टूक बात कह दी है कि कौन -कौन से महरम रिश्ते हैं (जिससे पर्दा नहीं किया जाता है या जिससे शादी नहीं हो सकती है) और कौन-कौन से गैर-महरम रिश्ते हैं (जिससे पर्दा किया जाता है या जिससे शादी हो सकती है)।

✅ अल्लाह ने क़ुरआन में दो टूक बात कह दी है कि गैर महरम लड़का और लड़की एक दूसरे से दूर रहेंगे। कोई मुँह बोला भाई बहन का रिश्ता नहीं रहेगा। 

📌 इस्लाम में खूनी रिश्तों को जो पवित्रता हासिल है उसकी मिसाल न तो अन्य किसी धर्म में और न ही किसी कानून में देखने को मिलती है।

📝 साथ ही ये सबसे प्रमुख बात है कि चचेरी, ममेरी और फुफेरी बहन से विवाह करना भी इस्लाम ने अनिवार्य नहीं ठहराया है, बल्कि यह मात्र एक विकल्प है। कोई इसे अपनाना चाहे तो अपनाये वरना कहीं और विवाह कर ले।

क्या रिश्तेदारी में शादी करने से बच्चे पर असर होता है?

📝 अब अगर कोई इस तरह की रिश्तेदारी में शादी करता है तो अक्सर लोग कहते हैं कि रिश्तेदारी में हुई शादी में पैदा हुए बच्चे अक्सर किसी विकार या बीमारी के साथ पैदा होते हैं, लंगड़े-लूले पैदा होते हैं लेकिन ये सवाल सब कम जानकारी के आधार पर किए जाते हैं।

🩺इस बारे में कोई पुख्ता मेडिकल प्रमाण नहीं है कि उन समाजों में अपेक्षाकृत ज्यादा विकृत संतान पैदा होती है जहां करीबी रिश्तेदारों में विवाह होता है। इसके उलट जो देखने में आता है कि इस तरह होने वाली शादियों से पैदा हुए बच्चे एक दम हष्टपुष्ट, तंदरुस्त, खूबसूरत और अच्छी कद-काठी वाले होते हैं।

✅ इतिहास के पन्ने पलटे जाए तो मालूम होगा कि पिछले जमाने में भी शादियां करीबी रिश्तेदारियों में होती थी। लोग अक्सर कबीलों में रहते थे तो आपस में ही शादियां करते थे, इन के होने वाले बच्चे भी तंदरुस्त और स्वस्थ रहते थे।

✔️ एक दूसरा पहलू ये भी है कि दूसरे कबीले और खानदान में शादियां करने के बारे में हमें अल्लाह के रसूल सल्ल. की ज़िंदगी को देखना चाहिए।

✅ उम्मत के लिये नबी एक रोल मॉडल (आदर्श) होता है और हर मामले में वो उम्मत के सामने एक बेहतरीन नमूना पेश करता है। विवाह को गैर खानदान या बिरादरी में किया जा सकता है, इसका सबूत भी हमें नबी सल्ल. की पाक जिंदगी से मिलता है।

💠 नबी सल्ल. खुद बनी हाशिम कबीले से थे लेकिन आप सल्ल. ने अपने कबीले से बाहर कई विवाह किये मसलन:

★ हजरत खदीजा, बनू असद कबीले से थी
★ हजरत सौदा, आमिर बिन लुई कबीले से थी
★ हजरत आयशा, बनी तैम कबीले से थी
★ हजरत हफ़्सा, बनू अदी कबीले से थी
★ हजरत जैनब, बनू हिलाल कबीले से थी
★ हजरत उम्मे सलमा, बनी मख्जूम कबीले से थी
★ हजरत जुवैरिया, बनी मुस्तलिक कबीले से थी
★ हजरत उम्मे हबीबा, बनू उमय्या कबीले से थी।

◆ हजरत सफिया, बनू क़ुरैज़ा कबीले से थी, जो एक यहूदी कबीला था।
◆ हजरत रेहाना, बनू क़ुरैज़ा कबीले से थी, जो एक यहूदी कबीला था।

● इसी तरह सहाबा किराम रज़ि. ने भी गैर बिरादरी में निकाह किये,
जिनके खानदान और कबीले अलग थे। जिसके सबूत हमें हदीस और तारीख की किताबों में मिलते हैं।
उदहारणार्थ:
★ नबी सल्ल. ने खुद जैद बिन हारिसा (आजाद करदा गुलाम ) का निकाह जैनब बिन्त जहश(कुरैशी खातून) से करवाया था।
📚 फ़िक़्हुल हदीस 2/126

⛔ क्या चचेरी, ममेरी और फुफेरी बहन; सगी बहन है?

✔️ इस्लाम ने करीबी रिश्तेदारी में शादी इसलिए जाइज़ ठहराई है क्योंकि इस्लाम मे चचेरी, ममेरी और फुफेरी बहन को “सगी बहन” माना ही नहीं जाता है और इस विषय पर सारी बहस ही चाचा, मामा, और फूफा के बेटे बेटियों को सगे भाई बहन मानने और ना मानने पर है। जो लोग चाचा- मामा के बच्चों को सगे भाई बहन मानते हैं वही लोग इस तरह की शादी पर सवाल उठाते हैं और भद्दी टिप्पणियां करते हैं यहां तक कि ये लोग अपनी मान्यता दूसरों पर थोपने की पूरी कोशिश करते हैं । और यही समस्या की जड़ है जहाँ एक वर्ग द्वारा दूसरे वर्ग पर अपनी मान्यता थोपी जाती है और न मानने वाले को अपराधी समझा जाता है ।

📝 इस्लाम में मुंह बोला रिश्ता बनाना या अपनी सगी बहनों के अलावा अन्य स्त्री को बहन तो माना जा सकता है, लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि वो सगी बहन जैसी बहन हो जाएगी जिससे विवाह होना असंभव है। इसका कारण है कि स्त्री व पुरुष में एक निश्चित समय बाद यौनाकर्षण पैदा हो जाता है और ये ‘भाई-बहन’ के रिश्ते व्यभिचार की राहें खोल देते हैं। यही वजह है कि इस्लाम में पराई स्त्री के साथ समय बिताने और फ़िज़ूल बातें करने को निषिद्ध किया गया है।

बहुत से उदाहरण ऐसे देखे गए हैं कि जिसमें एक शख़्स अपनी इन्हीं नाम-मात्र व स्वघोषित बहनों के साथ कुकृत्य करता है या परिवार से छुपकर यौन शोषण करता है। लड़की के घर वाले भी यही सोच कर ध्यान नहीं देते की अमुक तो हमारी बेटी/बहन के ‛भाई’ की तरह है।

👁️‍🗨️ उदहारण के लिए ये ऐसा ही एक केस है इसमें दो भाई की संतानें (Cousin) आपस में शादी करना चाहते थे। लेकिन उनके परिवार जनों ने उनकी हत्या कर दी।

👁️‍🗨️ इसी तरह का एक अन्य उदाहरण: एक युवक अपने सगे मामा की बेटी से शादी करना चाहता था। शादी करने के लिए युवक ममेरी बहन को लेकर कोर्ट भी पहुंच गया। हालांकि माँ ने शादी रुकवा दी।

आप सोच सकते हैं कि मामला उजागर होने से पहले ये करीबी ‛भाई-बहन’ किस तरह के रिश्ते में रहे होंगे?

✅ अतः इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि हर धर्म और समाज में भी रिश्तेदारी में विवाह करना आम बात थी।

✨ करीबी रिश्तेदारी में विवाह के फायदे:

Quora पर भारती माने लिखती हैं कि उनके भाई की शादी उनके मामा की लड़की से हुई है और वो उसके फायदे गिनाती हैं जो वाकई बहुत गौरतलब हैं:

1️⃣ सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि व्यक्ति की जान-पहचान में शादी हो रही है, यानी की लड़की/लड़का कैसा है, उनके घरवाले कैसे हैं तथा उनके संस्कार-संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि की पुष्टि पहले से ही हो चुकी होती है।

2️⃣ दूसरा फायदा यह है कि जिसे हम बचपन से जानते है उसी के साथ शादी होती है जिससे उसकी आदतें और स्वभाव का बेहतर अंदाजा रहता है।

3️⃣ तीसरा फायदा यह है कि यदि कोई समस्या होती है तो परिवार के सदस्य आपके काम आते हैं और आपके हर सुख दुख में भागीदार होते हैं। इसी का नतीजा देखने को मिलता है कि रिश्तों में आपसी जुड़ाव और तालमेल पहले से बेहतर हो जाता है।

इसके अलावा भी रिश्तेदारी में शादी करने के सामाजिक,आर्थिक और मनोवैज्ञानिक फायदे हैं।

🔸बहरहाल जवाब को खत्म करते हुए इस विषय में, हम इतना ही कहना चाहेंगे कि:
भारत मे बहुत से समुदाय है और हर समुदाय की अलग मान्यताएं हैं। अतः अपनी मान्यताओं को एक दूसरे पर थोपना नहीं चाहिए।

वस्सलाम

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सोर्स : hindiquranohadees.wordpress.com

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